GHCAA के अध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता यतिन ओझा गुजरात हाईकोर्ट के अवमानना नोटिस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे
गुजरात हाईकोर्ट द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता और गुजरात हाईकोर्ट एडवोकेट एसोसिएशन (GHCAA)के अध्यक्ष यतिन ओझा के खिलाफ फेसबुक पर एक लाइव प्रेस कॉन्फ्रेंस के दरमियान हाईकोर्ट और उसकी रजिस्ट्री के खिलाफ 'अपमानजनक टिप्पणी' करने के आरोप में आपराधिक अवमानना नोटिस जारी होने के बाद यतिन ओझा ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। यतिन ओझा ने गुजरात हाईकोर्ट के अवमानना नोटिस को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
गुजरात हाईकोर्ट ने घटना का स्वत: संज्ञान लेते हुए जस्टिस सोनिया गोकानी और जस्टिस एनवी अंजारिया ने पीठ ने कहा था,
'जैसा कि बार अध्यक्ष ने अपनी निंदनीय अभिव्यक्तियों और अंधाधुंध और आधारहीन बयानों से हाईकोर्ट की प्रतिष्ठा और महिमा को गंभीर नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया है और इस प्रकार स्वतंत्र न्यायपालिका को नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया है, क्योंकि पूरे प्रशासन की छवि को भी नीचा दिखाने का प्रयास किया है और प्रशासनिक शाखा के बीच निराशजनक प्रभाव पैदा किया है, यह कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 215 के तहत प्रदत्त शक्तियों के का प्रयोग कर प्रथम दृष्टया उन्हें न्यायालय अवमानना अधिनियम की धारा 2 (c) के अर्थ में कोर्ट की आपराधिक अवमानना के लिए जिम्मेदार मानती है और उक्त अधिनियम की धारा 15 के तहत उनके खिलाफ आपराधिक अवमानना का संज्ञान लेती है।'
फेसबुक पर अपने लाइव कांफ्रेंस में ओझा ने हाईकोर्ट और उसकी रजिस्ट्री पर निम्नलिखित आरोप लगाए थे- -
गुजरात हाईकोर्ट की रजिस्ट्री द्वारा भ्रष्ट आचरण किया जा रहा है;
-हाई-प्रोफाइल उद्योगपति, तस्करों और देशद्रोहियों को अनुचित फेवर दिया जा रहा है;
-हाईकोर्ट प्रभावशाली और अमीर लोगों और उनके वकीलों के लिए काम कर रहा है;
-अरबपति हाईकोर्ट के आदेश से दो दिनों में मुक्त हो जा रहे हैं, जबकि गरीब और गैर-वीआईपी को कष्ट उठाना पड़ रहा है;
यदि वादकर्ता हाईकोर्ट में किसी भी मामले को में दायर करना चाहता है तो वह यो तो श्री खंभाटा हो या बिल्डर या कंपनी हो। उन्होंने कहा कि जहां कुछ वकील महीने भर से अधिक समय से अपने मामले को सूचीबद्ध कराने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, वहीं कुछ ऐसे लोग हैं, जिनके मामलों की तुरंत सुनवाई हो रही है और पलक झपकते ही निर्णय पा जा रहे हैं।
उन्होंने बताया कि उन्हें 100 से अधिक वकीलों ने संदेशों भेजा है कि उन्होंने कई सप्ताह पहले मामले फाइल किए थे लेकिन अब तक सुनवाई नहीं हुई। हाईकोर्ट की बेंच ने ओझा के बयान को 'गैर जिम्मेदाराना, सनसनीखेज और घबराहट वाला' मानते हुए कड़ा विरोध किया और कहा ओझा ने तुच्छ आधार पर और असत्यापित तथ्यों की बिनाह पर, हाईकोर्ट की रजिस्ट्री को निशाना बनाया है और हाईकोर्ट प्रशासन की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया है। हाईकोर्ट ने माना कि वर्चुअल कोर्ट का कामकाज कई स्थानों पर लोकप्रिय नहीं रहा है, हाईकोर्ट प्रशासनिक वास्तविक शिकायतों की जांच कर रहा है, हाालांकि बार एसोसिएशन के अध्यक्ष ने का बयान लापरवाह भरा रहा है।
