द्वितीयक साक्ष्य पेश करने की अनुमति दी जा सकती है, बशर्ते पार्टी उसका तथ्यात्मक आधार स्थापित करे : सुप्रीम कोर्ट
सु्प्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोई कोर्ट एक पक्षकार को द्वितीयक साक्ष्य पेश करने की अनुमति दे सकता है, बशर्ते वह उस साक्ष्य का तथ्यात्मक आधार स्थापित करे।
न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की खंडपीठ ने कहा कि अदालत के समक्ष महज साक्ष्य पेश कर देने तथा दस्तावेज सौंप देने से यह स्वत: प्रमाणित नहीं हो जाता, जब तक वह कानून के दायरे में प्रमाणित नहीं होता।
इस मामले में, घोषणा संबंधी मुकदमे में वादियों ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65 एवं 66 के तहत ट्रायल कोर्ट में अर्जी दायर की थी और द्वितीयक साक्ष्य के जरिये बाबू सिंह की ओर से अपने पक्ष में किये गये वसीयतनामे की प्रति सत्यापित करने की अनुमति मांगी थी, क्योंकि दाखिल खारिज के लिए ग्राम पटवारी को सौंपा गया मूल वसीयतनामा वापस हासिल नहीं किया जा सका था। हाईकोर्ट ने (संशोधन कार्यवाही में) अर्जी यह कहते हुए खारिज कर दी कि चूंकि वसीयत के अस्तित्व की पूर्व शर्त सत्यापित नहीं हुई है, इसलिए द्वितीयक साक्ष्य की अनुमति देकर वसीयत की प्रमाणिकता को मंजूरी प्रदान नहीं की जा सकती।
सुप्रीम कोर्ट ने अपील की सुनवाई के दौरान साक्ष्य अधिनियम के प्रासंगिक प्रावधानों का संज्ञान लिया और कहा :
"धारा 65 के अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि किसी दस्तावेज के अस्तित्व, शर्त या विषय वस्तुओं के संदर्भ में द्वितीयक साक्ष्य तब दिया जा सकता है जब मूल प्रति उस व्यक्ति के पास हो जिसके खिलाफ दस्तावेज पेश करने की अर्जी दी गयी हो या वैसे किसी व्यक्ति के पास हो जिस तक पहुंचा नहीं जा सकता या जो कोर्ट की प्रक्रिया का हिस्सा न हो, या फिर मूल दस्तावेज वैसे व्यक्ति के पास हो जो कानूनी तौर पर उसे पेश करने के लिए बाध्य तो हो, लेकिन धारा 66 के तहत नोटिस के बाद भी उसने उसे न पेश किया हो।
कानून की नजर में यह तय प्रक्रिया है कि द्वितीयक साक्ष्य स्वीकार करने के लिए इस बात का मूलभूत साक्ष्य देना जरूरी होता है कि मूल साक्ष्य क्यों नहीं पेश किया जा सका?"
इस मामले में पूर्व के कुछ फैसलों का हवाला देते हुए बेंच ने कहा :-
"यह अतिसामान्य बात है कि साक्ष्य अधिनियम, 1872 के तहत तथ्यों को प्राथमिक साक्ष्य द्वारा स्थापित किया जाता है तथा द्वितीयक साक्ष्य उस नियम का अपवाद होता है, जिसके लिए प्राथमिक साक्ष्य के अस्तित्व के लिए मूलभूत तथ्यों को स्थापित किया जाना होता है।
'एच सिद्दिकी (मृत) (कानूनी प्रतिनिधियों के जरिये) बनाम ए रमालिंगम3' के मामले में इस कोर्ट ने दोहराया है कि जहां मूल दस्तावेज बगैर किसी स्वीकार्य कारण के पेश नहीं किया जाता और द्वितीयक साक्ष्य पेश करने के लिए तथ्यात्मक आधार स्थापित नहीं किये जाते, ऐसी स्थिति में कोर्ट पार्टी को द्वितीयक साक्ष्य पेश करने की अनुमति देने का हकदार नहीं है।"
कोर्ट ने मामले के तथ्यों का संज्ञान लेते हुए कहा कि आवेदकों ने द्वितीयक साक्ष्य पेश करने का अधिकार स्थापित करने के लिए तथ्यात्मक आधर प्रस्तुत किये थे।
इसने कहा कि आवेदक विचाराधीन वसीयत के संदर्भ में द्वितीयक साक्ष्य पेश करने के हकदार होंगे, लेकिन ऐसा द्वितीयक साक्ष्य पेश करने की अनुमति का यह अर्थ कतई नहीं है कि इससे उसकी प्रमाणिकता, सत्यता और वास्तविकता स्थापित हो गयी है, क्योंकि इसकी प्रामाणिकता कानून के दायरे में ट्रायल के दौरान स्थापित होगी।
केस नं. : सिविल अपील संख्या 1889/2020
केस नाम: जगमेल सिंह एवं अन्य बनाम करमजीत सिंह
कोरम : न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी
जजमेंट की कॉपी डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें