बलात्कार के आरोपी ने दायर की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका, 'लापता' शिकायतकर्ता को पेश करने की मांग की

सुप्रीम कोर्ट में दायर एक दुर्लभ याचिका में एक बलात्कार के आरोपी ने उस पर आरोप लगाने वाली महिला का पता लगाने और उसे अदालत में पेश करने के लिए निर्देश दिए जाने की मांग की है। याचिकाकर्ता ने अपना मूल नाम छिपाते हुए खुद को 'निर्दोषी' नाम दिया है और बंदी प्रत्यक्षीकरण (हैबियस कार्पस) याचिका दायर की।
याचिकाकर्ता ने बताया है कि वह वर्ष 2017 में दर्ज एक फर्जी बलात्कार की शिकायत का पीड़ित है। अब शिकायत करने वाली महिला गायब हो गई है और इसलिए अब आरोपों को गलत साबित करना असंभव हो गया है।
याचिका के अनुसार बलात्कार का आरोप याचिकाकर्ता की पुत्रवधू के कहने पर लगाया गया है, जो अपने खराब वैवाहिक संबंध के चलते कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग कर रही है। याचिकाकर्ता ने बताया कि उसकी पुत्रवधू ने अपने बेटे के साथ अपने प्रेमी (जो एक पुलिस अधिकारी बताया जा रहा है) के साथ जाने के लिए रास्ते बनाए थे और उसके बाद उसने घरेलू हिंसा के झूठे मामले दायर किए।
बाद में 2017 में एक महिला ने प्राथमिकी दर्ज कराई जिसमें आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ता ने उसके साथ बलात्कार किया है और उसके बेटे ने इस अपराध के लिए उसे उकसाया था। याचिकाकर्ता ने कहा कि उसके बेटे को इस मामले में गिरफ्तार किया गया था और उसे हिरासत में रहना पड़ा था, जहां पुलिस ने उसके साथ क्रूरता की थी या पुलिस की क्रूरता का सामना करना पड़ा था।
याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि उसने दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर करके बलात्कार के मामले की जांच सीबीआई से करवाने की मांग की है, जो वर्तमान में लंबित है। अब महिला लापता हो गई है और उसका मोबाइल नंबर और पता फर्जी पाए गए हैं।
यह कहते हुए कि अब महिला-शिकायतकर्ता के गायब होने के मद्देनजर 'बलात्कारी टैग' से छुटकारा पाना असंभव हो गया है, इसलिए याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट की शरण में आया है।
अधिवक्ता विल्स मैथ्यू के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि
''हरियाणा के भिवानी का रहने वाला याचिकाकर्ता पेशे से एक मेहनती किसान है, एक सम्मानित परिवार से है और वर्तमान में शेष समाज से अलग-थलग है और किसी को अपना सही नाम और पता देने से भी डर रहा है। चूंकि यह याचिकाकर्ता के पहले से ही अपमानित परिवार का अपमान है और यहां तक कि उस गांव का भी अपमान है जहां से वह संबंध रखता है, क्योंकि वहां नैतिक मूल्य बहुत मायने रखते हैं।
यहां तक कि नौकरी के लिए या पासपोर्ट के लिए आवेदन करने पर याचिकाकर्ता और उसके बेटे को आईपीसी की धारा 376 के तहत दर्ज इस अपराध का खुलासा करना पड़ता है और सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए ,याचिकाकर्ता के लिए अब गरिमापूर्ण जीवन या सामाजिक जीवन के संदर्भ में अच्छे भविष्य की कोई संभावना नहीं है।
कोई भी परिवार अब याचिकाकर्ता के परिवार के साथ गठबंधन या दोस्ती करना पसंद नहीं करेगा और चाहे दोषी ठहराया जाए या उनको बरी कर दिया जाए। याचिकाकर्ता को अब अपना जीवन ''रेपिस्ट टैग'' के साथ जीना पड़ेगा, जो बहुत अपमानजनक, गरिमा को गंभीर रूप से प्रभावित करने वाला और अत्यंत दर्दनाक है।''
याचिकाकर्ता ने कहा कि वह अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए ''नार्को-एनालिसिस'' टेस्ट कराने के लिए भी तैयार था।
याचिका में कहा गया है कि एक बार आईपीसी की धारा 376 के तहत अपराध के लिए एफआईआर दर्ज होने के बाद अभियुक्त को गिरफ्तार किया जाता है या जमानत दे दी जाती है। याचिकाकर्ता/अभियुक्त के पास अपनी कुछ गरिमा को वापस पाने का केवल एक ही रास्ता होता है वो है कि वह मुकदमे का सामना करे। अगर उसमें विफल हो जाता है तो ''आम लोग अनुमान लगाते हैं'' कि याचिकाकर्ता/ अभियुक्त ने जघन्य अपराध किया है और इस मामले को शिकायतकर्ता के साथ मिलकर सुलझा लिया है, जो गंभीर रूप से गरिमापूर्ण जीवन को प्रभावित करेगा, इसलिए शिकायतकर्ता को पेश करने लिए वर्तमान रिट याचिका दायर की है।''
याचिका में कहा गया है कि जघन्य अपराधों में झूठे आरोप लगाने की घटना विशेष रूप से निर्दोष नागरिकों पर बलात्कार के आरोप लगाने और फिर अच्छी रकम का भुगतान लेकर मामले को निपटाने की घटना भारत में एक संगठित अपराध के रूप में विकसित हो रही है।
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि शिकायकर्ता महिला पुलिस की ''अवैध हिरासत ''में है और इसलिए बंदी प्रत्यक्षीकरण की मांग की गई है।
याचिका में कहा गया है कि ''असल शिकायतकर्ता, चाहे वह इंसान हो या आभासी, वह पुलिस की गैरकानूनी हिरासत में है और वे उसे अदालत के समक्ष पेश करने के लिए बाध्य हैं। ऐसा करने में विफल होने पर यह निष्पक्ष सुनवाई को प्रभावित करेगा।''