हाईकोर्ट ने कहा
'उन्होंने हाईकोर्ट प्रशासन के खिलाफ अनाचार और भ्रष्टाचार के झूठे और अवमाननापूर्ण के आरोप लगाए हैं ... जो सभी संकटों के खिलाफ दिन-रात काम कर रहा है, वर्तमान संकट में अपने और अपने परिवार के सदस्यों का जीवन खतरे में डाल रहा है और ई फाइलिंग मॉड्यूल की उपलब्धता की अनुपस्थिति में ईमेल के जरिए फालिंग के नए सिस्टम को अपनाने की कोशिश कर रहा है।'
कोर्ट की उत्पादकता पर जोर देते हुए, पीठ ने बताया कि लॉकडाउन के दरमियान 5,000 से अधिक मामलों और 3,000 से अधिक सिविल आवेदनों को हाईकोर्ट के समक्ष दायर किया गया। इनमें से 8182 मामलों को सूचीबद्ध किया गया और 4057 का निस्तारण किया गया , जिनमें से अधिकांश उन लोगों के मामले थे, जिनके पास बेहद मामूली साधन थे।
अदालत ने कहा कि मौजूदा समय ऐसा नहीं है, जब बेंच और बार किसी भी तरह की 'मनमुटाव' में अपनी ऊर्जा बर्बाद कर सकते हैं, वास्तव में, दोनों शाखाओं की एक दूसरे के साथ काम करने और 'सकारात्मक माहौल' में अपने दायित्वों का निर्वहन करने के लिए बाध्य हैं। अदालत ने कहाकि ओझा ने यह दावा कर कि कुछ वकील अपने मामलों को तीनों अदालतों में प्रसारित करने में सफल हो रहे हैं और उन्हें आदेश भी मिल रहे हैं, अप्रत्यक्ष रूप से हाईकोर्ट के कुछ जजों पर उंगली उठाई हैं।
कोर्ट ने मामले को फुल कोर्ट के हाथों में विचार करने के लिए चीफ जस्टिस के समक्ष रखा है। अपने आदेश में पीठ ने यह भी कहा है कि ओझा पर एक बार सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का आरोप लग चुका है। उस समय सुप्रीम कोर्ट ने ओझा की बिना शर्त माफी स्वीकार कर ली थी और उम्मीद जताई कि वह खुद को बदलेंगे। पीठ ने कहा कि हालांकि अब तक कुछ भी बदला नहीं है। ओझा लंबे समय से वकीलों के फायदे के लिए कोर्ट के सामान्य कामकाज की मांग कर रहे हैं।
एक महीने पहले, उन्होंने हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को यह कहते हुए पत्र लिखा था कि केवल जरूरी मामलों की सुनवाई तक अदालतों के कामकाज को सीमित करने का कोई तर्क नहीं है। कोर्ट को दोबारा खोलने के मुद्दे पर एसोसिएशन के पदाधिकारियों के साथ मतभेदों के बाद, उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था और इस मुद्दे पर नए सिरे से जनादेश मांगा था कि 'अदालत को फिजिकल तरीके से कार्य करना चाहिए या वर्चुअल।'
GHCAA द्वारा इस्तीफे को खारिज किए जाने के बाद उन्होंने इस्तीफा वापस ले लिया था। उन्होंने हाल ही में चीफ जस्टिस को एक और पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने रजिस्ट्री से विवरण मांगकर यह यह पुष्टि करने के लिए कहा था कि चार या पांच वकीलों ने इस लॉकडाउन के दौरान 40 से 70 मामले दायर किए हैं।