उगाही की राशि के भुगतान को टेरर फंडिंग नहीं कहा जा सकता : सुप्रीम कोर्ट ने यूएपीए मामले के अभियुक्त को जमानत मंजूर की
सुप्रीम कोर्ट ने गैर कानूनी गतिविधि (निरोधक) कानून (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार अभियुक्त की जमानत याचिका मंजूर करते हुए कहा है कि उगाही की राशि के भुगतान को आतंकवाद के लिए फंड मुहैया कराना नहीं कहा जा सकता।
इस मामले में हाईकोर्ट ने सुदेश केडिया की जमानत याचिका इस निष्कर्ष के साथ खारिज कर दी थी कि वह उगाही की राशि का भुगतान करता रहा था और इस प्रकार उसने आतंकवादी संगठन को फंड मुहैया कराने में मदद की थी। उच्च न्यायालय ने कहा था कि रिकॉर्ड में वैसे साक्ष्य मौजूद हैं जो यह प्रदर्शित करते हैं कि अभियुक्त अपना कारोबार चलाने के क्रम में आतंकवादी संगठन के सदस्यों के लगातार सम्पर्क में था।
अपील में अभियुक्त ने दलील दी थी कि उसके खिलाफ केवल यह आरोप है कि अपने कारोबार के निर्बाध संचालन के लिए उसने टीपीसी को अवैध लेवी का भुगतान किया था और वह टीपीसी का सदस्य नहीं है, इसलिए उसे टेरर फंडिंग का आरोपी नहीं कहा जा सकता। दूसरी ओर, उसके पास कोई चारा नहीं था कि वह आतंकवादी संगठन की मांग पूरी किये बिना कोयले का निर्बाध तरीके से ट्रांसपोर्टेशन जारी रख सके। अपील में यह भी दलील दी गयी थी कि अभियुक्त की जो मुलाकात आतंकी संगठन के सदस्यों के साथ हुई थी, उसे टाला नहीं जा सकता था और इस मुलाकात का एक मात्र उद्देश्य संगठन के सदस्यों द्वारा की गयी मांग को पूरा करना था।
कोर्ट ने कहा कि धारा 43 (5) (डी) के तहत जमानत मंजूर करने पर विचार करते वक्त कोर्ट का बाध्यकारी कर्तव्य है कि वह खुद को इस बात के लिए संतुष्ट करने के उद्देश्य से रिकॉर्ड में लाये गये सम्पूर्ण साक्ष्यों और दस्तावेजों की तहकीकात करे कि क्या अभियुक्त के खिलाफ प्रथम दृष्ट्या मामला बनता है या नहीं?
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट की खंडपीठ ने कहा,
"उगाही की राशि के भुगतान को टेरर फंडिंग की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। पूरक आरोप पत्र और रिकॉर्ड पर लाये गये अन्य साक्ष्यों से यह बात स्पष्ट है कि अन्य अभियुक्त, जो आतंकवादी संगठन के सदस्य थे, आम्रपाली और मगध क्षेत्रों में कारोबारियों से व्यवस्थित तरीके से उगाही की रकम लेते रहे हैं। अपीलकर्ता संबंधित संगठन के प्रभाव वाले इलाके में ट्रांसपोर्ट कारोबार कर रहा है। दूसरे पूरक आरोप पत्र में यह अरोप लगाया गया है कि अपीलकर्ता ने अपने कारोबार के निर्बाध संचालन के लिए टीपीसी के सदस्यों को पैसे का भुगतान किया था। प्रथम दृष्टया यह नहीं कहा जा सकता कि अपीलकर्ता ने टीपीसी के अन्य सदस्यों के साथ साजिश रची थी और संगठन को बढ़ावा देने के लिए फंड की उगाही की थी।"
कोर्ट ने आगे कहा कि वह इस बात को लेकर संतुष्ट नहीं है कि इस चरण में साजिश का मामला केवल इस आधार पर बनाया गया है कि अभियुक्त ने संगठन के सदस्यों से मुलाकात की थी और अभियुक्त से बरामद की गयी राशि आतंकवादी गतिविधियों से प्राप्त थी।
इस तरह की टिप्पणी करते हुए बेंच ने हाईकोर्ट के फैसले को दरकिनार कर दिया और अभियुक्त को जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया, बशर्ते वह स्पेशल कोर्ट को संतुष्ट कर सके।
केस: सुदेश केडिया बनाम भारत सरकार [ क्रिमिनल अपील 314 – 315 / 2021 ]
कोरम : न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट
साइटेशन : एल एल 2021 एस ससी 204
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