'COVID-19 के कारण लिमिटेशन अवधि बढ़ाने का आदेश अब भी ऑपरेटिव' : सुप्रीम कोर्ट ने देरी से फाइल किये गये लिखित बयान को रिकॉर्ड पर लेने का एनसीडीआरसी को निर्देश दिया

Update: 2020-12-22 04:42 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अदालतों और न्यायाधिकरणों में फाइलिंग के लिए लिमिटेशन अवधि बढाये जाने को लेकर 23 मार्च 2020 का उसका आदेश अब भी प्रभावी है।

न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट की खंडपीठ ने यह टिप्पणी राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) की ओर से जारी उस आदेश को निरस्त करते हुए की, जिसमें आयोग ने लिखित बयान लेने से यह कहते हुए मना कर दिया था कि उसे शिकायत का जवाब दाखिल करने के लिए 45 दिन से अधिक समय देने का अधिकार नहीं है।

कोर्ट ने कहा कि इस मामले में लिखित बयान दाखिल करने की अवधि 12 अगस्त 2020 को समाप्त हो गयी थी और इसके लिए 15 दिन की विस्तारित अवधि भी 27 अगस्त 2020 को खत्म हो गयी तथा उसके बाद इसे दायर किया गया। बेंच ने कहा कि यह सही है कि 'न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम हिली मल्टीपरपस कोल्ड स्टोरेज प्राइवेट लिमिटेड (2020) 5 एससीसी 757' मामले में इस कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले में स्पष्ट प्रावधान किया गया है कि उपभोक्ता संरक्षण कानून, 2019 की धारा 38 के तहत 45 दिनों की अवधि के बाद कोई भी लिखित दस्तावेज दाखिल करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

हालांकि बेंच ने लिमिटेशन अवधि बढ़ाने के लिए स्वत: संज्ञान मामले में 23 मार्च 2020 को जारी आदेश का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था,

"इस प्रकार की कठिनाइयों के निवारण और यह सुनिश्चित करने के लिए कि वकीलों / वादियों को इस अदालत सहित देश भर के संबंधित अदालतों और न्यायाधिकरणों में ऐसी कार्यवाहियों के लिए शारीरिक तौर पर मौजूद न होना पड़े, यह आदेश दिया जाता है कि सामान्य कानून अथवा विशेष कानूनों के तहत निर्धारित लिमिटेशन अवधि की परवाह किये बिना ऐसे सभी मामलों में निर्धारित लिमिटेशन अवधि बढ़ायी जायेगी और यह आदेश 15 मार्च 2020 से प्रभावी होगा तथा मौजूदा मामलों में इस कोर्ट की ओर से जारी होने वाले अगले आदेश तक लागू रहेगा।"

इस प्रकार बेंच ने कहा कि राष्ट्रीय आयोग के समक्ष मौजूदा मुकदमे में लिखित बयान फाइल करने की लिमिटेशन अवधि को बढ़ा हुआ माना जायेगा, क्योंकि 23 मार्च 2020 के आदेश से यह स्पष्ट है कि लिमिटेशन की विस्तारित अवधि सभी याचिकाओं / आवेदनों / वादों / अपीलों और अन्य सभी मुकदमों के लिए लागू होगी।

बेंच ने कहा :

"उपरोक्त आदेश अब भी प्रभावी है और उसके बाद के आदेशों द्वारा इसका दायरा बढ़ा दिया गया है ताकि कथित आदेश अन्य मुकदमों में भी लागू हो सके। मौजदूा मामले में, यह स्वीकार्य तथ्य है कि इस मामले में लिखित बयान दाखिल करने की अवधि 12 अगस्त 2020 को समाप्त हो गयी थी और इसके लिए 15 दिन की विस्तारित अवधि भी 27 अगस्त 2020 को खत्म हो गयी। यह अवधि उस वक्त खत्म हुई, जब एसएमडब्ल्यू (सी) नंबर 3 / 2020 मामले में 23 मार्च 2020 को पारित आदेश जारी था। इस प्रकार राष्ट्रीय आयोग के समक्ष लंबित मुकदमे में लिखित बयान फाइल करने में चार दिनों की देरी अनुमति देने लायक है और तदनुसार इसकी अनुमति दी जाती है।"

अपील मंजूर करते हुए, बेंच ने आयोग को अपीलकर्ता द्वारा फाइल किये गये लिखित बयान को रिकॉर्ड में लेने का निर्देश दिया।

23 मार्च 2020 का आदेश और उसके आगे के आदेश

भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) शरद अरविंद बोबडे, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की खंडपीठ ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत प्रदत्त विशेष अधिकारों का इस्तेमाल करके 23 मार्च को आदेश जारी करते हुए कहा था,

"इस प्रकार की कठिनाइयों के निवारण और यह सुनिश्चित करने के लिए कि वकीलों / वादियों को इस अदालत सहित देश भर के संबंधित अदालतों और न्यायाधिकरणों में ऐसी कार्यवाहियों के लिए शारीरिक तौर पर मौजूद न होना पड़े, यह आदेश दिया जाता है कि सामान्य कानून अथवा विशेष कानूनों के तहत निर्धारित लिमिटेशन अवधि की परवाह किये बिना ऐसे सभी मामलों में निर्धारित लिमिटेशन अवधि बढ़ायी जायेगी और यह आदेश 15 मार्च 2020 से प्रभावी होगा तथा मौजूदा मामलों में इस कोर्ट की ओर से जारी होने वाले अगले आदेश तक लागू रहेगा।

कोर्ट ने छह अप्रैल को इस आदेश का दायरा आर्बिटेशन एक्ट और नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138 के अंतर्गत आने वाले मुकदमों पर भी बढ़ा दिया था। दस जुलाई को कोर्ट ने स्वत: संज्ञान वाले इस मामले के लिमिटेशन आदेश का दायरा बढ़ाकर आर्बिटेशन एंड कंसिलिएशन एक्ट, 1996 की धारा 29ए और 23(4) तथा वाणिज्यिक अदालत कानून 2015 की धारा 12ए के अधीन दायर मामलों तक किया था।

सीजेआई की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने 18 सितम्बर को स्पष्ट किया था कि कथित आदेश लिमिटेशन अवधि तक केवल बढ़ायी गयी है, न कि उस अवधि तक जिसमें देरी को विधि द्वारा प्रदत्त विशेषाधिकार के इस्तेमाल से माफ किया जा सकता है। कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि लिमिटेशन एक्ट की धारा 4 में "वर्णित अवधि" की अभिव्यक्ति का अर्थ लिमिटेशन अवधि के अलावा किसी अन्य चीज से नहीं लगाया जाना चाहिए।

केस का नाम: मेसर्स एस एस ग्रुप प्राइवेट लिमिटेड बनाम आदित्य जे. गर्ग एवं अन्य। [सिविल अपील नंबर 4085 / 2020]

कोरम : जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस एस रवीन्द्र भट

वकील : एडवोकेट संजय के. शांडिल्य, एडवोकेट नवीन कुमार

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