इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित आपराधिक मामले बहुत चिंताजनक: सीजेआई एनवी रमाना

Update: 2021-09-11 11:17 GMT

भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने शनिवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबे समय से लंबित आपराधिक मामलों पर चिंता व्यक्त करते हुए हाईकोर्ट और बार एसोसिएशन से इस मुद्दे को हल करने के लिए काम करने का अनुरोध किया।

सीजेआई ने कहा,

"मैं इलाहाबाद हाईकोर्ट में आपराधिक मामलों से संबंधित लंबित मामलों के बारे में कोई सवाल नहीं उठाना चाहता। न ही कोई दोष नहीं देना चाहता। हालांकि यह बहुत चिंताजनक है। मैं इलाहाबाद बार और बेंच से अनुरोध करता हूं कि वे एक साथ मिलकर काम करें और इस मुद्दे को हल करने में सहयोग करें।"

भारत के मुख्य न्यायाधीश उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में स्थापित होने वाले प्रस्तावित नए राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के शिलान्यास समारोह में बोल रहे थे।

इस कार्यक्रम में इलाहाबाद हाईकोर्ट के नए भवन परिसर का शिलान्यास भी शामिल था।

इस कार्यक्रम में कानून मंत्री किरेन रिजिजू, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद, इलाहाबाद हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मुनीश्वर नाथ भंडारी और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।

मुख्य न्यायाधीश ने शनिवार को कहा कि उन्हें उम्मीद है कि नए हाईकोर्ट परिसर की स्थापना 'इलाहाबाद बार को फिर से सक्रिय' करेगी और लंबित मामलों के शीघ्र निपटान की सुविधा प्रदान करेगी।

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने इलाहाबाद हाईकोर्ट को व्यापक मानदंड निर्धारित करने पर विचार करने के लिए नोटिस जारी किया था। यह उन मामलों पर था जिन पर जमानत देते समय इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा विचार किया जा सकता है।

न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की खंडपीठ ने अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद की इस दलील को ध्यान में रखा कि लगभग 7400 अपराधी 10 साल से अधिक समय से जेल में बंद है और कुछ ऐसे अपराधी है जो गरीब है और उनके पास मुकदमा लड़ने के लिए आवश्यक संसाधन नहीं हैं।

अदालत ने कहा,

"हम उम्मीद करेंगे कि अगली तारीख से पहले ही राज्य सरकार दोषियों की रिहाई के लिए कुछ कार्रवाई करेगी।"

26 जुलाई, 2021 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह विचार किए जाने के बाद निर्देश जारी किए गए थे कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबे समय से लंबित अपीलों को न्यायालय द्वारा तय किए गए व्यापक मापदंडों पर तय किया जाना चाहिए और इसमें अपराध की जघन्यता, आरोपी की उम्र, मुकदमे में लगने वाली अवधि का आने वाले समय में विचार करने का सुझाव दिया गया था। साथ ही यह भी कि क्या अपीलकर्ता अपीलों पर लगन से मुकदमा चला रहे हैं।

भारत के मुख्य न्यायाधीश ने शनिवार को यह भी स्वीकार किया कि इलाहाबाद बार और बेंच ने देश के कुछ सबसे पुराने कानूनी मुकदमों का निपटान किया है।

सीजेआई ने इलाहाबाद हाईकोर्ट बार के योगदान का उल्लेख करते हुए कहा,

"इस बार ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम और हमारे संविधान के प्रारूपण में एक अमिट छाप छोड़ी है। मैं उम्मीद करता हूं कि आप इस ऐतिहासिक बार की असाधारण विरासत, परंपरा और संस्कृति को आगे बढ़ाएंगे। मैं आप सभी से नागरिकों की स्वतंत्रता और स्वतंत्रता के अधिकारों की रक्षा करने का नेतृत्व करने का आग्रह करता हूं।"

उन्होंने आगे इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति जगमोहनलाल सिन्हा के 1975 के फैसले का संदर्भ दिया, जिसके परिणामस्वरूप भारत की पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी को लोकसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया था, जिसके बाद आपातकाल का दौर शुरू हुआ था।

सीजेआई ने कहा,

"1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति जगमोहनलाल सिन्हा ने वह निर्णय पारित किया जिसने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अयोग्य घोषित करने पर देश को झकझोर कर रख दिया था। यह बहुत साहस का निर्णय था, जिसके बारे में कहा जा सकता है कि यह सीधे आपातकाल की घोषणा का परिणाम था। जिसके परिणाम मैं अभी विस्तार से नहीं बताना चाहता।"

सीजेआई ने संविधान सभा के पहले अध्यक्ष डॉ सच्चिदानंद सिन्हा, पंडित मोतीलाल नेहरू, सर तेज बहादुर सप्रू और पुरुषोत्तम दास टंडन जैसे कानूनी दिग्गजों का भी उल्लेख किया, जो इलाहाबाद बार के सभी सदस्य थे।

सीजेआई ने कहा,

"प्रसिद्ध चौरी चौरा मामले में इस हाईकोर्ट के समक्ष पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा अपील की गई थी।"

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