इलाहाबाद HC में जज के तौर पर नियुक्ति के लिए SC कॉलेजियम में सिफारिश न करने पर UP के 7 न्यायिक अफसरों की याचिका पर SC ने नोटिस जारी किया
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए 14 अगस्त, 2020 की सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश में उत्तर प्रदेश राज्य से कुछ न्यायिक अधिकारियों को शामिल न करने को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया है।
एडवोकेट अरुणा गुप्ता के माध्यम से राज्य के सात न्यायिक अधिकारियो द्वारा दायर की गई याचिका में कॉलेजियम से उनके मामलों में पुनर्विचार के लिए आग्रह किया है। उन्होंने प्रस्तुत किया है कि जबकि हाईकोर्ट कॉलेजियम ने उनके नाम की सिफारिश की थी, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने केवल जिला और सत्र न्यायाधीश सुभाष चंद को ही पदोन्नति देने का प्रस्ताव किया है।
उसी को विवादित करते हुए उन्होंने कहा कि उनके मामलों को "शायद इस आधार पर नहीं माना गया है कि उन्होंने न्यायिक कार्यालय की 10 साल की अवधि पूरी नहीं की है।"
उन्होंने प्रस्तुत किया है कि उनकी नियुक्तियों को जनवरी 2007 से प्रभावी रूप से पूर्वव्यापी बना दिया गया था और इलाहाबाद उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय दोनों ने ही इसे बरकरार रखा था।
इस संदर्भ में उन्होंने तर्क दिया है कि वे सुभाष चंद के समान बैच के हैं और वे उसी समय उच्च न्यायिक सेवाओं में शामिल हुए थे।
उन्होंने आगे बताया है कि सुभाष चंद यूपी न्यायक सेवा से इस्तीफा देने के बाद दिसंबर, 2011 या जनवरी, 2012 में एक वकील के रूप में न्यायिक सेवा में शामिल हुए। इस प्रकार, यह माना गया है कि उनकी न्यायिक सेवा में ब्रेक था और उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा में उनकी सेवाओं को न्यायिक कार्यालय के 10 वर्ष की अवधि की गणना के उद्देश्य से शामिल नहीं किया जा सकता था, जैसा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 217 (2) (a) के तहत प्रदान किया गया है।
गौरतलब है कि दो न्यायिक अधिकारी पिछले साल सेवानिवृत्त हुए उन्होंने हालांकि दलील दी है, "न्यायिक सेवा कैडर से उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए सिफारिश करने के संबंध में आयु प्रतिबंध को लागू करने से प्राप्त किए गए उद्देश्य के लिए कोई सांठगांठ नहीं है और यह अनिवार्य भी नहीं है, क्योंकि कई बार इतने सारे न्यायिक अधिकारियों को उनकी सेवानिवृत्ति के बाद भी विभिन्न उच्च न्यायालयों में जज नियुक्त किया गया है।"
बॉम्बे हाईकोर्ट का उदाहरण देते हुए जिसमें 3 न्यायिक अधिकारी, जिन्होंने 58 ½ साल की निर्धारित आयु सीमा को पार कर लिया था, को बहुत सारे लंबित पड़े मामलों को पूरा करने के लिए हाईकोर्ट जज नियुक्त किया गया।
याचिकाकर्ताओं ने इस प्रकार प्रस्तुत किया:
"इलाहाबाद के माननीय उच्च न्यायालय में सिविल साथ ही साथ आपराधिक मामलों की विशाल लंबितता के बावजूद 01/04/2019 को और 01/08/2020 को जजों के 51 और 61 पद रिक्त थे।"