[सीपीसी की धारा 25] महज याचिका के निपटारे में विलंब के एक मात्र आधार पर इसे एक अदालत से दूसरी अदालत में स्थानांतरित नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट
"प्रत्येक कोर्ट के अपने अधिकार क्षेत्र होते हैं।"
सुप्रीम कोर्ट ने एक स्थानांतरण याचिका खारिज करते हुए कहा है कि याचिका के निपटारे में विलम्ब के एक मात्र आधार पर उस याचिका को एक अदालत से दूसरी अदालत में स्थानांतरित नहीं किया जा सकता।
इस मामले में याचिकाकर्ता ने तेलंगाना हाईकोर्ट में 2016 में दायर एक रिट अपील को दिल्ली हाईकोर्ट स्थानांतरित करने की इजाजत मांगी गयी थी। अपीलकर्ता ने दलील दी थी कि वह सब कुछ गंवा चुका है और अपने बेहतरीन प्रयासों के बावजूद हैदराबाद हाईकोर्ट में उसकी याचिका अंतिम निपटारे के लिए सूचीबद्ध नहीं की जा सकी है। रिट अपील तत्कालीन आंध्र प्रदेश सरकार (अब तेलंगाना) द्वारा शुरू की गयी भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया से संबंधित है।
न्यायमूर्ति वी रमासुब्रमण्यम ने अपीलकर्ता की याचिका में किये गये अनुरोध पर गहरा आश्चर्य व्यक्ति किया।
याचिका खारिज करते हुए न्यायमूर्ति रमासुब्रमण्यम ने कहा,
"प्रत्येक कोर्ट के अपने अधिकार क्षेत्र होते है। इसलिए केवल याचिका के निपटारे में विलंब के एक मात्र आधार पर इसे एक अदालत से दूसरी अदालत में स्थानांतरित नहीं किया जा सकता।"
नागरिक प्रकिया संहिता (सीपीसी) की धारा 25 सुप्रीम कोर्ट को यह शक्ति प्रदान करती है कि वह किसी वाद, अपील या अन्य न्यायिक कार्यवाही को किसी एक राज्य के हाईकोर्ट या अन्य सिविल कोर्ट से दूसरे राज्य के हाईकोर्ट या अन्य सिविल कोर्ट में स्थानांतरित करने का निर्देश दे सकता है, बशर्ते वह इस बात को लेकर संतुष्ट हो कि ऐसा किया जाना न्याय के हक में बेहद जरूरी है।
केस का ब्योरा :-
केस का नाम : मोतीलाल (मृत) (कानूनी प्रतिनिधियों के जरिये) बनाम डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर
केस नं. – ट्रांसफर पिटीशन (सिविल नंबर) – 280/2020
कोरम : न्यायमूर्ति वी रमासुब्रमण्यम
वकील : एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड वरीन्द्र कुमार शर्मा
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