लॉकडाउन की अवधि को चेक / डिमांड ड्राफ्ट की प्रस्तुति से बाहर करने की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उस जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें चेक / डिमांड ड्राफ्ट की प्रस्तुति के लिए सीमा की गणना के लिए लॉकडाउन की समय अवधि को बाहर करने के लिए राहत की मांग की गई थी।
जनहित याचिका को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति आर बानुमति, न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा कि
"हमारे विचार में, यह भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा लिया जाने वाला एक नीतिगत निर्णय है जिसके बारे में न्यायालय कोई निर्देश जारी नहीं कर सकता है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर रिट याचिका को खारिज किया जाता है क्योंकि ये सुनवाई योग्य नहीं है।"
याचिका वकील हर्ष नितिन गोखले ने पार्टी-इन-पर्सन के रूप में दायर की थी। याचिकाकर्ता ने सुओ मोटो रिट पिटीशन (WP-3/2020) में सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश का उल्लेख किया, जिसमें मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, परक्राम्य लिखत अधिनियम ( NI) के तहत कार्यवाही दाखिल करने के लिए सीमा की अवधि बढ़ाई गई, और लॉकडाउन की अवधि के लिए चेक, डिमांड ड्राफ्ट आदि जैसे बैंकिंग उपकरण पेश करने के लिए सीमा की छूट मांगी, जिन्हें जारी करने की तारीख से 3 महीने पहले प्रस्तुत किया जाना आवश्यक है।
4 नवंबर, 2011 को जारी आरबीआई के निर्देश के अनुसार, बैंकिंग उपकरणों (चेक / डिमांड ड्राफ्ट) को जारी करने की तारीख से 3 महीने के भीतर नकदीकरण के लिए प्रस्तुत किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता ने कहा कि COVID-19 महामारी के कारण लॉकडाउन अवधि के दौरान, लोग अपने चेक या बैंकिंग उपकरणों को पेश करने में सक्षम नहीं हुए हैं।
याचिका में कहा गया है कि
"चूंकि उपकरण पुराना हो जाएगा, भुगतान लेने वाले को बैंकिंग साधन को वापस करने का अधिकार खो जाएगा और भुगतानकर्ता के खिलाफ आगे बढ़ने के लिए उसके बहुमूल्य अधिकारों को खत्म कर दिया जाएगा नियत समय में काम ना करने को प्राप्तकर्ता की लापरवाही माना जाएगा।। इस तरह की पीड़ा को आसानी से दूर किया जा सकता है, अगर इस तरह के बैंकिंग साधनों की प्रस्तुति के लिए सीमा को लॉकडाउन की अवधि के लिए आराम दिया जाता है तो।"
पिछले सप्ताह, दिल्ली हाईकोर्ट ने आरबीआई से एक याचिका पर प्रतिक्रिया मांगी थी जिसमें परक्राम्य लिखत ( नेशोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट ) की वैधता के लिए लॉकडाउन की अवधि को बाहर करने के लिए एक समान दिशा- निर्देश की मांग की गई थी।
हाईकोर्ट ने कहा कि एक ही लॉकडाउन के दौरान बैंकों की अक्षमता के कारण किसी चेक के पुराने होने की स्थिति "दुर्भाग्यपूर्ण" है।
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