"हम एक प्रमुख जांच एजेंसी के साथ काम कर रहे हैं": सुप्रीम कोर्ट ने एसएलपी दाखिल करने में 314 दिन की देरी पर सीबीआई की खिंचाई की, जवाबदेही तय करने को कहा
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय जांच ब्यूरो को विशेष अनुमति याचिका दायर करने में देरी के लिए जवाबदेही तय करने का निर्देश दिया है।
जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सीबीआई द्वारा दायर एसएलपी पर विचार किया था जिसने ट्रायल कोर्ट द्वारा दर्ज दोषसिद्धि को पलट दिया था।
पीठ के सामने, एएसजी आरएस सूरी ने कहा कि परिसीमा के आधार पर खारिज करने से निचली अदालत द्वारा व्यक्ति को दोषी ठहराने के फैसले को उच्च न्यायालय द्वारा पलटने से वो छूट जाएगा।
पीठ ने 314 दिनों की देरी पर ध्यान देने के बाद यह टिप्पणी की,
"हम एक प्रमुख जांच एजेंसी, सीबीआई के साथ काम कर रहे हैं! विद्वान एएसजी ने दावा किया है कि परिसीमा के आधार पर खारिज करने से निचली अदालत द्वारा व्यक्ति को दोषी ठहराने के फैसले को उच्च न्यायालय द्वारा पलटने से वो छूट जाएगा। अगर ये ही स्थिति है तो तो पहले सीबीआई को एसएलपी दाखिल करने में 314 दिनों की देरी के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों पर जवाबदेही तय करने के मामले में थोड़ी गंभीरता दिखानी होगी।"
अदालत ने कहा कि सीबीआई ने देरी के लिए कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं दिया है। इस प्रकार हम सीबीआई को जांच का निर्देश देते हैं; हमसे नोटिस जारी करने का अनुरोध करने से पहले, जवाबदेही तय करें और हमारे सामने रखें, अदालत ने दो महीने बाद मामले को सूचीबद्ध करते हुए कहा।
जस्टिस कौल की अध्यक्षता वाली पीठ एसएलपी दाखिल करने में देरी के लिए सरकार और लोक प्राधिकारियों की जुर्माना लगाकर खिंचाई कर रही है।
न्यायालय ने 6616 दिनों की देरी के साथ केंद्र सरकार द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका को खारिज करते हुए टिप्पणी की थी,
"भारत संघ के दृष्टिकोण, जिसके तहत वर्तमान में विशेष अनुमति याचिका दायर की है, वह हमें हताश करती है।"
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