Provident Fund | ईपीएफ एक्ट कवरेज के लिए दो प्रतिष्ठानों को एक साथ कब जोड़ा जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने समझाया
सुप्रीम कोर्ट की डिवीजन बेंच ने हाल ही में कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम, 1952 (ईपीएफ एक्ट) के तहत कवरेज के उद्देश्य से विभिन्न संस्थानों को क्लब करने से संबंधित कानूनी स्थिति निर्धारित की है।
विषय वस्तु के संबंध में कई निर्णयों का उल्लेख करने के बाद न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि दोनों संस्थानों के बीच वित्तीय अखंडता है। इस प्रकार, उन्हें आपस में जोड़ा जा सकता है और कवरेज के उद्देश्य से एक साथ जोड़ा जा सकता है।
मौजूदा मामले में दोनों संस्थान एक ही सोसायटी यानी आइडियल फाइन आर्ट्स सोसायटी द्वारा चलाए जा रहे है। जबकि आइडियल इंस्टीट्यूट नामक संस्थान की स्थापना वर्ष 1965 में की गई थी, जबकि दूसरे यानी आर्ट्स कॉलेज (अपीलकर्ता) की स्थापना लगभग 20 साल बाद यानी वर्ष 1985-86 में की गई। यदि दोनों संस्थानों में कार्यरत कर्मचारियों को जोड़ दिया जाए तो कुल कर्मचारियों की संख्या 26 होगी, जो ईपीएफ एक्ट की धारा 1(3)(बी) के संदर्भ में कवरेज के लिए पर्याप्त होगी, जो निर्धारित करती है कि एक संस्थान में 20 या अधिक व्यक्तियों को ईपीएफ एक्ट के प्रावधानों के तहत कवर किया जाना चाहिए। इसके अलावा, दोनों संस्थान एक ही परिसर में चल रहे हैं।
जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस राजेश बिंदल की खंडपीठ ने संबंधित दस्तावेजों की जांच के बाद कहा:
"रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री और कानून की स्थापित स्थिति के अवलोकन से यह सुरक्षित रूप से माना जा सकता है कि अपीलकर्ता की सोसायटी के साथ-साथ आइडियल इंस्टीट्यूट के बीच वित्तीय अखंडता है, क्योंकि संस्थानों को पर्याप्त धनराशि दी गई है। इसके अलावा, दोनों संस्थान एक ही परिसर से काम कर रहे हैं।
विस्तृत पृष्ठभूमि और कार्यवाही के पिछले चरण
वर्तमान मामले के तथ्य इस प्रकार हैं कि आइडियल फाइन आर्ट्स सोसाइटी दो संस्थान चलाती है, जिनके नाम हैं, 'आइडियल इंस्टीट्यूट ऑफ फाइन आर्ट्स' और 'माथोश्री माणिकबाई कोठारी कॉलेज ऑफ विजुअल आर्ट्स'। आइडियल इंस्टीट्यूट और आर्ट्स कॉलेज दोनों एक ही परिसर में चल रहे हैं। आइडियल इंस्टीट्यूट की स्थापना वर्ष 1965 में की गई थी, जो ड्राइंग और पेंटिंग में डिप्लोमा कोर्स उपलब्ध करता है, जबकि आर्ट्स कॉलेज वर्ष 1985-86 में स्थापित किया गया था, जो ड्राइंग और पेंटिंग में डिग्री और पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री देता है।
दावा किया गया कि आइडियल इंस्टीट्यूट में 8 लोग कार्यरत हैं, जबकि आर्ट्स कॉलेज में 18 कर्मचारी हैं। यह मुद्दा उनके कवरेज और ईपीएफ एक्ट के अनुप्रयोग के संदर्भ में उठा। 01 जुलाई 2003 की प्रवर्तन अधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर यह बताया गया कि दोनों संस्थानों में कुल 26 कर्मचारी कार्यरत हैं, जिनका प्रबंधन एक ही सोसायटी द्वारा और एक ही परिसर में किया जाता है, प्रतिष्ठान को ईपीएफ एक्ट के प्रावधानों के तहत कवर किया जाएगा।
