आरएसएस का रूट मार्च: तमिलनाडु सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा, मद्रास हाईकोर्ट की खंडपीठ बिना शर्त मार्च की अनुमति दी थी

Update: 2023-03-27 10:08 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार की एक याचिका, जिसमें मद्रास हाईकोर्ट की खंडपीठ के एक आदेश को चुनौती दी गई थी, पर सोमवार को फैसला सुरक्षित रख लिया।

दरअसल मद्रास हाईकोर्ट की एक सिंगल जज बेंच ने आरएसएस पर रूट मार्च करने के लिए कई शर्तें लगाईं ‌थी, जबकि उसी कोर्ट की दो जजों की बेंच ने आरएसएस को सिंगल जज की किसी भी शर्त का माने बिना रूट मार्च करने की अनुमति दी थी।

राज्य सरकार और आरएसएस की ओर पेश वकीलों की दलीलों को सुनने के बाद जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन ने कहा, "हम विचार करेंगे और एक आदेश पारित करेंगे।"

खंडपीठ में जस्टिस पंकज मित्तल भी शामिल थे।

RSS को जुलूस निकालने पूर्ण प्रतिबंध नहीं

आरएसएस की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट महेश जेठमलानी ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 19(1)(बी) के तहत शांतिपूर्ण तरीके से इकट्ठा होने के अधिकार को बिना किसी आधार के अभाव में कम नहीं किया जाना चाहिए।

उन्होंने राज्य सरकार की ओर से लगाई गई शर्त पर सवाल उठाया कि जुलूस घर के अंदर ही आयोजित किया जाना चाहिए, उन्होंने कहा, “जब उन्होंने जुलूस निकालने का प्रस्ताव किया तो यह केवल उन्हीं के लिए नहीं था। वे एक सार्वजनिक बयान दे रहे थे। यह एक अधिकार है - आपको जो कहना है उसे कहना या सार्वजनिक स्तर पर प्रासंगिक मुद्दों को सभी के सामने रखना...

सरकार के फैसले के बचाव में सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने कहा, "जिस तरह पूर्ण प्रतिबंध नहीं हो सकता है, उसी तरह पूर्ण अधिकार नहीं हो सकता है।"

उन्होंने पूछा,

"क्या हर मामले में इंडिया गेट या सुप्रीम कोर्ट से मार्च करने का निहित अधिकार है? क्या किसी संगठन के पास, वह जहां चाहे वहां जुलूस निकालने का पूर्ण अधिकार हो सकता है?” 

उन्होंने पीठ को बताया कि राज्य सरकार ने सार्वजनिक व्यवस्था और शांति के लिए आरएसएस को कुछ स्थानों पर रूट मार्च निकालने की अनुमति दी थी, जबकि उन्हें घर के अंदर उपयुक्त वैकल्पिक व्यवस्था करने का निर्देश दिया था या अन्य स्थानों पर उनके अनुरोध को पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया था।

PFI हमले की धमकी का हवाला देकर राज्य अनुमति से मना नहीं कर सकता

रोहतगी ने अदालत से कहा कि तमिलनाडु सरकार ने आरएसएस को जुलूस निकालने या अन्य मामलों में शर्तों के साथ अनुमति देने का फैसला खुफिया रिपोर्ट और खतरे की आशंका के आधार पर किया था।

हालांकि, जेठमलानी ने प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया और आरएसएस के सदस्यों के बीच झड़पों का हवाला देते हुए संगठन की अनुमति से इनकार करने के राज्य सरकार के फैसले की गंभीरता पर सवाल उठाया।

उन्होंने कहा,

“ये ऐसी घटनाएं नहीं हैं जहां आरएसएस ने रूट मार्च निकाला, लेकिन ऐसे उदाहरण हैं जहां हम शांति से बैठे थे, लेकिन कुछ गुंडों ने हम पर हमला किया। तथ्य यह है कि एक प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन ने इस संगठन के सदस्यों पर हमला करना जारी रखा है, यह गंभीर चिंता का विषय है। इसे कानून और व्यवस्था के आधार के रूप में नहीं लिया जा सकता है। यह शर्मनाक है, खासकर तब जब राज्य सरकार को पीएफआई और सहयोगी संगठनों पर और भी सख्ती से कार्रवाई करनी चाहिए। लेकिन या तो वे इसे नियंत्रित नहीं कर सकते, या वे नहीं चाहते क्योंकि उनकी सहानुभूति पीएफआई के साथ है।"

