धारा 482 सीआरपीसी - आपराधिक कार्यवाही को केवल इस आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता है कि "कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा": सुप्रीम कोर्ट

Update: 2022-05-18 07:34 GMT

सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब कथित अपराधों के लिए एक स्पष्ट मामला बनता है तो आपराधिक कार्यवाही को केवल इस आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता है कि "मामले की कार्यवाही को लंबा करने से कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा"।

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने दोहराया कि एक हाईकोर्ट को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत याचिकाओं का निपटारा करते हुए एक सकारण और तर्कपूर्ण आदेश पारित करना चाहिए।

इस मामले में, मजिस्ट्रेट ने आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 307, 504, 506 और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) की धारा 3(10)(15) के तहत दंडनीय अपराधों के लिए मुकदमे की कार्यवाही का सामना करने के लिए समन भेजा था।

आदेश के खिलाफ आरोपी द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आपराधिक कार्यवाही को केवल यह कहते हुए रद्द कर दिया कि "मामले की कार्यवाही को लंबा करने से कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा"।

सु्प्रीम कोर्ट के समक्ष अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट ने स्वतंत्र रूप से विचार नहीं किया और आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए कोई कारण नहीं बताया । दूसरी ओर, प्रतिवादी ने आक्षेपित आदेश का बचाव किया।

अदालत ने कहा कि हाईकोर्ट ने आरोप‌ियों के खिलाफ लगाए गए आरोपों और यहां तक ​​कि मजिस्ट्रेट द्वारा आरोपी को समन भेजने के आदेश की वैधता पर भी चर्चा नहीं की है।

कोर्ट ने कहा,

"हाईकोर्ट द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश एक क्रिप्टिक, नॉन-स्पीकिंग आदेश है। हमें हाईकोर्ट द्वारा आरोपी को तलब करने वाले विद्वान मजिस्ट्रेट द्वारा पारित आदेश की वैधता पर भी कोई स्वतंत्र विचार नहीं मिलता है।

विद्वान मजिस्ट्रेट शिकायतकर्ता के साथ-साथ सीआरपीसी की धारा 200 और 202 के तहत दर्ज गवाहों के बयानों पर विचार करने के बाद और चोट के प्रमाण पत्र सहित रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों पर विचार करने के बाद आरोपी के खिलाफ समन जारी किया।

इसे हाईकोर्ट ने सरसरी और आकस्मिक तरीके से रद्द कर दिया है। जिस तरह से हाईकोर्ट ने धारा 482 सीआरपीसी के तहत आवेदन का निपटारा किया है और आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया है, वह बिल्कुल भी सराहनीय नहीं है। कई फैसलों में इस न्यायालय ने जोर दिया है कि हाईकोर्ट ऐसे मामलों में एक स्पष्ट और तर्कपूर्ण आदेश पारित करना चाहिए।"

अपील की अनुमति देते हुए बेंच ने आगे कहा, 

हाईकोर्ट द्वारा पारित आक्षेपित आदेश से भी ऐसा प्रतीत होता है कि आपराधिक कार्यवाही को रद्द करते हुए हाईकोर्ट ने कहा है कि मामले की कार्यवाही को लंबा करने से कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा। जब कथित अपराधों के लिए एक स्पष्ट मामला बनाया गया था तो उपरोक्त आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए उक्त कथन एक अच्छा आधार और/या आधार नहीं हो सकता है।

6.4 हाईकोर्ट ने इस पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया है कि कैसे विद्वान मजिस्ट्रेट द्वारा अभियुक्त को समन जारी करने का आदेश गलत और/या त्रुटिपूर्ण था। जिस तरह से हाईकोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत आवेदन का निपटारा किया है और आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया गया है, वह स्वीकार्य नहीं है। जब आईपीसी की धारा 307, 504, 506 और अधिनियम की धारा 3(10)(15) के तहत अपराधों के गंभीर आरोप लगाए गए थे तो हाईकोर्ट को धारा 482 के तहत आवेदन पर विचार करते समय अधिक सतर्क और चौकस होना चाहिए था।

मामलाः सतीश कुमार जाटव बनाम यूपी राज्य | 2022 LiveLaw (SC) 488 | CrA 770 of 2022 | 17 May 2022

कोरम: जस्टिस एमआर शाह और बीवी नागरत्ना


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