सेंट्रल विस्टा परियोजना के खिलाफ याचिका: सुप्रीम कोर्ट 29 जुलाई को करेगा सुनवाई

Update: 2020-07-23 09:37 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सेंट्रल विस्टा परियोजना के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई टाल दी जिसे लुटियंस दिल्ली में एक नई संसद और केंद्र सरकार के अन्य कार्यालयों के निर्माण के लिए निर्धारित किया गया है।

जस्टिस एएम खानविलकर , जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने सॉलिसिटर जनरल की दलील पर ध्यान दिया कि वह आज बहस करने के लिए समय नहीं दे पाएंगे।

इसके आलोक में, इस मामले को स्थगित कर दिया गया, जिसमें पक्षों को अंतरिम में केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (CPWD) को अपना उत्तर (यदि कोई हो) दाखिल करने का निर्देश दिया गया और मामले को 29 जुलाई को आगे के विचार के लिए सूचीबद्ध किया गया।

केंद्र के जवाबी हलफनामे में कहा है कि संसद, मंत्रालयों और विभागों के लिए जगह की वर्तमान और भविष्य की जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ बेहतर सार्वजनिक सुविधाएं, पार्किंग प्रदान करने के लिए पुनर्विकास योजना शुरू की गई है। इसमें

पुनर्विकास योजना की आवश्यकता पर प्रकाश डालने के लिए शताब्दी-वर्ष पुराने निर्माण की जीर्ण स्थिति को संदर्भित किया है और कहा गया है कि केंद्र सरकार को फिलहाल एक हजार करोड़ रुपये सरकारी कार्यालयों के किराए पर खर्च करने पड़ते हैं।

पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने प्रोजेक्ट पर काम रोकने से इनकार कर दिया था। पीठ ने कहा था कि प्राधिकरण को कानून के मुताबिक काम करने से कैसे रोक सकते हैं।

अगर अदालत के मामले की सुनवाई के दौरान सरकार प्रोजेक्ट पर काम जारी रखती है तो ये उसके जोखिम और कीमत पर है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को याचिका में बदलाव करने की इजाजत दी थी और केंद्र को जवाब दाखिल करने को कहा था।

दरअसल सुप्रीम कोर्ट राजीव सूरी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा है जिसमें सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास योजना को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि भूमि उपयोग में अवैध परिवर्तन किया गया है।

यह तर्क दिया गया है कि सरकार की अधिसूचना, 20 मार्च, 2020, जो 19 दिसंबर, 2019 को दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) द्वारा जारी एक सार्वजनिक सूचना को निरस्त करती है, न्यायिक नियमों के खिलाफ है क्योंकि मामला पहले ही सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।

सेंट्रल विस्टा में संसद भवन, राष्ट्रपति भवन, उत्तर और दक्षिण ब्लॉक की इमारतें, जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों और इंडिया गेट जैसी प्रतिष्ठित इमारतें हैं। केंद्र सरकार एक नया संसद भवन, एक नया आवासीय परिसर बनाकर उसका पुनर्विकास करने का प्रस्ताव कर रही है जिसमें प्रधान मंत्री और उपराष्ट्रपति के अलावा कई नए कार्यालय भवन होंगे।

सुप्रीम कोर्ट में केंद्र द्वारा विस्टा के पुनर्विकास योजना के बारे में भूमि उपयोग में बदलाव को अधिसूचित करने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। केंद्र की ये योजना 20 हजार करोड़ रुपये की है। 20 मार्च, 2020 को केंद्र ने संसद, राष्ट्रपति भवन, इंडिया गेट, नॉर्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक जैसी संरचनाओं द्वारा चिह्नित लुटियंस दिल्ली के केंद्र में लगभग 86 एकड़ भूमि से संबंधित भूमि उपयोग में बदलाव को अधिसूचित किया था। आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा जारी मार्च 2020 की अधिसूचना को रद्द करने के लिए अदालत से आग्रह करते हुए, याचिकाकर्ता का तर्क है कि यह निर्णय अनुच्छेद 21 के तहत एक नागरिक के जीने के अधिकार के विस्तारित संस्करण का उल्लंघन है।

इसे एक क्रूर कदम बताते हुए, सूरी का दावा है यह लोगों को अत्यधिक क़ीमती खुली जमीन और ग्रीन इलाके का आनंद लेने से वंचित करेगा।

दिल्ली हाईकोर्ट में राजीव शकधर की एकल पीठ ने 11 फरवरी को आदेश दिया था कि दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) को भूमि उपयोग में प्रस्तावित परिवर्तनों को सूचित करने से पहले उच्च न्यायालय का रुख करना चाहिए। आदेश दो याचिकाओं में पारित किया गया, एक राजीव सूरी द्वारा दायर किया गया और दूसरा लेफ्टिनेंट कर्नल अनुज श्रीवास्तव द्वारा।

सूरी ने सरकार द्वारा प्रस्तावित परिवर्तनों को इस आधार पर चुनौती दी कि इसमें भूमि उपयोग में बदलाव और जनसंख्या घनत्व के मानक शामिल हैं और इस तरह के बदलाव लाने के लिए डीडीए अपेक्षित शक्ति के साथ निहित नहीं है। हालांकि बाद में डिविजन बेंच ने आदेश पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मामले को बड़ा सार्वजनिक हित देखते हुए अपने पास सुनवाई के लिए रख लिया था।  

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