पोक्सो : सुप्रीम कोर्ट ने छात्रा के यौन उत्पीड़न के आरोपी शिक्षक की हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया

Update: 2022-01-15 05:49 GMT

सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया जिसमें पोक्सो अधिनियम (लैंगिक उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम 2012) के तहत एक छात्रा के साथ गंभीर यौन उत्पीड़न का अपराध करने के लिए एक शिक्षक को दोषी ठहराए जाने और सजा की पुष्टि की गई थी।

जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की बेंच ने स्पेशल लीव पिटीशन और जमानत की अर्जी पर नोटिस जारी किया।

पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील द्वारा दी गई दलीलों पर ध्यान दिया। इसमें कहा गया कि पीड़िता का बयान सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दिया गया। ठोस सबूत नहीं है, लेकिन केवल उसी का इस्तेमाल याचिकाकर्ता को दोषी ठहराने के लिए किया गया। वह भी तब जब सभी गवाह मुकर गए हैं।

वर्तमान मामले में ट्रायल कोर्ट ने याचिकाकर्ता को POCSO (संशोधन) अधिनियम 2019 की धारा 10 और 9 (f) (m) (I) (p) के तहत और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 506 (i) के तहत दोषी ठहराया और उसे सात साल के कठोर कारावास और एक हजार रुपये अर्थदंड की सजा सुनाई। POCSO अधिनियम के तहत अपराध के लिए 10,000 और आईपीसी के तहत अपराध के लिए दो साल के लिए कठोर कारावास की सजा सुनाई गई।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट और अपीलीय कोर्ट के फैसले विकृत हैं, क्योंकि बिना दोषसिद्धि दर्ज किए और बिना किसी सबूत के सजा दी गई।

मामले के मुताबिक, 10 साल की बच्ची एक सरकारी स्कूल में चौथी कक्षा में पढ़ रही थी, जहां याचिकाकर्ता शिक्षक के तौर पर कार्यरत था। आरोप है कि 25.10.2019 और 04.11.2019 को वह स्कूल भवन के बगल में स्थित एक छोटी सी गली में बच्ची को ले गया और उसके स्तन को छुआ। अभियोजन पक्ष के अनुसार यह POCSO अधिनियम के संदर्भ में एक गंभीर यौन हमला है।

याचिका में कहा गया कि पुलिस में शिकायत करने वाली लड़की के पिता मुकर गया। उसने याचिकाकर्ता के खिलाफ कुछ भी आपत्तिजनक नहीं कहा और उस शिकायत को खारिज कर दिया जिस पर मामला दर्ज किया गया था। उसने कहा कि पुलिस के निर्देशानुसार उसने जांच के दौरान मजिस्ट्रेट को बयान दिया।

याचिका में यह भी कहा गया कि यौन उत्पीड़न की कथित पीड़िता ने अपने साक्ष्य में याचिकाकर्ता के खिलाफ कुछ भी आपत्तिजनक नहीं कहा है, इसलिए पूरे मामले को खारिज कर देना चाहिए।

याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि अभियोजन पक्ष के मामले की संभावना के लिए कोई चिकित्सा साक्ष्य नहीं है। याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई सबूत नहीं होने के कारण ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज बयान के आधार पर अजीब तरह से दोषी ठहराया।

याचिका में कहा गया,

"उक्त बयान एक पूर्व बयान होने के नाते मूल सबूत के रूप में बिल्कुल भी नहीं माना जा सकता है, क्योंकि इसका इस्तेमाल साक्ष्य अधिनियम की धारा 157 के तहत पुष्टि के लिए और साक्ष्य अधिनियम की धारा 145 के विरोधाभास के लिए किया जा सकता है। POCSO अधिनियम में प्रावधान भारतीय साक्ष्य अधिनियम के प्रावधानों की अनदेखी करते हुए इस तरह के बयान को प्रासंगिक या वास्तविक सबूत के रूप में बनाते हैं। इस प्रकार, ट्रेल कोर्ट और हाईकोर्ट के निर्णय विकृत हैं और वे रद्द किए जाने लायक हैं।"

केस शीर्षक: प्रेम कुमार बनाम राज्य प्रतिनिधि पुलिस निरीक्षक द्वारा

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