बिहार जाति सर्वेक्षण: ट्रांसजेंडर पहचान को जाति सूची में शामिल करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका
बिहार सरकार ने पिछले महीने जाति आधारित सर्वेक्षण के मद्देनजर 'हिजड़ा', 'किन्नर', 'कोठी' और 'ट्रांसजेंडर' को कास्ट लिस्ट यानि जाति सूची में शामिल करने का फैसला किया था, जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है।
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट में जाति आधारित सर्वेक्षण के खिलाफ भी कई याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें सर्वेक्षण की प्रक्रिया की संवैधानिकता पर संदेह जताया गया है।
ट्रांस एक्टिविस्ट रेशमा प्रसाद ने इन लैंगिक पहचानों के लिए एक अलग कास्ट कोड तय करने और उन्हें सर्वेक्षण के मकसद से बनाई गई 214 नामित जातियों की सूची में शामिल करने के राज्य सरकार के फैसले को असंवैधानिक, स्पष्ट रूप से मनमाना और सुप्रीम कोर्ट की मिसालों की भावना के खिलाफ बताया है, जिनमें 2014 का नालसा (NALSA) जजमेंट भी शामिल है, जिसने जेंडर सेल्फ आइडेंटिफिकेशन (लैंगिक आत्म पहचान) के मौलिक अधिकार को मान्यता दी गई थी।
याचिकाकर्ता ने इससे पहले पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी और इन शब्दों को कास्ट लिस्ट से हटाने की मांग की थी। हालांकि याचिका खारिज कर दी गई, जिसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
हाईकोर्ट इस बात से सहमत था कि ट्रांसजेंडर आइडेंटिटी को जाति की कैटेगरी में शामिल करना गलत है, हालांकि उन्होंने इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और याचिकाकर्ता को राज्य सरकार के समक्ष एक रिप्रेजेंटेशन देने के लिए कहा।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि 6 जून की अधिसूचना में दिया गया यह वर्गीकरण अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 15 (भेदभाव का निषेध), अनुच्छेद 16 (सार्वजनिक रोजगार में अवसर की समानता), अनुच्छेद 19 (1)(ए) (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता), और अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) सहित कई अनुच्छेदों का उल्लंघन करता है।
प्रसाद ने तर्क दिया कि इतना ही नहीं, बल्कि ऐसा वर्गीकरण ट्रांसजेंडर पर्सन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट) एक्ट, 2019 के विपरीत भी है।
प्रसाद की दलील है कि बिहार सरकार के फैसले ने ट्रांसजेंडर पर्सन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स) एक्ट धारा 8, जिसके तहत ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के कल्याण के लिए, बिना किसी कलंक या भेदभाव के, उपायों को अनिवार्य बनाया गया है, और ट्रांसजेंडर पर्सन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स) रूल्स 2020 के रूल 10(3) का उल्लंघन किया है।
प्रसाद ने यह भी बताया है कि संविधान और प्रासंगिक कानूनों के तहत अधिकारों की रक्षा के लिए नालसा जजमेंट ने 'हिजड़ों' और किन्नरों को 'तीसरे लिंग' के रूप में मान्यता दी है, जिससे बिहार सरकार के लिए ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की रक्षा करना अनिवार्य हो गया है, जिन्हें 'व्यापक भेदभाव' का सामना करना पड़ता है।
प्रसाद ने हाईकोर्ट के उस निर्देश पर भी आपत्ति जताई है, जिसमें 'ट्रांसजेंडर' आईडेंटिटी को कास्ट आइडेंटिटी के उप-समूह के रूप में वर्गीकृत न करने के लिए सरकार को अपना रिप्रेंजेंटेशन देने के लिए कहा गया है।
प्रसाद ने तर्क दिया है कि बिहार जाति 'जनगणना' में एक जाति के रूप में ट्रांसजेंडर समुदाय के इस अनुचित वर्गीकरण ने भेदभाव को जन्म दिया है और समुदाय के सदस्यों को लैंगिक पहचान रखने के अधिकार से वंचित कर दिया है।
पृष्ठभूमि
पटना हाईकोर्ट में जाति सर्वेक्षण में 214 नामित जातियों की लिस्ट में 'किन्नर', 'कोठी', 'हिजड़ा' और 'ट्रांसजेंडर' को शामिल करने के बिहार सरकार के फैसले को चुनौती दी गई थी।
हाईकोर्ट में यह तर्क दिया गया था कि वर्गीकरण कई संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ है, साथ ही यह आत्मनिर्णय के अधिकार को बाधित करता है। हाईकोर्ट ने माना था कि लिंग और जाति की पहचान अलग-अलग है और इन्हें आपस में जोड़ा नहीं जा सकता, हालांकि सरकार की ओर से दिए गए स्पष्टीकरण के मद्देनजर इस मामले में हस्तक्षेप करने से परहेज किया था।
केस डिटेलः रेशमा प्रसाद बनाम बिहार राज्य | डायरी नंबर 36554/2023