पैदल यात्रा कर रहे, लॉकडाउन में फंसे प्रवासियों को आस-पास के आश्रित घरों में शिफ्ट करने, भोजन और चिकित्सा की सुविधा देने के निर्देश देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका
अधिवक्ता अलख आलोक श्रीवास्तव ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर एक अर्जी दायर की है। जिसमें मांग की गई है कि प्रवासी श्रमिकों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए तत्काल अंतरिम दिशा-निर्देश दिए जाएं। वहीं देशव्यापी लाॅकडाउन दौरान उन्हें भोजन, पानी, आश्रय और चिकित्सा सहायता जैसी बुनियादी सुविधाएं भी प्रदान की जाएं।
इस अर्जी में 31 मार्च, 2020 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा उसकी मूल याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए गए आदेश पर भी प्रकाश डाला गया है। उस आदेश में राज्य भर के अधिकारियों और पुलिस को निर्देश दिया गया था कि वह प्रवासी श्रमिकों के लिए कल्याणकारी गतिविधियों को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाएं।
आवेदक ने कुछ मीडिया रिपोर्टों पर अपनी चिंता व्यक्त की है, जिनमें बताया गया है कि कुछ राज्य सरकारों ने उस आदेश को सही अर्थ और भाव से लागू नहीं किया है।
इस तथ्य पर बल देते हुए आवेदक ने मांग की है कि देश भर के सभी जिला मजिस्ट्रेटों (डीएम) को निर्देश दिया जाएं कि वे अपने-अपने जिलों में सभी आश्रय घरों, शिविरों और ऐसी सुविधाओं का दैनिक निरीक्षण करें ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आवश्यक आपूर्ति पर्याप्त रूप से की जा रही है।
इसके अलावा उन्होंंने अदालत को उन रिपोर्ट से भी अवगत कराया,जिनमें बताया गया है कि प्रवासी श्रमिकों ने फिर से घर जाने का प्रयास करना शुरू कर दिया है। ऐसा लॉकडाउन को बढ़ाए जाने के कारण हुआ है, जिसके संबंध में आदेश 15 अप्रैल को जारी किया गया है। इसके अलावा यह भी प्रार्थना की गई है कि सभी डीएम तुरंत अपने जिले में उन लोगों की पहचान करें जो फंसे हुए हैं या फिर से पैदल चलकर अपने घर जाने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे प्रवासियों को तुरंत उनके निकटतम आश्रय गृहों में स्थानांतरित कर दिया जाए और उन्हें पर्याप्त भोजन, पानी और चिकित्सा सहायता प्रदान की जाए।
इसके अलावा आवेदक ने 19 अप्रैल 2020 को महाराष्ट्र सरकार द्वारा लिए गए एक फैसले की रिपोर्ट से भी अवगत कराया, जिसमें बताया गया है कि 1.31 लाख गन्ना श्रमिकों को राज्य के भीतर ही अपने मूल गांवों में जाने की अनुमति दी गई है। श्रीवास्तव ने दलील दी है कि यद्यपि यह अंतर-राज्य मामला है,परंतु यह फैसला एक गलत मिसाल पेश करेगा और ऐसी कोई अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
''इतने बड़े पैमाने पर प्रवासन,भले ही वह इंट्रा-स्टेट या अंतर के भीतर ही हो परंतु वर्तमान लॉकडाउन के उद्देश्य को पराजित कर देगा। इतना ही नहीं यह फैसला प्रतिवादी केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए विभिन्न निर्देशों का भी उल्लंघन करता है। इसके अलावा यह एक खराब मिसाल के समान होगा। क्योंकि यह फैसला अन्य राज्य के प्रवासियों श्रमिकों के मन में नाराजगी की भावना पैदा कर सकता है। चूंकि वह सभी लाॅकडाउन के कारण अपने पैतृक गांव जाने में असमर्थ हैं।''
श्रीवास्तव ने कहा कि देश भर में ऐसे करोड़ों श्रमिक फंसे हुए हैं। ऐसे में उन्हें स्थानांतरित करने या घर जाने की अनुमति देने के लिए सामूहिक परीक्षण की आवश्यकता होगी।
देश में जांंच किट की भारी कमी है, इसलिए इन किट का उपयोग वास्तविक रोगियों और संदिग्धों की पहचान करने के लिए बुद्धिमानी से करने की आवश्यकता है। ऐसे में इन श्रमिकों के लिए आश्रय घरों में रहना बेहतर होगा।
दूसरी तरफ यह भी दलील दी गई कि बिना टेस्ट किए इन श्रमिकों को उनके गांव वापस जाने की अनुमति देना बहुत ही जोखिम भरा है। चूंकि इससे COVID-19 मामलों में एक बेकाबू और घातीय वृद्धि हो सकती है, इसलिए आग्रह किया गया है कि जब तक लाॅकडाउन जारी है तब तक न्यायालय किसी भी सामूहिक प्रवास को अनुमति न दे,चाहे वह एक राज्य के भीतर के लिए ही हो या एक राज्य से दूसरे राज्य के लिए। .