सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों को चुनाव में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले प्रत्याशियों की जानकारी अपलोड करने को कहा
राजनीति के अपराधीकरण से चिंतित सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए राजनीतिक दलों को चुनाव के दौरान आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को टिकट देने पर अहम कदम उठाया है।
जस्टिस आर एफ नरीमन और जस्टिस एस रवींद्र भट की पीठ राजनीति के अपराधीकरण के "खतरनाक" प्रवृति को ध्यान में रखते हुए गुरुवार को निर्देश दिया कि सभी राजनीतिक दल लोकसभा और विधानसभा चुनावों में उम्मीदवार के चयन के 48 घंटे के भीतर या नामांकन के दो सप्ताह के भीतर जो भी पहले हो, अपने उम्मीदवारों के आपराधिक केसों का विवरण प्रकाशित करने करे। इस जानकारी को स्थानीय समाचार पत्रों में प्रकाशित किया जाना चाहिए, और आधिकारिक वेबसाइटों और पार्टियों के सोशल मीडिया हैंडल में अपलोड किया जाना चाहिए। सूचना में अपराध की प्रकृति और ट्रायल / जांच का चरण भी बताया जाना चाहिए।
कोर्ट ने माना कि उम्मीदवारों का चयन योग्यता और उपलब्धि के आधार पर किया जाना चाहिए। उम्मीदवार चुनने के कारणों को पार्टी द्वारा प्रकाशित किया जाना चाहिए। पीठ ने टिप्पणी की, " जीतने की संभावना आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार का चयन करने का एकमात्र कारण नहीं हो सकता है।"
पीठ ने कहा कि निर्देशों के संबंध में अनुपालन रिपोर्ट चुनाव आयोग के समक्ष सभी पक्षों द्वारा दायर की जानी चाहिए। ऐसा करने में विफलता के कारण अवमानना कार्रवाई हो सकती है, पीठ ने चेतावनी दी। चुनाव आयोग को इसका पालन करने के लिए कहा गया है।
अदालत ने 25 जनवरी को इस मुद्दे का परीक्षण करने पर सहमति जताई थी कि क्या राजनीतिक पार्टियों को आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को चुनाव में टिकट देने से रोका जा सकता है।
जस्टिस आर एफ नरीमन और जस्टिस एस रवींद्र भट की पीठ ने इसे राष्ट्रहित का मामला बताते हुए कहा था कि इस समस्या को रोकने के लिए कुछ कदम उठाने होंगे।
पीठ ने चुनाव आयोग और याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय को एक सप्ताह के भीतर के सामूहिक प्रस्ताव देने के निर्देश दिए थे।
दरअसल पीठ वकील और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की अवमानना याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें कहा गया था कि इस मामले में 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार और उनकी राजनीतिक पार्टियां आपराधिक केसों की जानकारी वेबसाइट पर जारी करेंगी और नामांकन दाखिल करने के बाद कम से कम तीन बार इसके संबंध में अखबार और टीवी चैनलों पर देना होगा लेकिन इस संबंध में कदम नहीं उठाया गया।
चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने पीठ को बताया था कि अदालती आदेश का कोई असर नहीं हुआ है क्योंकि 2019 में लोकसभा चुनाव जीतने वाले 43 फीसदी नेता आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं। ऐसे में बेहतर तरीका ये है कि राजनीतिक दलों को ही कहा जाए कि वो ऐसे उम्मीदवारों को ना चुनें। पीठ ने इससे सहमति जताते हुए कहा था कि ये अच्छा सुझाव है। पीठ ने दोनों पक्षों के वकीलों को बैठकर एक सुझाव देने को कहा था।