इसके बाद प्रतिष्ठान को नोटिस जारी किया गया। तदनुसार 23 सितंबर, 2005 को आयुक्त द्वारा ईपीएफ एक्ट की धारा 7-ए के तहत आदेश पारित किया गया, जिसमें अपीलकर्ता द्वारा ईपीएफ एक्ट की विभिन्न योजनाओं के तहत किए जाने वाले योगदान की राशि का आकलन किया गया। उपरोक्त आदेश को आर्ट्स कॉलेज द्वारा ट्रिब्यूनल के समक्ष वैधानिक अपील के माध्यम से चुनौती दी गई। हालांकि, इसे खारिज कर दिया गया। इसके बाद अपीलकर्ता ने हाईकोर्ट के समक्ष ट्रिब्यूनल द्वारा पारित आदेश को चुनौती देते हुए रिट याचिका भी दायर की, जिसे एकल न्यायाधीश के साथ-साथ हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने खारिज कर दिया।
पक्षकारों के तर्क
अपीलकर्ता ने प्रस्तुत किया कि आयुक्त, न्यायाधिकरण और साथ ही हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं हैं। यह तर्क दिया गया कि दोनों संस्थान, अर्थात् आइडियल इंस्टीट्यूट और आर्ट्स कॉलेज एक दूसरे से स्वतंत्र हैं और केवल एक ही सोसायटी द्वारा प्रबंधित किए जा रहे हैं। दोनों संस्थानों के बीच कोई वित्तीय अखंडता नहीं है और दोनों संस्थान अलग-अलग अधिकारियों से अनुमति/संबद्धता लेकर अलग-अलग कोर्स पेश कर रहे हैं।
इसके विपरीत, प्रतिवादी की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि ईपीएफ एक्ट के तहत सोसायटी द्वारा संचालित दोनों संस्थानों को कवर करने का निर्देश देते हुए आयुक्त, न्यायाधिकरण या हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेशों में कोई त्रुटि नहीं है।
इसके अलावा, प्रतिवादी ने यह भी प्रस्तुत किया कि यह ऐसा मामला है, जिसमें न तो अपीलकर्ता और न ही आइडियल इंस्टीट्यूट या सोसाइटी ने किसी भी निर्णायक प्राधिकारी यानी, आयुक्त, न्यायाधिकरण और यहां तक कि हाईकोर्ट के सामने पाए गए तथ्यों को खारिज करने के लिए कोई सामग्री रखी थी। प्रवर्तन अधिकारी और स्थापित करें कि दोनों संस्थान स्वतंत्र हैं और उनका कोई सामान्य प्रबंधन नहीं है।
न्यायालय की टिप्पणियां
न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि ईपीएफ एक्ट के प्रावधानों के तहत यदि कोई प्रतिष्ठान 20 या अधिक व्यक्तियों को रोजगार देता है तो उसे वहां काम करने वाले कर्मचारियों को विभिन्न लाभ देने के लिए ईपीएफ एक्ट के प्रावधानों के तहत कवर किया जाएगा।
न्यायालय ने आगे कहा कि वर्तमान अपील में उठाए गए मुद्दे को भी सीमित कर दिया और स्पष्ट किया कि यह ईपीएफ एक्ट के तहत बकाया राशि की गणना के संबंध में नहीं है, बल्कि यह दो संस्थानों को मिलाकर ईपीएफ एक्ट के कवरेज के संबंध में है।
