' हज यात्रियों को बिना मनोवैज्ञानिक दबाव के जाने दें': सुप्रीम कोर्ट ने हज ग्रुप आयोजकों के रजिस्ट्रेशन रद्द करने पर लगी रोक के खिलाफ याचिका पर सुनवाई से इनकार किया
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ केंद्र सरकार की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें कुछ प्रायवेट हज ग्रुप आयोजकों के रजिस्ट्रेशन को रद्द करने पर लगी रोक के खिलाफ अपील की गई थी।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एमएम सुंदरेश की अवकाशकालीन पीठ के समक्ष यह मामला उठा। संघ की ओर से उपस्थित एएसजी संजय जैन ने तर्क दिया कि यदि निजी हज ऑपरेटरों, जिन्हें उन्होंने "अपराधी" के रूप में वर्णित किया है, उन्हें हज यात्राओं पर ले जाने की अनुमति दी गई तो हज यात्री अंततः पीड़ित होंगे।
हालांकि, पीठ ने कहा कि मामला 7 जुलाई को दिल्ली हाईकोर्ट की एक खंडपीठ के समक्ष पहले से ही आ रहा है और इस प्रकार सुप्रीम कोर्ट को इसमें हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है। न्यायालय ने कहा कि संघ को चल रहे मुकदमेबाजी के किसी मनोवैज्ञानिक दबाव के बिना हज यात्रियों को हज पर जाने देना चाहिए।
एएसजी जैन ने कहा-
" यहां एक व्यवस्था है। सऊदी अरब एक कोटा प्रदान करता है, जो 80% भारत की हज कमेटी को जाता है और शेष हज ग्रुप आयोजकों ( एचजीओ ) के माध्यम से संचालित होता है। एचजीओ को कुछ मानदंडों को पूरा करना होता है। मई के महीने में 512 एचजीओ को मंजूरी दे दी गई। 25 मई को हमें उनमें से कुछ के खिलाफ गंभीर शिकायत मिली। इसके बाद उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया... ।"
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार हज यात्रियों पर किसी भी तरह से नकारात्मक प्रभाव नहीं डालना चाहती है। इसके अलावा सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए तैयार है कि हज यात्रियों को अपनी जेब से कुछ अतिरिक्त भुगतान नहीं करना पड़े। उन्होंने प्रस्ताव किया-
" हम हज यात्रियों को किसी भी तरह से प्रभावित नहीं करना चाहते हैं। उन्हें जेब से कुछ अतिरिक्त खर्च नहीं करना पड़ेगा। उनकी यात्रा अन्य एचजीओ को दी जाएगी। भारत सरकार उन्हें वित्तीय गारंटी दे रही है। "
उन्होंने आगे इस बात पर प्रकाश डाला कि यहां तक कि दिल्ली हाईकोर्ट ने भी यह सुनिश्चित करने के लिए आदेश पारित किया था कि हज यात्रियों के हितों से किसी भी तरह से समझौता नहीं किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा- " हाईकोर्ट की चिंता यह भी थी कि हज यात्रियों को नुकसान नहीं होना चाहिए। यदि इन एचजीओ ने अपना काम ठीक से नहीं किया तो हज यात्रियों को सऊदी अरब में कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। "
हालांकि, खंडपीठ इस मामले पर विचार करने के लिए अनिच्छुक थी।
जस्टिस सूर्यकांत ने टिप्पणी की,
" इन सभी विवादों को हाईकोर्ट द्वारा निपटाया जाएगा। हज यात्रियों को चल रहे मुकदमेबाजी के किसी भी मनोवैज्ञानिक दबाव के बिना हज पर जाने दें... आपके लिए यह बेहतर होगा कि आप उनके (एचजीओ) के खिलाफ तब तक कोई कार्रवाई न करें जब तक कि वे वापस न आ जाएं...वे लंबे समय तक सऊदी अरब में नहीं रहेंगे। "
पृष्ठभूमि
25 मई को केंद्र सरकार द्वारा "हज -2023 के लिए हज कोटा के आवंटन की समेकित सूची" में प्रकाशित उनके रजिस्ट्रेस्ट्रेशन प्रमाणपत्रों और कोटा के निलंबन को चुनौती देने वाले विभिन्न निजी हज ग्रुप आयोजकों द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष दलीलें पेश की गईं।
दिल्ली हाईकोर्ट ने हज ग्रुप के आयोजकों के खिलाफ समेकित सूची में की गई टिप्पणियों पर यह सुनिश्चित करने के लिए रोक लगा दी कि हज यात्रियों को उनकी हज यात्रा पूरी करने से रोका नहीं जा सकता। अदालत का प्रथम दृष्टया मत था कि हालांकि रजिस्ट्रेशन प्रमाणपत्र जारी करने और हज ग्रुप के आयोजकों को आवंटित कोटा जारी करने पर प्रतिबंध और शर्तें लगाई जा सकती, लेकिन इसे उन हज यात्रियों के खिलाफ नहीं ठहराया जाना चाहिए जिन्होंने हज यात्रा करने के लिए ऐसे आयोजकों के साथ अपना रजिस्ट्रेशन कराया।
जस्टिस चंद्र धारी सिंह की एकल पीठ ने कहा कि एक विकल्प को लागू किया जाना चाहिए ताकि हज यात्रा करने की इच्छा रखने वाले "नेक इरादों वाले नागरिकों" के लिए कानून बाधा न बने।