सीआरपीसी की धारा 319 : समन जारी करने की शक्ति का प्रयोग तभी करना चाहिए जब किसी व्यक्ति के खिलाफ ठोस और पुख्ता सबूत हों: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2021-09-18 07:42 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 319 के तहत समन जारी करने की शक्ति का प्रयोग तभी किया जाना चाहिए, जब साक्ष्य से किसी व्यक्ति के खिलाफ ठोस और पुख्ता सबूत हों।

जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने दोहराया कि धारा 319 सीआरपीसी के तहत शक्ति का इस्तेमाल आकस्मिक और लापरवाह तरीके से नहीं किया जा सकता है। पीठ ने कहा लागू किया जाने वाला परीक्षण प्रथम दृष्टया मामले से अधिक है, जिसे आरोप तय करने के समय लागू किया जाता है।

मामले के तहत निचली अदालत ने हत्या के मामले में एक गवाह के बयान पर संज्ञान लेते हुए सीआरपीसी की धारा 319 के तहत दायर आवेदन को स्वीकार कर लिया था और मृतक के नियोक्ता को तलब किया। हाईकोर्ट ने निचली अदालत के इस आदेश को बरकरार रखा। शीर्ष अदालत के समक्ष, अपीलकर्ता ने दलील दी कि अदालतों ने केवल बयान के आधार पर सीआरपीसी की धारा 319 के तहत शक्ति को लागू करने में गलती की है।

पीठ ने हरदीप सिंह बनाम पंजाब राज्य (2014) 3 एससीसी 92 और लाभूजी अमृतजी ठाकोर बनाम गुजरात राज्य एआईआर 2019 एससी 734 के फैसलों का जिक्र करते हुए कहा कि जिस बयान पर जिरह नहीं हुई है, धारा 319 सीआरपीसी लागू करने के लिए उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। इसने हरदीप सिंह मामले में में संविधान पीठ की टिप्पणियों को नोट किया-

105. सीआरपीसी की धारा 319 के तहत शक्ति विवेकाधीन और असाधारण शक्ति है। इसका संयम से और केवल उन मामलों में प्रयोग किया जाना है, जहां मामले की परिस्थितियां के तहत इसकी आवश्यकता हो। इसका प्रयोग तब नहीं किया जाना चाहिए, जबकि मजिस्ट्रेट या सत्र न्यायाधीश की राय हो कि कोई अन्य व्यक्ति भी उस अपराध को करने का दोषी हो सकता है। केवल तभी ऐसी शक्ति का प्रयोग किया जाना चाहिए, जबकि किसी व्यक्ति के खिलाफ अदालत को ठोस और पुख्ता सबूत मिले हों, न कि आकस्मिक और लापरवाह तरीके से।

106. इस प्रकार, हम मानते हैं कि हालांकि अदालत के सामने पेश सबूतों से केवल प्रथम दृष्टया मामला स्थापित किया जाना है, जरूरी नहीं कि जिरह के आधार पर परीक्षण किया जाए, इसके लिए उसकी संलिप्तता की संभावना से कहीं अधिक मजबूत सबूत की आवश्यकता होती है। जिस परीक्षण को लागू किया जाना है वह वह है जो प्रथम दृष्टया मामले से अधिक है जैसा कि आरोप तय करने के समय प्रयोग किया जाता है, लेकिन इस हद तक संतुष्टि की कमी है कि सबूत, यदि अखंडित रह जाता है, तो दोषसिद्ध हो जाएगा। इस प्रकार की संतुष्टि के अभाव में, अदालत को धारा 319 सीआरपीसी के तहत शक्ति का प्रयोग करने से बचना चाहिए।

अदालत ने कहा कि धारा 319 सीआरपीसी के तहत शक्ति का प्रयोग उन सभी सबूतों पर निर्भर होगा, जिन्हें किसी दिए गए मामले में पेश किए गए हैं कि क्या अनुच्छेद 105 के अर्थ के तहत एक मजबूत आधार है।

"इस न्यायालय की संविधान पीठ द्वारा धारा 319 सीआरपीसी के तहत शक्ति का आह्वान करने के लिए निर्धारित परीक्षण में अन्य बातों के साथ-साथ यह सिद्धांत भी शामिल है कि जब किसी व्यक्ति के खिलाफ मजबूत और ठोस सबूत होते हैं तो धारा 319 सीआरपीसी के तहत शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है। शक्ति का प्रयोग आकस्मिक और लापरवाह तरीके से नहीं किया जा सकता है। लागू होने वाली परीक्षा, जैसा कि इस न्यायालय द्वारा निर्धारित किया गया है, वह प्रथम दृष्टया मामले से अधिक है, जो आरोप तय करने के समय लागू होता है।"

इसलिए, बेंच ने अपील की अनुमति दी और ट्रायल कोर्ट को उपरोक्त सिद्धांतों के आलोक में मामले पर नए सिरे से विचार करने का निर्देश दिया।

सिटेशन: LL 2021 SC 465

केस: रमेश चंद्र श्रीवास्तव बनाम यूपी राज्य

केस नं. CRA 990 of 2021| 13 September 2021

कोरम: जस्टिस केएम जोसेफ और पीएस नरसिम्हा

प्रतिनिध‌ि: एओआर गौरव श्रीवास्तव (अपीलकर्ता के लिए) एओआर आदर्श उपाध्याय, एडवोकेट ‌अभिषेक चौधरी, एओआर संसृति पाठक(प्रतिवादी के लिए)

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