इसके बाद इसने कई उदाहरणों पर भरोसा किया, जिन्होंने न्यायनिर्णित मुद्दे के संबंध में कानून निर्धारित किया। इन निर्णयों में एसोसिएटेड सीमेंट कंपनी बनाम वर्कमेन, एआईआर 1960 एससी 56 शामिल है, जिसमें यह राय दी गई कि दो प्रतिष्ठानों को क्लब करने के उद्देश्य से मुद्दे को निर्धारित करने के लिए सभी मामलों के लिए ईपीएफ एक्ट के तहत कवरेज के किसी टेस्ट को पूर्ण और अपरिवर्तनीय बनाना असंभव है। वास्तविक उद्देश्य दो प्रतिष्ठानों के बीच सच्चे संबंधों का पता लगाना और अंततः उस पर राय देना है। एक मामले में 'स्वामित्व, प्रबंधन और नियंत्रण की एकता' महत्वपूर्ण टेस्ट हो सकती है, जबकि दूसरे में 'कार्यात्मक अखंडता' या 'सामान्य एकता' महत्वपूर्ण हो सकती है। एक मामला ऐसा भी हो सकता है, जहां परीक्षण 'रोजगार की एकता' का हो सकता है।
न्यायालय ने नूर निवास नर्सरी पब्लिक स्कूल बनाम क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त और अन्य, (2001) 1 एससीसी 1 पर भी भरोसा जताया, जिसमें यह माना गया कि ईपीएफ अधिनियम के तहत प्रतिष्ठान और कवरेज दोनों को क्लब करने के उद्देश्य से कोई स्ट्रेट जैकेट फॉर्मूला या परीक्षण निर्धारित नहीं किया जा सकता।
रिकॉर्ड पर प्रस्तुत विभिन्न आदेशों और दस्तावेजों को देखने के बाद कोर्ट की राय थी कि अपीलकर्ता ने मामले को बहुत ही लापरवाही से लिया गया। सबसे पहले न्यायालय ने पाया कि संस्थान के निरीक्षण के बाद प्रवर्तन अधिकारी द्वारा 01 जुलाई, 2003 को रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। रिपोर्ट में यह कहा गया कि प्रतिष्ठान ईपीएफ एक्ट के प्रावधानों के तहत कवर किया जाएगा।
कवरेज की पुष्टि 12 अगस्त, 2003 के आदेश द्वारा की गई। इस पर न्यायालय ने बताया कि इन दोनों आदेशों को अपीलकर्ता द्वारा चुनौती नहीं दी गई। ईपीएफ एक्ट की धारा 7-ए के तहत 23 सितंबर, 2005 को आयुक्त द्वारा आदेश पारित किए जाने के बाद ही कार्यवाही शुरू की गई।
जब मामला ट्रिब्यूनल में गया तो वहां यह दर्ज किया गया कि आयुक्त के समक्ष ईपीएफ एक्ट की प्रयोज्यता को बाहर करने के लिए यह साबित करने का दायित्व अपीलकर्ता पर है कि कर्मचारी 20 से कम थे और अपीलकर्ता इसका निर्वहन करने में विफल रहा। इस प्रकार, इसने आयुक्त के आदेश में हस्तक्षेप नहीं किया।
न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्ता द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज़ स्वयं दर्शाते हैं कि यह स्वतंत्र प्रतिष्ठान नहीं बल्कि सोसायटी की ब्रांच है।
प्रासंगिक रूप से, दस्तावेजों में से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का दिनांक 09.12.1987 का पत्र थास जिसमें रजिस्ट्रार, गुलबर्गा यूनिवर्सिटी, गुलबर्गा को गैर-सरकारी कॉलेजों के तहत अनुमोदित कॉलेजों की सूची में अपीलकर्ता के ग्रेजुएट डिग्री कॉलेज को शामिल करने के बारे में बताया गया था। कॉलेज का नाम 'द आइडियल फाइन आर्ट्स सोसाइटी कॉलेज ऑफ विजुअल आर्ट' बताया गया।
इस संदर्भ में न्यायालय ने अपीलकर्ता की दलीलों को स्वीकार करने से इनकार करते हुए और अपील को खारिज करते हुए कहा कि "कॉलेज सोसायटी की विस्तारित शाखा के अलावा और कुछ नहीं है।"
केस टाइटल: एम/एस माथोश्री माणिकबाई कोठारी कॉलेज ऑफ विजुअल आर्ट्स बनाम सहायक भविष्य निधि आयुक्त, सिविल अपील नंबर 4188 2013
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