सुप्रीम कोर्ट हाइब्रिड सुनवाई के लिए एसओपीः बीसीआई ने SCBA को पत्र लिखकर बातचीत के माध्यम से समाधान निकालने और सीजेआई से एसोसिएशन के साथ बैठक करने का अनुरोध किया

Update: 2021-03-25 10:30 GMT

बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने अपने अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन को संबोधित करते हुए एक पत्र लिखकर एसोसिएशन की उस मांग का समर्थन किया गया है, जिसमें कहा गया है कि एसओपी (मानक संचालन प्रक्रिया) को अंतिम रूप देने से पहले सुप्रीम कोर्ट को उनके विचार जानने के लिए बार को आमंत्रित करना चाहिए था।

हालाँकि, पत्र में एसोसिएशन के सदस्यों से भी यह आग्रह किया गया है कि वह इसे प्रतिष्ठा/व्यक्तिगत मुद्दा न बनाएं और इस मुद्दे को केवल बातचीत के माध्यम से हल किया जाना चाहिए और जल्दबाजी में कोई निर्णय नहीं लिया जाना चाहिए।

यह पत्र एससीबीए की तरफ से की जा रही लगातार उन मांगों की पृष्ठभूमि में लिखा गया है,जिसमें कहा गया है कि उक्त एसओपी (5 मार्च को) को जारी करने से पहले रजिस्ट्री को बार के साथ परामर्श करना चाहिए था।

यह ध्यान दिया जा सकता है कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 15 मार्च 2021 से हाइब्रिड तरीके से मामलों की सुनवाई शुरू करने का फैसला(5 मार्च को जारी एसओपी के अनुसार) किया था।

पत्र में आगे कहा गया है कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया खुद '' फिजिकल सुनवाई के अलावा'' कुछ भी नहीं चाहता है और काउंसिल ने भी ''सुनवाई के हाइब्रिड मोड की अवधारणा'' का विरोध किया है।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) ने शीर्ष अदालत के समक्ष एक याचिका दायर की थी जिसमें सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री की तरफ से जारी उस मानक संचालन प्रक्रिया को रद्द करने की मांग की गई थी,जो 15 मार्च से 'हाइब्रिड फिजिकल सुनवाई' को सक्षम बनाने के लिए जारी की गई थी।

हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (23 मार्च) को एससीबीए द्वारा दायर रिट याचिका में कार्यवाही को यह देखते हुए बंद कर दिया कि इस मामले को अदालत के न्यायिक पक्ष द्वारा नहीं निपटाया जा सकता है।

कोर्ट के समक्ष एससीबीए के अध्यक्ष द्वारा दिए गए तर्कों का उल्लेख करते हुए, बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष ने अपने पत्र में कहा है कि,

''आपने देखा होगा! उच्चतम न्यायालय (2 दिन पहले) के समक्ष श्री विकास सिंह द्वारा दिए गए तर्कों को कितने गलत तरीके से मीडिया द्वारा प्रसारित किया जा रहा है। कई सदस्यों का विचार है कि इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट के न्यायिक पक्ष में जाने की कोई आवश्यकता नहीं थी और न्यायालय में इस तरह के आक्रामक तर्कों का भी कोई औचित्य नहीं था। हमें पहले सम्मान देना चाहिए, तभी हमें सम्मान मिलने की उम्मीद करनी चाहिए''

यह ध्यान दिया जा सकता है कि सुनवाई के दौरान एससीबीए के अध्यक्ष ने कहा था,

''जो हमे परेशान कर रहा है वो यह है कि हमें बताया भी नहीं गया! कोई सूचना नहीं दी गई थी! हमें बैठक के लिए भी नहीं बुलाया गया था! आपकी लाॅर्डशिप ने एक न्यायिक आदेश पारित किया था, क्या उसका कोई मूल्य नहीं है? यह चीजों के बारे में जाने का कोई तरीका नहीं है!यह हमारे सदस्यों के लिए मौलिक अधिकारों का मामला है जो इस समय समस्या में हैं! हमसे सलाह भी नहीं ली गई थी!? हमने बैठकें करने की पूरी कोशिश की, लेकिन हमें बिल्कुल नहीं बुलाया गया! क्या हम संस्था में हितधारक नहीं हैं?''

इस पर जस्टिस कौल ने कहा, ''अगर आप इसे इतना ऊंचा रखते हैं, तो जटिलताएं होंगी। क्या बार रजिस्ट्री चलाने के लिए है?''

उन्होंने आगे कहा,

''तो रजिस्ट्री एक निर्णय लेती है और न्यायाधीश हमसे नहीं मिल सकते? मुझे न्यायाधीशों से मिलने में कोई दिलचस्पी नहीं है! यह बार के लिए है जिसके लिए मैं करना चाहता हूं!'' विकास सिंह बहस कर रहे थे तो पावनी ने उन्हें शांत करने की कोशिश की, ''कृपया, सर, कृपया ... मुझे क्षमा करें, लॉर्डशिप।''

जस्टिस कौल ने कहा, ''आज के समाज में, हर कोई एक जुझारू मनोदशा में है! आप कृपया करें जो करना चाहते हैं!''

सिंह ने कहा, ''बहुत अच्छी तरह से! हम जो भी करेंगे अब हम करेंगे! चलो देखते हैं कि हम कहां जाते हैं! अगर आपको लगता है कि न्यायाधीश कानून से ऊपर हैं, तो हमें कानून को अपने हाथों में लेना होगा!''

सीजेआई से अनुरोध किया

पत्र में अनुरोध किया गया है कि 7-न्यायाधीशों की समिति को एससीबीए/ एससीएओआरए के अध्यक्ष और अन्य नेताओं को आमंत्रित करना चाहिए ताकि एसओपी पर चर्चा की जा सकें और उनकी वास्तविक चिंताओं पर विचार हो पाए।

पत्र में आगे कहा गया है,

''मैं 7 न्यायाधीशों की समिति के माननीय अध्यक्ष और अन्य माननीय सदस्यों से अनुरोध करता हूं कि वे होली की छुट्टियों के बाद कोर्ट ओपन होते ही एक बैठक बुलाएं और एससीबीए व एससीएओआरए को एसओपी पर उनके विचार रखने का पर्याप्त अवसर दिया जाए।''

पत्र के अंत में कहा गया है,

''हम यहां संस्थान की रक्षा के लिए हैं और दूसरों की गलतियों के कारण इसे नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं। मुझे यकीन है कि इस मुद्दे को सबसे सम्मानजनक और आदरपूर्वक तरीके से हल किया जाएगा। लेकिन दोनों पक्षों को एक दूसरे को सम्मान और उचित महत्व देना होगा।''

पत्र को भारत के मुख्य न्यायाधीश को भी भेजा गया है और उनसे अनुरोध किया गया है कि वह मामले में तत्काल आवश्यक कार्रवाई के लिए सर्वोच्च न्यायालय-समिति के सभी 7-न्यायाधीशों के समक्ष इसे रखें।

पत्र डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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