आरएसएस की ओर से पेश एक और वकील, सीनियर एडवोकेट गुरु कृष्ण कुमार ने कहा, “राज्य के लिए कानून और व्यवस्था बनाए रखने की अपनी जिम्मेदारी से बचना और आरएसएस को इस आधार पर अनुमति देने से इनकार करना जायज़ नहीं है कि किसी अन्य संगठन के सदस्य हमला कर सकते हैं।”

इस संबंध में जेठमलानी ने यह भी तर्क दिया कि राज्य सरकार के पास इस बात का कोई सबूत नहीं है कि केंद्र सरकार द्वारा पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने के बाद कानून-व्यवस्था का कोई मुद्दा बना रहा।

“अनिवार्य निष्कर्ष यह है कि पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने से कानून और व्यवस्था बहाल हो गई है। वे कानून-व्यवस्था के मुद्दे पैदा कर रहे थे और हमारे सदस्यों पर हमला कर रहे थे। यह असहनीय है कि इस दिखावटी आधार पर पर सरकार ने हमारे रूट मार्च को रोकने की मांग की है।”

पृष्ठभूमि

तमिलनाडु सरकार ने मद्रास हाईकोर्ट की एक खंडपीठ के एक आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, जिसने राज्य में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रस्तावित रूट मार्च पर सिंगज जज बेंच की ओर से लगाई गई शर्तों को रद्द कर दिया था।

संगठन ने एकल-न्यायाधीश पीठ के नवंबर 2022 के उस आदेश के खिलाफ अपील की थी, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ मैदान और स्टेडियम जैसे परिसरों में जुलूस आयोजित करने, लाठी या अन्य हथियार, जिससे चोट लग सकती है, नहीं ले जाने के निर्देश जारी किए गए थे।

इस आधार पर निर्देशों पर आपत्ति जताने के अलावा कि उन्हें एक अवमानना याचिका में पारित नहीं किया जा सकता था, आरएसएस ने यह भी तर्क दिया कि सार्वजनिक जुलूस संवैधानिक रूप से बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देने का एक स्वीकार्य तरीका था, जिसकी रक्षा करना राज्य का दायित्व था। हालांकि, राज्य सरकार ने सार्वजनिक सुरक्षा के लिए खतरों का हवाला देते हुए अपने फैसले का बचाव किया, उन्होंने दावा किया कि खुफिया रिपोर्टों में ऐसी जानकारी मिली है।

जस्टिस आर महादेवन और जस्टिस मोहम्मद शफीक की पीठ ने इस साल फरवरी में आरएसएस के पक्ष में फैसला सुनाया था, जिसमें कहा गया था कि राज्य को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नागरिक के अधिकार को बनाए रखना चाहिए। इसलिए, अदालत ने संगठन को तीन अलग-अलग तारीखों पर रूट मार्च करने के लिए नए सिरे से आवेदन दायर करने का निर्देश दिया और राज्य पुलिस को निर्देश दिया कि उन्हें किसी भी तारीख को उक्त जुलूस निकालने की अनुमति दी जाए।

बाद में फरवरी में, तमिलनाडु सरकार ने विशेष अनुमति याचिका के माध्यम से खंडपीठ के फैसले के खिलाफ अपील की। 3 मार्च को, रोहतगी ने स्वीकार किया कि राज्य सरकार राज्य में संगठन द्वारा प्रस्तावित रूट मार्च के पूरी तरह से विरोध नहीं कर रही थी। हालांकि, उन्होंने कहा कि जनता की सुरक्षा के हित में सरकार कुछ प्रतिबंध लगाना चाहती है। पिछली तारीख पर, सीनियर एडवोकेट ने पीठ को सूचित किया कि उसने एक और विशेष अनुमति याचिका दायर की थी जिसमें एकल न्यायाधीश द्वारा संगठन को राज्य में जुलूस निकालने की अनुमति देने के मूल आदेश को चुनौती दी गई थी।

केस टाइटलः फणींद्र रेड्डी, आईएएस व अन्य। वी. जी. सुब्रमण्यन | 2023 की विशेष अनुमति याचिका (सिविल) संख्या 4163

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