(सीआरपीसी की धारा 372) पीड़ित की तरफ से सजा बढ़ाने के लिए दायर अपील सुनवाई योग्य नहीं :सुप्रीम कोर्ट

Update: 2020-08-29 05:00 GMT

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि अपर्याप्त सजा के आधार पर दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 372 के तहत पीड़ित की तरफ से दायर अपील सुनवाई योग्य नहीं है।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी की खंडपीठ ने इस मामले में यह टिप्पणी करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के एक फैसले को बरकरार रखा है। हाईकोर्ट ने एक पीड़ित की तरफ से सीआरपीसी की धारा 372 के तहत दायर अपील को खारिज कर दिया था। इस अपील के तहत पीड़ित ने मांग की थी कि ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी को दी गई सजा को बढ़ाया जाए। इस मामले में आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 364 ए, 302 और 201 के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराया गया था। मृतक लड़के के पिता ने हाईकोर्ट के समक्ष अपील दायर कर सजा के आदेश को चुनौती दी थी और मांग की थी कि आरोपी को मृत्युदंड की सजा दी जाए। परंतु हाईकोर्ट ने उसकी अपील को खारिज कर दिया था।

हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए पीड़ित ने सुप्रीम कोर्ट की पीठ के समक्ष कहा था कि सीआरपीसी की धारा 372 के परंतुक (जो आरोपी को हल्के अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने पर पीड़ित को अपील करने का अधिकार देते हैं)के अनुसार अपील दायर करने के क्षेत्र या गुंजाइश को हल्के अपराध के मामले तक सीमित करने का कोई कारण नहीं है,बल्कि अपील दायर करने का अधिकार कम सजा के मामले में भी होना चाहिए।

सीआरपीसी की धारा 372 के परंतुक का उल्लेख करते हुए पीठ ने कहा कि जहां तक पीड़ित द्वारा अपील दायर करने के अधिकार का संबंध है तो यह तीन हालत में ही की जा सकती है अर्थात यदि आरोपी को बरी कर दिया जाए या आरोपी को कम या हल्के अपराध में दोषी करार दिया जाए या अपर्याप्त मुआवजे का निर्देश दिया गया हो।

पीठ ने कहा कि-

'' पीड़ित को अपर्याप्त मुआवजा देने की स्थिति में अपील दायर करने का अवसर दिया जाता है परंतु इसके साथ ही ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि पीड़ित अपील दायर करके सजा के आदेश पर सवाल उठाते हुए उसे अपर्याप्त बताए। हालांकि सीआरपीसी की धारा 377 के तहत राज्य सरकार को यह अधिकार या शक्ति मिली हुई है कि वह सजा बढ़ाने की अपील दायर कर सकें। ऐसे में राज्य सरकार के लिए ओपन है कि वह सीआरपीसी की धारा 377 के तहत तहत अपर्याप्त सजा के लिए अपील कर सकती है परंतु इसी तरह अपर्याप्त सजा के आधार पर पीड़ित की तरफ से सीआरपीसी की धारा 372 के तहत दायर अपील सुनवाई योग्य या अनुरक्षणीय नहीं है। यह काफी अच्छी तरह से तय है कि अपील का उपाय कानून या व्यवस्था का यंत्र है। ऐसे में जब तक कि दंड प्रक्रिया संहिता के तहत या उस समय लागू किसी अन्य कानून के तहत यह अधिकार नहीं मिलता है,तब तक पीड़ित की तरफ से सजा को बढ़ाने के लिए दायर कोई अपील सुनवाई योग्य नहीं है।''

न्यायालय ने कहा कि हाईकोर्ट ने इस मामले में अपील को खारिज करने के लिए 'नेशनल कमीशन फाॅर वुमन बनाम स्टेट ऑफ एनसीटी ऑफ दिल्ली एंड अदर्स (2010) 12 एससीसी 599' के मामले में दिए गए फैसले पर भरोसा जताकर सही किया है क्योंकि यह अपील सुनवाई योग्य नहीं है।

केस का विवरण-

केस का नाम-परविंदर कंसल बनाम स्टेट आॅफ एनसीटी आॅफ दिल्ली

केस नंबर-आपराधिक अपील नंबर 555/2020

कोरम-जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस आर सुभाष रेड्डी

प्रतिनिधित्व-अपीलकर्ता के लिए एडवोकेट अश्विनी भारद्वाज और प्रतिवादी के लिए एडवोकेट चिराग एम श्राफ।

आदेश की काॅपी डाउनलोड करें।



Tags:    

Similar News