सीआरपीसी की धारा 256- शिकायतकर्ता, जिसकी पहल ही जांच हो चुकी है, केवल उसकी पेशी न होने पर अभियुक्त को बरी करना उचित नहीं है, : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को एक फैसले में कहा कि जब शिकायतकर्ता की एक गवाह के रूप में पहले ही जांच हो चुकी हो, तब केवल उसकी पेश न होने पर आरोपी को बरी करना , उचित नहीं होगा।
इस मामले में शिकायतकर्ता ने आरोपियों के खिलाफ नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत आठ शिकायतें दर्ज कराई थीं। शिकायतकर्ता का बयान दर्ज किया गया था और उसके साक्ष्य को इस निर्देश के साथ बंद कर दिया गया था कि बचाव पक्ष के साक्ष्य की रिकॉर्डिंग के लिए मामले को सूचीबद्ध किया जाए और दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 311 के तहत आवेदन पर विचार किया जाए।
हालांकि, मजिस्ट्रेट ने बाद में शिकायतकर्ता को पेश न होने पर आपराधिक शिकायत को खारिज कर दिया। दिल्ली हाईकोर्ट ने मजिस्ट्रेट के इस आदेश को बरकरार रखा।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष, यह तर्क दिया गया कि चूंकि शिकायतकर्ता का बयान दर्ज किया गया था और शिकायतकर्ता की जिरह भी की गई थी, शिकायत के समर्थन में रिकॉर्ड पर स्वीकार्य साक्ष्य मौजूद थे।
इन परिस्थितियों में, भले ही शिकायतकर्ता पेश नहीं हुआ था, लेकिन मजिस्ट्रेट मामले को गुण-दोष के आधार पर तय करने के लिए आगे बढ़ सकता था। एसोसिएटेड सीमेंट कंपनी लिमिटेड बनाम केशवानंद (1998) 1 SCC 687 के फैसलों का हवाला देते हुए जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा,
यह निर्धारित किया गया है कि जब शिकायतकर्ता को पहले ही मामले में एक गवाह के रूप में पेश किया जा चुका है, तब केवल शिकायतकर्ता के उपस्थित न होने पर न्यायालय की ओर से दोषमुक्ति का आदेश पारित करना उचित नहीं होगा।
इस प्रकार, दोषमुक्ति के आदेश को रद्द कर दिया गया और यह निर्देशित किया गया कि अभियोजन उस चरण से आगे बढ़ेगा, जहां यह दोषमुक्ति के आदेश पारित होने से पहले पहुंचा था।
पीठ ने कहा कि निचली अदालत के साथ-साथ हाईकोर्ट ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि शिकायत मामलों में शिकायतकर्ता की जिरह पूरी हो चुकी थी और अन्य मामलों में जिरह की मांग नहीं की गई थी।
बेंच ने अपील की अनुमति देते हुए कहा, इस प्रकार नीचे की दोनों अदालतें इस बात पर विचार करने में विफल रहीं कि क्या धारा 256 की उप-धारा (1) के प्रावधान के तहत मामले के तथ्यों में अदालत शिकायतकर्ता की उपस्थिति से छूट के बाद मामले को आगे बढ़ा सकती है।
केस टाइटलः बीएलएस इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड बनाम राजवंत सिंह | 2023 लाइवलॉ (SC) 153 | सीआरए 657-664 ऑफ 2023 | 1 मार्च 2023 | जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस मनोज मिश्रा