सीरम इंस्टीट्यूट, भारत बायोटेक ने कानूनी बिरादरी को COVID-19 वैक्सीन दिए जाने की मांग करने वाली याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करने की अपील की

Update: 2021-03-15 13:10 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कानूनी बिरादरी (जज वकील और कोर्ट स्टाफ) को अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ता के रूप में COVID-19 वैक्सीन दिए जाने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई को स्थगित कर दिया है।

अब इस याचिका पर सुनवाई 18 मार्च, 2021 को होगी।

इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट कानूनी बिरादरी COVID-19 को अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ता के रूप में वैक्सीनेशन दिए जाने की मांग को लेकर देश के विभिन्न हाईकोर्ट में दायर याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में स्थानातरित करने मांग करने वाली सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक द्वारा दायर याचिका पर भी सुनवाई करेगा।

सीजेआई एसए बोबडे, न्यायमूर्ति बोपन्ना और न्यायमूर्ति रामसुब्रमण्यम की तीन-न्यायाधीश की पीठ ने इस मामले को स्थगित करने का आदेश भी इसीलिए दिया, क्योंकि भारत बायोटेक और सीरम इंस्टीट्यूट दोनों ने विभिन्न हाईकोर्ट में दायर याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरण करने की याचिका दायर की है।

सुनवाई के दौरान, एसजी मेहता ने कहा कि उन्होंने जवाब दाखिल कर दिया है।

सीरम इंस्टीट्यूट की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कोर्ट को सूचित किया कि उन्होंने हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में केस ट्रांसफर करने की याचिका दायर की है।

भारत बायोटेक की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने कोर्ट को बताया कि उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर की भी मांग की है।

दिल्ली हाईकोर्ट ने COVID-19 की वैक्सीन देने में प्राथमिकता के उद्देश्य से न्यायाधीशों, वकीलों, अदालत के कर्मचारियों को 'अग्रिम पंक्ति के योद्धा' के रूप में मान्यता देने की मांग का संज्ञान लिया। हाईकोर्ट ने एसआईआई और भारत बायोटेक से उनकी वैक्सीन बनाने की क्षमता पर हलफनामे दाखिल करने को कहा था। 

पिछले हफ्ते, बॉम्बे हाई कोर्ट ने इसी तरह की याचिका के संबंध में एक अलग दृष्टिकोण अपनाया था। बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता की अध्यक्षता वाली एक खंडपीठ ने पूछा कि कानूनी बिरादरी को अग्रिम पंक्ति का कार्यकर्ता क्यों माना जाना चाहिए?

अरविंद सिंह द्वारा दायर की गई याचिका में कहा गया है कि न्यायपालिका और वकीलों को डॉक्टरों, पुलिस आदि के साथ अग्रिम पंक्ति का कार्यकर्ता माना जाना चाहिए और वैक्सीन के लिए उन्हें प्राथमिकता दी जानी करनी चाहिए।

याचिका में आगे कहा गया कि केंद्र ने उस आबादी की पहचान की है, जिसे पहले वैक्सीन दी जानी है, लेकिन उत्तरदाताओं द्वारा प्रकाशित 'ऑपरेशनल गाइडलाइन्स' कहीं भी किसी भी तंत्र और मानदंडों के लिए प्रदान करता है, जिन पर ऐसे प्राथमिकता वाले जनसंख्या समूहों की पहचान की गई है, जो मनमानी दिखाते हुए उत्तरदाताओं का निर्णय कहीं भी तदर्थ और तर्कसंगत आधार पर आधारित नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अंतिम सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता अमीक खेमका ने प्रस्तुत किया कि COVID-19 टीके के लिए न्यायिक प्रणाली के दावे पर विचार नहीं किया गया है।

वकील ने कहा,

"पुलिस, सुरक्षा बल, राजस्व अधिकारी इन सभी लोगों को प्राथमिकता दी गई है। लेकिन ये सभी लोग, जो कुछ भी करते हैं, न्यायिक प्रणाली में परिणत होते हैं। वहीं वकील, न्यायिक कर्मचारी, न्यायाधीश टीके के लिए प्राथमिकता सूची में शामिल नहीं हैं।"

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने जनवरी में केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को पत्र लिखकर COVID-19 वैक्सीन के लिए कानूनी बिरादरी को 'फ्रंटलाइन वर्कर्स' की श्रेणी में शामिल करने की मांग की थी।

पत्र में कहा गया था,

"न्यायाधीशों, न्यायिक कर्मचारियों और कानूनी बिरादरी के सदस्यों" के सामने "फ्रंटलाइन वर्कर की श्रेणी में शामिल करने के लिए" अनुरोध किया जाता है ताकि हमारे नागरिकता के इस वर्ग के लिए वैक्सीनेशन कार्यक्रम को प्राथमिकता देने और विस्तारित करने के लिए उचित उपचारात्मक उपाय किए जाए।"

जनवरी के पहले सप्ताह में ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने दो वैक्सीन के उपयोग को मंजूरी दी थी। उनमें सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के COVISHIELD और भारत बायोटेक के COVAXIN का आपातकालीन उपयोग किया गया। 

Tags:    

Similar News