सुप्रीम कोर्ट ने फिर दोहराया, मोटर दुर्घटना के मामलों में कैसे तय करें मुआवजा

Update: 2020-02-06 05:01 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने एक दुर्घटना में 100 फीसदी विकलांग हो गई एक लड़की के मुआवजे को बढ़ाते हुए मोटर एक्सिडेंट क्‍लेम के मामलों में मुआवजे के अनुदान के कुछ सिद्धांतों को पर जोर दिया है। जस्टिस एल नागेश्वर राव और दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत उचित मुआवजे के भुगतान की आवश्यकता है और अदालत का यह कर्तव्य है कि वह यह सुनिश्चित करे कि पीड़‌ित को उचित मुआवजा दिया जाए।

पीठ ने विभिन्न फैसलों का उल्लेख करते हुए कहाः

"मानवीय पीड़ा और निजी क्षति को धन में बराबर रखना असंभव है। हालांकि यह वही है जिसे करने का आदेश कानून, अदालतों को देता है। अदालत को मुआवजा दिलाने के लिए विवेकपूर्ण प्रयास करना पड़ता है, ताकि पीड़‌ित के नुकसान की की भरपाई हो सके। एक ओर जहां, मुआवजे का आकलन बहुत रूढ़िवादी ढंग से नहीं किया जाना चाहिए, वहीं दूसरी ओर, मुआवजे का आकलन बहुत उदार होकर भी नहीं किया जाना चाहिए कि वह दावेदार के लिए पुरस्कार बन जाए।

कोर्ट को मुआवजे का मूल्यांकन करते हुए क्षति की मात्रा और क्षति से हुई हानि को ध्यान में रखना चाहिए। ऐसे मुआवजे को ही उचित मुआवजा माना जा सकता है। दुर्घटना लगी शारीरिक चोटों का मुआवजा, दुर्घटनाग्रस्त को जीवन भर के ‌लिए होने वाले नुकसान की क्षतिपूर्ति के लिए पर्याप्त होना चाहिए। मुआवजे के रूप में टोकन रा‌श‌ि नहीं दी जानी चा‌हिए।"

कोर्ट ध्यान दिया कि निचली अदातल ने इस मामले में कुछ मेडिकल बिलों को केवल इसलिए बाहर कर दिया कि उन पर रोगी का नाम नहीं लिखा था। पीठ ने कहा कि केवल उन बिलों का भुगतान करना, जिन्हें दावेदार के नाम से चुकाया गया है, उचित नहीं है।

अटेंडेंट चार्ज के निर्धारण के लिए गुणक विधि

अटेंडेंट चार्ज देने का आदेश देते हुए कोर्ट ने कहा कि गुणक विधि का इस्तेमाल न केवल पीड़ित को होने वाली आय के नुकसान के कारण मुआवजे का निर्धारण करने में किया जाना चाहिए, बल्‍कि अटेंडेंट चार्ज निर्धारित किए जाने में भी किया जाना चाहिए।

100 फीसदी विकलांगता के मामले में मुआवजे का आकलन उदारतापूर्वक करें

पीठ ने कहा कि अदालतों या ट्रिब्यूनल्स को, 100 फीसदी विकलांगता के मामले में, विशेषकर जहां मानसिक विकलांगता भी है, मुआवजे का आकलन करते हुए उदार दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।

पीड़ितों के नुकसान की भरपाई सुनिश्चित करने के लिए दिशानिर्देश

हाईकोर्ट ने इस मामले में मुआवजे की राशि बढ़ाते हुए निर्देश दिया कि अपीलकर्ता को 45 दिनों के भीतर बढ़ी हुई राशि का भुगतान किया जाए। कोर्ट ने कहा कि जनरल मैनेजर, केरल स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन, त्रिवेंद्रम बनाम सुसम्मा थॉमस 1994 एससीसी (2) 176 के मामले में निम्नलिखित दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं, इनका पालन सभी ट्रिब्यूनल और उच्च न्यायालयों को करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पीड़ितों को पैसे का नुकसान न हो।

दिशा निर्देश इस प्रकार हैं-

1)-नाबालिगों के मामले में क्लेम ट्रिब्यूनल को मुआवजे की राशि को लॉन्ग टर्म फिक्स्ड ‌डिपॉजिट में जमा कराने का आदेश जारी करना चाहिए और कम से कम तब तक का ‌‌फ‌िक्‍स्ड ड‌िपॉजिट करवाना चाहिए, जब तक कि पीड़ित बालिग न हो जाए.

