सुप्रीम कोर्ट ने 12 वर्षों से वेजिटेटिव अवस्था में पड़े युवक की पैसिव यूथेनेशिया याचिका पर माता-पिता से मिलने की इच्छा जताई

Update: 2025-12-18 09:56 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने आज (18 दिसंबर) उस रिपोर्ट पर विचार किया, जो अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) ने 32 वर्षीय युवक की चिकित्सकीय जांच के बाद प्रस्तुत की है। यह युवक पिछले 12 वर्षों से वेजिटेटिव अवस्था में है, जब वह एक इमारत से गिर गया था। यह रिपोर्ट पैसिव यूथेनेशिया (जीवन-रक्षक उपचार हटाने) के उद्देश्य से तैयार की गई थी।

न्यायालय ने अब आदेश पारित करते हुए कहा है कि वह 13 जनवरी को युवक के माता-पिता से व्यक्तिगत रूप से बात करना चाहता है और इस बीच अधिवक्ताओं को रिपोर्ट का अध्ययन कर न्यायालय को अंतिम आदेश पारित करने में सहायता करनी होगी।

इस मामले की सुनवाई जस्टिस जे.बी. परडीवाला और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की खंडपीठ कर रही है। यह एक विविध आवेदन (Miscellaneous Application) है, जिसे युवक के पिता ने दायर कर अपने बेटे से सभी जीवन-रक्षक उपचार हटाने की अनुमति मांगी है।

2018 के संविधान पीठ के फैसले कॉमन कॉज (Common Cause) तथा जनवरी 2023 में संशोधित दिशा-निर्देशों के अनुसार, पैसिव यूथेनेशिया की अनुमति देने से पहले प्राथमिक और द्वितीयक मेडिकल बोर्ड की राय लेना अनिवार्य है। इसी क्रम में पहले प्राथमिक मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया था, जिसने अपनी रिपोर्ट में कहा कि युवक के ठीक होने की संभावना नगण्य है। रिपोर्ट के अनुसार, युवक सांस लेने के लिए ट्रेकियोस्टॉमी ट्यूब और भोजन के लिए गैस्ट्रोस्टॉमी पर निर्भर है तथा उसकी हालत गंभीर है।

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर AIIMS द्वारा द्वितीयक मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया। आज अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) ऐश्वर्या भाटी ने न्यायालय को बताया कि AIIMS की रिपोर्ट प्राप्त हो चुकी है। रिपोर्ट देखने के बाद न्यायमूर्ति परडीवाला ने इसे “बेहद दुखद” बताते हुए टिप्पणी की कि युवक इस स्थिति में हमेशा नहीं रह सकता।

चूंकि रिपोर्ट की प्रति अभी तक याचिकाकर्ता के वकील अधिवक्ता रश्मि नंदकुमार और ASG ऐश्वर्या भाटी को नहीं दी गई थी, इसलिए न्यायालय ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि उन्हें रिपोर्ट की प्रतियां उपलब्ध कराई जाएं।

न्यायालय ने कहा, “हम अब उस चरण पर पहुंच चुके हैं, जहां हमें अंतिम निर्णय लेना होगा। इसके लिए आपकी गहन सहायता की आवश्यकता होगी। यह एक बहुत ही दुखद रिपोर्ट है और हमारे लिए भी यह एक बड़ी चुनौती है, लेकिन हम लड़के को इस स्थिति में अनिश्चितकाल तक नहीं रख सकते।”

ASG भाटी ने प्रस्तुत किया कि कोई भी आदेश पारित करने से पहले परिवार से परामर्श आवश्यक है। इस पर सहमति जताते हुए न्यायालय ने कहा कि वह परिवार से व्यक्तिगत रूप से मिलना चाहता है और इस तरह के संवेदनशील मामले में ऑनलाइन बातचीत उपयुक्त नहीं होगी।

अतः कोर्ट ने निर्देश दिया कि युवक के माता-पिता 13 जनवरी को दोपहर 3 बजे समिति कक्ष (Committee Room) में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहें। कोर्ट ने यह भी कहा कि दोनों पक्षों के अधिवक्ता अपनी लिखित दलीलें प्रस्तुत करें, ताकि अंतिम आदेश पारित किया जा सके।

उल्लेखनीय है कि युवक के पिता ने इससे पहले 2024 में भी सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था और पैसिव यूथेनेशिया की अनुमति मांगी थी। उस समय कोर्ट ने इसकी अनुमति नहीं दी थी, लेकिन न्यायालय के कहने पर उत्तर प्रदेश सरकार ने युवक के इलाज की जिम्मेदारी लेने पर सहमति जताई थी। बाद में पिता ने यह कहते हुए एक और आवेदन दायर किया कि बेटे की हालत और बिगड़ गई है और वह किसी भी इलाज पर प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है।

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