अल्पसंख्यकों की राष्ट्रीय स्तर की पहचान को चुनौती देने वाली याचिका: सुप्रीम कोर्ट 21 मार्च तक सुनवाई स्थगित की
सुप्रीम कोर्ट ने अल्पसंख्यकों की देशवार पहचान को चुनौती देने वाली याचिकाओं के बैच पर 21 मार्च तक सुनवाई स्थगित करते हुए मंगलवार को आदेश दिया कि यदि 6 शेष राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने, जिन्होंने अल्पसंख्यकों के मुद्दे पर टिप्पणी मांगने वाले केंद्र के 'धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों की पहचान और अधिसूचना' पत्र का जवाब नहीं दिया है, अगली सुनवाई से पहले जवाब नहीं देते हैं तो अदालत मान लेगी कि उन्हें इस मामले में कुछ नहीं कहना है।
मामले में याचिकाकर्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट सीएस वैद्यनाथन ने यह कहते हुए शुरुआत की,
"संघ ने स्टेटस रिपोर्ट दायर की। रिपोर्ट इस बात से सहमत है कि राज्यों को इकाई होना चाहिए न कि संघ। अगर ऐसा है तो 1991 की अधिसूचना (जिसने 6 समुदायों को राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यकों के रूप में अधिसूचित किया) को जाना होगा।”
भारत के अटॉर्नी जनरल सीनियर एडवोकेट आर. वेंकटरमानी ने सुनवाई की शुरुआत में अदालत को सूचित किया,
“6 राज्यों ने अपना जवाब नहीं दिया है। मुझे उनका जायजा लेने दे और माई लॉर्ड के सामने लौट आने दें।”
जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस जेबी पारदीवाला की खंडपीठ ने तुरंत टिप्पणी की,
"हम इस तरह से स्थगित नहीं रख सकते। हम मान लेंगे कि उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं है।”
एजी ने तब इशारा किया और कहा,
"ये बड़े राज्य हैं, जिन्होंने जवाब नहीं दिया है।"
पीठ ने तब आदेश पारित किया, जिसमें कहा गया,
"एजी ने प्रस्तुत किया कि 6 राज्यों ने अपनी प्रतिक्रिया नहीं दी। हम इस बात की सराहना करने में विफल हैं कि इन राज्यों को प्रतिक्रिया क्यों नहीं देनी चाहिए। हम केंद्र सरकार को उनकी प्रतिक्रिया लेने का आखिरी मौका देते हैं, ऐसा न करने पर हम मान लेंगे कि उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं है।'
इस बिंदु पर वैद्यनाथन ने टिप्पणी की,
“जम्मू-कश्मीर उन राज्यों में से एक है, जिन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। जम्मू-कश्मीर में हिंदू अल्पसंख्यक हैं। हम समझते हैं कि उन्होंने जवाब क्यों नहीं दिया।”
बेंच ने तब एजी से पूछा,
"लेकिन जम्मू-कश्मीर अभी आपके द्वारा प्रशासित किया जा रहा है। आपको कितने समय के लिए अटार्नी चाहिए?"
एजी ने पीठ को सूचित किया कि वह मार्च के महीने में किसी तारीख की मांग कर रहे हैं।
व्यक्तिगत रूप से पेश हुए याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने अदालत से जल्द सुनवाई करने का आग्रह किया, क्योंकि यह "महत्वपूर्ण मामला" है।
उन्होंने कहा,
"इस पहलू में पूर्ण शून्य है।"
खंडपीठ ने आग्रह की सराहना नहीं की और कहा,
“कौन सा मामला महत्वपूर्ण नहीं है। सभी मामले महत्वपूर्ण हैं।”
बेंच ने इसके बाद मामले को 21 मार्च के लिए सूचीबद्ध किया।
प्रसंग
गौरतलब है कि इससे पहले मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को अल्पसंख्यकों की पहचान के मुद्दे पर राज्यों के साथ परामर्श करने का निर्देश दिया था। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपनी स्टेटस रिपोर्ट दायर की, जिसमें कहा गया कि "उपरोक्त आदेश के आधार पर केंद्र सरकार ने अन्य हितधारकों सहित सभी राज्य सरकारों/केंद्र शासित प्रदेशों के साथ परामर्श बैठकें कीं।"
कोर्ट ने आगे कहा कि 24 राज्य सरकारों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों ने अपनी टिप्पणियां भेजी थीं। हालांकि 6 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने उन्हें कई अनुस्मारक जारी किए जाने के बावजूद जवाब नहीं दिया।
उल्लेखनीय है कि जिन राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने उत्तर नहीं दिया है, वे हैं - अरुणाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, लक्षद्वीप, राजस्थान, तेलंगाना और झारखंड।
पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ताओं ने केंद्र सरकार से 'अल्पसंख्यक' शब्द को परिभाषित करने और 'जिला स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए दिशानिर्देश' निर्धारित करने के लिए दिशा-निर्देश मांगा, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि केवल वे धार्मिक और भाषाई समूह, जो सामाजिक रूप से आर्थिक रूप से राजनीतिक रूप से गैर-प्रमुख हैं और संख्यात्मक रूप से बहुत कम, अनुच्छेद 29 और 30 के तहत गारंटीकृत लाभ और सुरक्षा प्राप्त करें।
याचिकाएं राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 की धारा 2(सी) की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती देती हैं, जो केंद्र को अल्पसंख्यकों को अधिसूचित करने की शक्ति देती है।
याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की याचिका का जवाब देते हुए केंद्र ने 28 मार्च को दायर हलफनामे में कहा कि जिन राज्यों में वे अल्पसंख्यक हैं, वहां हिंदुओं को अनुच्छेद 29 और 30 के उद्देश्यों के लिए अल्पसंख्यक के रूप में अधिसूचित किया जा सकता है।
हालांकि, बाद में केंद्र ने अपना रुख बदल दिया और पहले वाले हलफनामा को वापस लेते हुए नया हलफनामा दायर किया।
नवीनतम हलफनामे में केंद्र ने कहा कि उसके पास अल्पसंख्यकों को अधिसूचित करने की शक्ति है, लेकिन इस संबंध में "भविष्य में अनपेक्षित जटिलताओं" से बचने के लिए "राज्य सरकारों और अन्य हितधारकों के साथ व्यापक विचार-विमर्श" के बाद ही कोई रुख अपनाया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने 10 मई को केंद्र द्वारा इस मामले में अलग-अलग रुख अपनाने पर निराशा व्यक्त की और कहा कि हलफनामे को अंतिम रूप देने से पहले उचित विचार किया जाना चाहिए। कोर्ट ने तब केंद्र से इस संबंध में राज्य सरकारों के साथ परामर्श प्रक्रिया पर 3 महीने के भीतर रिपोर्ट दाखिल करने को कहा।
केंद्र ने 12 जनवरी को राज्य सरकारों और अन्य हितधारकों के साथ परामर्श के बाद स्टेटस रिपोर्ट प्रस्तुत की ।
केस टाइटल : अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ रिट याचिका (सी) नंबर 836/2020