500 से अधिक सुप्रीम कोर्ट के वकीलों ने नियमित फिजिकल सुनवाई शुरू करने के लिए सीजेआई को पत्र लिखा
शनिवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र भेजकर 500 से अधिक वकीलों के एक समूह ने कहा है कि,''यह बहुत प्रशंसनीय है कि इस माननीय न्यायालय ने इस देश के आम नागरिकों को न्याय तक निर्बाध पहुंच प्रदान करने के लिए वर्चुअल मोड अपनाने का विकल्प चुना है, हालांकि, कोर्ट सिस्टम की इस वर्चुअल कार्यप्रणाली के लाभों की तुलना में इसमें कमी अधिक हैं।''
इस प्रतिनिधित्व में फिजिकल सुनवाई को फिर से शुरू करने के लिए कहा गया है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के सदस्यों और उनके कर्मचारियों के समक्ष कई व्यावहारिक मुद्दे और समस्याएं आ रही हैं। जो इस प्रकार हैंः
-नेटवर्क कनेक्टिविटी मुद्दे
-वर्चुअल सुनवाई के संबंध में रजिस्ट्री द्वारा कोई उचित प्रबंधन नहीं
-हेंड मेंशनिंग ब्रांच में संबंधित अधिकारियों द्वारा कॉल का कोई जवाब न देना
-कोई कारण प्रदान किए बिना ही मेंशनिंग ब्रांच द्वारा तत्काल मामलों की मेंशनिंग को खारिज कर देना
-इस बार के 50 प्रतिशत से अधिक युवा वकील दिल्ली छोड़ने के लिए विवश हो चुके हैं क्योंकि वे अपने रहने के खर्च को पूरा करने में असमर्थ थे
-दिल्ली एनसीआर में रहने वाले सदस्य और इस माननीय न्यायालय के समक्ष प्रैक्टिस करने वालों की कमाई पर बहुत प्रभाव पड़ा है, जिस कारण उन्हें अब या तो अपने परिवार पर निर्भर रहना पड़ रहा है या अन्य तरह की नौकरियों पर।
इस पृष्ठभूमि में, वकीलों ने लिखा है कि वर्चुअल सिस्टम एक प्रभावी न्याय वितरण प्रणाली के रूप में पर्याप्त रूप से काम करने में विफल रहा है और यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि अटॉर्नी जनरल और यहां तक कि कई न्यायाधीशों ने भी इस तंत्र की प्रभावशीलता के बारे में अपनी नाराजगी व्यक्त की है।
यह भी कहा गया कि बार के अधिकांश सदस्य वर्चुअल सिस्टम से अच्छी तरह से वाकिफ नहीं हैं। यह भी एक कारण है जा पिछले 10 महीनों के उनके कष्टों को बढ़ा रहा है और न्याय प्रणाली के उद्देश्य को पराजित कर रहा है।
पत्र में कहा गया है कि COVID19 प्रतिबंधों को सभी सरकारी और निजी क्षेत्रों में भी अब ढ़िलाई दे दी गई है। कई उच्च न्यायालयों ने नियमित फिजिकल मोड (वर्चुअल हियरिंग के साथ) पर काम करना शुरू कर दिया है और यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री भी फिजिकल रूप से काम कर रही है।
इसलिए, वकीलों ने शीर्ष अदालत से एक हाइब्रिड प्रणाली शुरू करने का आग्रह किया है, जिसमें नियमित फिजिकल सुनवाई और वर्चुअल सुनवाई दोनों की अनुमति दी जाए और बार के सदस्यों को दोनों माध्यमों में से किसी एक का चयन करने की अनुमति देें।
इसी बीच पत्र में मेंशनिंग और लिस्टिंग से संबंधित शिकायतों पर भी प्रकाश ड़ाला गया है। कहा गया है कि,
''हम इस बार के सदस्य खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं क्योंकि मेंशनिंग ब्रांच दिन भर (काम के घंटों) में हमारे कॉल का जवाब नहीं देती है जिसके परिणामस्वरूप कई महत्वपूर्ण मामले लंबित रहते हैं और निष्फल हो जाते हैं, इस तथ्य से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि क्या ये मामले नए हैं या नोटिस के बाद सुनवाई पर आने वाले हैं। जमानत के मामलों सहित नागरिकों के जीवन और स्वतंत्रता से संबंधित कई मामलों पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है,परंतु उन पर सुनवाई नहीं हो पाती है,जिस कारण मुविक्कलों और वकीलों के लिए असहाय स्थिति बन रही है।''
इस बिंदु पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि मंगलवार को ही सीजेआई ने इस संबंध में दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान, इस समय चल रही महामारी के दौरान फिजिकल सुनवाई फिर से शुरू करने के साथ जुड़े जोखिमों पर प्रकाश डाला था।
उन्होंने कहा था कि वर्चुअल सुनवाई के लिए हालांकि वैश्विक महामारी ने मजबूर किया है,परंतु यह ''ओपन कोर्ट की सुनवाई जितनी अच्छी है।'' उन्होंने कहा कि वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए अदालती कार्यवाही बुलाने का फैसला चिकित्सा विशेषज्ञों के साथ व्यापक विचार-विमर्श के बाद लिया गया है।
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