सुप्रीम कोर्ट ने चार सप्ताह बाद याचिका सूचीबद्ध करने संबंधी सितम्बर 2019 के आदेश पर अमल नहीं किये जाने को लेकर रजिस्ट्री से मांगा स्पष्टीकरण
सुप्रीम कोर्ट ने एक प्रार्थी की अग्रिम जमानत याचिका चार सप्ताह के भीतर सूचीबद्ध करने के अपने सितंबर 2019 के आदेश पर अमल न किये जाने को लेकर रजिस्ट्री से स्पष्टीकरण मांगा है। कोर्ट ने यह स्पष्टीकरण उस वक्त मांगा जब उसे पता चला कि याचिका को चार सप्ताह के भीतर सूचीबद्ध करने के उसके सितम्बर 2019 के आदेश पर रजिस्ट्री द्वारा अमल नहीं किया गया। अर्जी लंबित रहने के कारण याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी भी हो गयी और इस प्रकार सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उसकी अग्रिम जमानत याचिका निष्प्रभावी हो गयी।
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने कहा कि इस याचिका की 19 सितम्बर 2019 को हुई सुनवाई के दौरान नोटिस जारी किया गया था, जिसके जवाब के लिए चार सप्ताह का वक्त दिया गया था, लेकिन उसके बाद मामले को 28 अगस्त को (कल) सूचीबद्ध किया गया।
इस बीच, याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी भी हो गयी और उसे नियमित जमानत भी दे दी गयी। जिसके कारण शीर्ष अदालत के समक्ष लंबित यह अग्रिम जमानत याचिका निष्प्रभावी हो गयी। इसके फलस्वरूप कोर्ट ने याचिका का निपटारा कर दिया। हालांकि, बेंच ने कहा कि वह मामले को सूचीबद्ध करने में हुई देरी को लेकर 'परेशान' है।
बेंच ने अपने आदेश में कहा, "हम, हालांकि इस तथ्य को लेकर परेशान हैं कि हमने 19 सितम्बर 2019 को नोटिस जारी करते हुए चार सप्ताह के भीतर जवाब देने का आदेश दिया था। यह याचिका अग्रिम जमानत याचिका से संबंधित थी। लेकिन यह करीब करीब एक साल बाद सुनवाई के लिए पहली बार सामने लाया गया।'' कोर्ट ने रजिस्ट्री को यह स्पष्टीकरण देने को कहा है कि आखिरकार उसके आदेश के अनुसार, चार सप्ताह के बाद मामले, खासकर अग्रिम जमानत जैसी याचिका को, सूचीबद्ध क्यों नहीं किया गया? कोर्ट ने स्पष्टीकरण देने के लिए रजिस्ट्री को दो सप्ताह का वक्त दिया है। खंडपीठ में न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस भी शामिल हैं।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस वर्ष जून में अवमानना के एक मामले में 2017 में दोषी ठहराये जाने के खिलाफ भगोड़े शराब कारोबारी विजय माल्या द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका सूचीबद्ध करने में तीन साल से अधिक समय की देरी के लिए भी रजिस्ट्री से स्पष्टीकरण मांगा था।