अभिभावक या मित्र द्वारा किए गए खर्च को वापस लेने की अनुमति दी जा सकती है;

2)-निरक्षर दावेदारों के मामले में भी क्लेम ट्रिब्यूनल को उपरोक्त (1) प्रक्रिया का पालन करना चाहिए, लेकिन यदि किसी चल या अचल संपत्ति जैसे, कृषि औजार, रिक्शा आदि की खरीद के लिए एकमुश्त भुगतान आवश्यक है, ताकि वह जीविकोपार्जन कर सके तो ऐसे मामले में ट्रिब्यूनल अनुरोध पर विचार करने के बाद यह सुनिश्चित करना चा‌हिए कि राशि वास्तव में उसी उद्देश्य के लिए खर्च की गई हो;

3)-अर्धसाक्षर व्यक्तियों के मामले में, ट्रिब्यूनल को सामन्यताया नाबालिग पीड़‌ित (1) के मामले में तय प्रक्रिया का उपयोग करना चाहिए, हालांकि जब वह संतुष्ट हो जाए, विशेषकर लिख‌ित में दिए कारणों से, कि मुआवजे की पूरी या आंशिक रकम का उपयोग

मौजूदा व्यवसाय विस्तार के ‌लिए या जीविकोपार्जन के लिए (2) में बताई गई संपत्ति खरीदने के लिए आवश्यक है तो ऐसे मामलों में ट्रिब्यूनल को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि राशि का उपयोग उसी उद्देश्य के लिए किया जाए, जिसके लिए मांग की गई है;

4)- साक्षर व्यक्तियों के मामले में भी यदि आयु, आर्थ‌िक पृष्ठभूमि और समाज की दावेदार की स्थिति और ऐसे ही अन्य कारणों के संबंध में हो तो ट्रिब्यूनल दावेदार के हित में और उसे दिए गए मुआवजे की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दृष्टि से प्रक्रिया (1) में उल्ल‌िखित प्रक्रिया का सहारा ले सकती है, जो (2) और (3) में निर्धारित छूट के अधीन होगी;

5)-विधवाओं के मामले में ट्र‌िब्यूनल को (1) में निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए;

6)-व्यक्तिगत चोट के मामलों में यदि आगे उपचार आवश्यक है तो क्लेम्स ट्रिब्यूनल को उक्त दावे को लेकर संतुष्ट होने के बाद, जो लिखित रूप में दर्ज किया जाएगा, उपचार के लिए आवश्यक राशि निकालने की अनुमति देनी चाहिए;

7)- ऐसे सभी मामलों में जिनमें लॉन्ग टर्म फिक्‍स्ड डिपॉजिट में निवेश किया जाता है, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि डिपॉजिट पर किसी भी प्रकार ऋण या अग्रिम रा‌श‌ि नहीं नहीं देगा और निवेश की गई राशि पर ब्याज का भुगतान दावेदार या उसके अभिभावक को सीधे किया जाएगा;

8)- सभी मामलों में ट्र‌िब्यूनल को दावेदारों को इमर्जेंसी की स्थिति में पैसे निकालने की स्वतंत्रता देनी चाहिए;

आम तौर पर याचिका दायर करने की तारीख से ब्याज दिया जाना चाहिए।

ब्याज देने पर पीठ ने कहा:

"आम तौर पर याचिका दायर करने की तारीख से ब्याज दिया जाना चाहिए और अगर अपील में मुआवजे की राशि में वृद्धि की जाती है, तो ब्याज फिर से याचिका दायर करने की तारीख से ही दिया जाना चाहिए। यदि दावेदारों द्वारा अपील अपील दायर करने में विलंब हो या दावेदार की लापरवाही के कारण मामले के निर्णय विलंब हो तो ऐसे असाधारण मामलों में ब्याज बाद की तारीख से दिया जा सकता है। हालांकि, ऐसा करते समय न्यायाधिकरणों / उच्च न्यायालयों को कारण बताना चाहिए।"

इस मामले में, पीठ ने 62,27,000 रुपए का मुआवजा दिया।

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