जमानत देने पर विचार करते समय अपराध की गंभीरता प्रासंगिक विचारों में से एक है: सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया

Update: 2021-03-16 08:47 GMT

जमानत देने पर विचार करते समय अपराध की गंभीरता प्रासंगिक विचारों में से एक है, सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पारित एक फैसले में दोहराया।

इस मामले में, आरोपियों ने कोर्ट रिकॉर्ड में फर्जीवाड़ा किया था। यह आरोप लगाया गया था कि आईपीसी की धारा 307, 504 और 506, क्राइम केस नंबर -152 / 2000, पुलिस स्टेशन माखी, जिला उन्नाव, के तहत सेशन ट्रायल नंबर 9 ए / 01, राज्य बनाम महेश में व्हाइटनर का उपयोग करके कोर्ट रिकॉर्ड को गढ़ा गया था।

अदालत के रिकॉर्ड के साथ छेड़छाड़ की गई और 'महेश' के बजाय 'रमेश' लिखा गया।

इससे पहले सेशंस कोर्ट ने यह कहते हुए जमानत अर्जी को खारिज कर दिया कि आरोपियों के खिलाफ अदालत के रिकॉर्ड में फर्जीवाड़ा करने के आरोप बहुत गंभीर हैं और आरोपी उक्त जालसाज़ी का लाभार्थी है और इसलिए उसे जमानत पर रिहा करने का यह कोई उचित मामला नहीं है। हालांकि, उच्च न्यायालय ने उसकी जमानत अर्जी मंज़ूर कर ली।

अपील में, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने कहा कि आरोपी के खिलाफ धारा 420, 467, 468, 471, 120 बी आईपीसी के तहत मुकदमा चल रहा है।

पीठ ने यह कहा:

"उच्च न्यायालय ने यह बिल्कुल नहीं माना कि अभियुक्त पर धारा 420, 467, 468, 471, 120 बी आईपीसी के तहत अपराध का आरोप है और धारा 467 आईपीसी के तहत अपराध के लिए अधिकतम सजा 10 साल और जुर्माना/ आजीवन कारावास और जुर्माना है। यहां तक ​​कि धारा 471 आईपीसी के तहत अपराध के लिए भी इसी तरह की सजा है। इसके अलावा अदालत के रिकॉर्ड में फर्जीवाड़ा और / या हेरफेर करना और इस तरह के जाली / हेरफेर किए गए कोर्ट रिकॉर्ड का लाभ प्राप्त करना बहुत गंभीर अपराध है। यदि कोर्ट रिकॉर्ड में हेरफेर और / या जालसाज़ी की गई है, यह न्याय के प्रशासन में बाधा उत्पन्न करेगा। दो व्यक्तियों के बीच अन्य दस्तावेजों को गढ़ने / हेरफेर करने करने की तुलना में समान रूप से लाभ उठाने के लिए न्यायालय के रिकॉर्ड को गढ़ने / हेरफेर करना बिल्कुल अलग तरह का है। इसलिए, उच्च न्यायालय को ऐसे व्यक्ति को जमानत देने में गंभीर/ अधिक सतर्क होना चाहिए, जिस पर आरोप लगा है कि उसने अदालत के रिकॉर्ड को गढ़ा / हेरफेर किया है और ऐसे गढ़े और जाली अदालत के रिकॉर्ड का लाभ उठाया है, विशेष रूप से जब प्रथम दृष्टया आरोप के लिए आरोप पत्र दाखिल किया गया है और आरोप तय किया गया है"

पीठ ने आरोपियों के खिलाफ एफआईआर में लगाए गए आरोपों पर ध्यान दिया।

आरोपी ने दलील दी कि जैसा कि रिकॉर्ड अब अदालत की कस्टडी में है, छेड़छाड़ का कोई मौका नहीं है, आरोपी के खिलाफ अदालत के रिकॉर्ड में छेड़छाड़ / फर्जीवाड़ा / हेरफेर करने के आरोप हैं जो अदालत की कस्टडी में थे।

इस संदर्भ में, पीठ ने कहा :

"जमानत देने पर विचार करते समय अपराध की गंभीरता प्रासंगिक विचारों में से एक है, जिसे जमानत पर अभियुक्त नंबर 2 को रिहा करते समय उच्च न्यायालय द्वारा बिल्कुल भी नहीं माना गया है।"

जहां आरोप अदालत के आदेश के साथ छेड़छाड़ के हैं और जिस भी कारण से राज्य ने जमानत अर्जी दाखिल नहीं की है, मामले में लोकस, ये महत्वपूर्ण नहीं है और यह महत्वहीन है, पीठ ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि इस मामले में अपीलकर्ता का कोई लोकस नहीं है।

केस: नवीन सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य [सीआरए 320 / 2021 ]

पीठ : जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह

उद्धरण: LL 2021 SC 162

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