जन्मपूर्व लिंग निर्धारण एक गंभीर अपराध है, इससे लैंगिग समानता और गरिमा को नुकसान पहुंचता है : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2021-02-01 06:18 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जन्मपूर्व लिंग निर्धारण समाज के लिए गंभीर परिणाम के साथ गंभीर अपराध है।

न्यायमूर्ति मोहन एम. शांतानागौदर की अध्यक्षता वाली पीठ ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें कोर्ट ने आरोपी द्वारा दायर अग्रिम जमानत अर्जी खारिज कर दी थी।

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा,

"हमें अपने समाज से कन्या भ्रूण हत्या और बालिकाओं के प्रति अमानवीयता को खत्म करने के लिए सख्त दृष्टिकोण अपनाना होगा।"

आरोपी पर भारतीय दंड संहिता, मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 और प्री कॉन्सेप्ट एंड प्री नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक्स (रेगुलेशन एंड प्रिवेंशन ऑफ मिस्यूज) अधिनियम, 1994 के प्रावधानों के तहत कथित तौर पर गैरकानूनी लिंग निर्धारण और सेक्स चयनात्मक गर्भपात चिकित्सा पद्धतियों के संचालन का आरोप लगा था।

स्पेशल लीव पिटीशन को खारिज करते हुए, पीठ ने जस्टिस विनीत सरन और अजय रस्तोगी को भी पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट के विधायी इतिहास का हवाला दिया। कोर्ट ने कहा कि अधिनियम भारत में पुरुष बच्चे के लिए वरीयता के एक सांस्कृतिक इतिहास से मजबूर था, जो धार्मिक, आर्थिक और सामाजिक कारकों के पितृसत्तात्मक क्रम में निहित था। अधिनियम के तहत दायर आपराधिक मामलों के बारे में विभिन्न रिपोर्टों का हवाला देते हुए, पीठ ने कहा कि ये खतरनाक प्रथाएं अभी भी व्याप्त हैं।

कोर्ट ने कहा कि,

"इस अनैतिक प्रथा की निरंतरता, विश्व स्तर पर साझा समझ यह बताती है कि यह महिलाओं के खिलाफ हिंसा का एक रूप है। इसके साथ ही लैंगिग समानता और गरिमा को बनाए रखने की हमारी क्षमता को नुकसान पहुंचाती है, जो हमारे संविधान की आधारशिला है। जन्मपूर्व लिंग निर्धारण एक पूरे के रूप में समाज के लिए गंभीर परिणामों के साथ गंभीर अपराध है।"

कोर्ट ने उल्लेख किया कि तत्काल मामले में जांच करने वाली टीम ने सोनोग्राफी मशीन को जब्त कर लिया है और आरोपियों के खिलाफ एक मजबूत अपराध का मामला बना है। अदालत ने यह भी कहा कि सामग्री ऑन रिकॉर्ड यह बताती है कि लिंग निर्धारण और सेक्स-चयनात्मक गर्भपात की कथित अवैध चिकित्सा पद्धतियों के संचालन में उनकी सक्रिय भूमिका थी। पीठ ने कहा कि बिना किसी पंजीकरण या लाइसेंस वाली एक अल्ट्रासाउंड मशीन, लिंग-निर्धारण में इस्तेमाल किए जाने वाले लीक्विड और गर्भपात और लिंग-निर्धारण के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले अन्य चिकित्सा उपकरणों को जब्त कर लिया गया था।

अपील खारिज करते हुए अदालत ने कहा,

"इस स्तर पर कोई ढिलाई नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि यह धारणा प्रबल हो सकती है कि पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट केवल एक कागजी शेर है और यह कि क्लीनिक और प्रयोगशालाएं लिंग-निर्धारण और भ्रूण हत्या को अंजाम दिया जा सकता है। यदि हम अपने समाज की बालिकाओं के प्रति कन्या भ्रूण हत्या और कुरीतियों को खत्म करना चाहते हैं तो एक सख्त दृष्टिकोण अपनाना होगा।"

केस : रेखा सेंगर बनाम मध्य प्रदेश राज्य [Special leave Petition (Criminal) no. 380 of 2021]

कोरम: जस्टिस मोहन एम. शांतानागौदर, जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस अजय रस्तोगी

Counsel : एडवोकट साक्षी विजय, एओअर त्रिलोकी नाथ राजदान

Citation : LL 2021 SC 51

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