एक बार जब नियुक्ति अवैध घोषित कर दी जाती है और शुरू से ही अमान्य हो जाती है तो कोई कानूनी रूप से सेवा में बने नहीं रह सकता और वेतन का दावा नहीं कर सकता: सुप्रीम कोर्ट
असम की एक सहायक शिक्षिका ने वेतन भुगतान के लिए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक केस दायर किया था। उसे 2001 के बाद से वेतन जारी नहीं किया गया था।
मामले की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि प्रारंभिक शिक्षा निदेशक ने जब एक बार नियुक्ति को अवैध और शून्य घोषित कर दिया हो तो कैंसिलेशन ऑर्डर को चुनौती देने के अभाव में सेवा में बने रहना अप्रतिरक्ष्य हो जाता है।
कोर्ट ने ने माना कि कैंसिलेशन ऑर्डर का विरोध न कर पाना अपीलकर्ता को सेवा में बने रहने के कानूनी अधिकार और परिणामी वेतन दावों का दावा करने से रोकता है।
अदालत ने कहा,
"एक बार जब अपीलकर्ता की नियुक्ति को अवैध और शून्य घोषित कर दिया गया हो और प्राथमिक शिक्षा निदेशक, असम ने 18.10.2001 के आदेश के जरिए नियुक्ति रद्द कर दी हो तो अपीलकर्ता कानूनी तौर पर उसके बाद सेवा में तब तक बना नहीं रहा सकता, जब तक कि कैंसिलेशन आदेश को रद्द न कर दिया जाए। हाईकोर्ट ने यह देखा है कि 18.10.2001 के आदेश को अपीलकर्ता ने कभी चुनौती नहीं दी थी। इस प्रकार, अपीलकर्ता को सेवा में बने रहने का कोई कानूनी अधिकार नहीं था, खासकर जब अपीलकर्ता की ओर से रिकॉर्ड पर कोई आदेश या पत्र नहीं रखा गया कि उसे 31.03.2002 से आगे सेवा में जारी रखने की अनुमति दी गई थी। किसी भी अवधि के लिए वेतन भुगतान का कोई दावा नहीं किया जा सकता है।”
जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस राजेश बिंदल की सुप्रीम कोर्ट की पीठ गुवाहाटी हाईकोर्ट के एक फैसले के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसने असम में सहायक शिक्षक के रूप में 2001 से अवैतनिक वेतन जारी करने के अपीलकर्ता के दावे को खारिज कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने किसी व्यक्ति द्वारा बिना कोई वेतन प्राप्त किए, लगभग दो दशकों तक लंबे समय तक काम करने पर संदेह व्यक्त किया।
कोर्ट ने कहा,
''यह विश्वास करना मुश्किल है कि कोई व्यक्ति दो दशकों से बिना किसी वेतन के काम कर रहा है। यहां तक कि उसने वर्ष 2008 में हाईकोर्ट में रिट याचिका भी दायर की थी, जिसमें 12.03.2001 से यानी सात साल बाद वेतन का दावा किया गया था।''
न्यायालय ने हाईकोर्ट की ओर से तथ्य की समवर्ती खोज में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और अपील खारिज कर दी।
इस मामले में, अपीलकर्ता ने दावा किया कि उसे उदलगुरी विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र में कथित रिक्तियों के तहत बेंगाबाड़ी एमई स्कूल में सहायक शिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया था।
माना जाता है कि सक्षम प्राधिकारी की ओर से 28.12.1996 को जारी एक विज्ञापन के आधार पर, उप-विभागीय चयन बोर्ड ने 12.03.2001 को आयोजित एक बैठक में उन्हें नियुक्त किया था। इस विज्ञापन का उद्देश्य पूरे क्षेत्र में सहायक शिक्षकों के नियमित पदों को भरना था।
हालांकि, अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता को इसके अनुसार कोई नियुक्ति पत्र जारी नहीं किया गया था। इसके बजाय, जिला प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी, दरांग, मंगलदोई की ओर से 12.03.2001 को जरी नियुक्ति पत्र में बेंगाबारी एमई स्कूल में सहायक शिक्षक के रूप में उनकी नियुक्ति का उल्लेख किया गया था।
यह संस्था दारांग जिले के एक उप-मंडल मंगलदोई के अंतर्गत आती है, न कि उदलगुरी विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत, जैसा कि शुरू में दावा किया गया था।
अदालत ने कहा,
"अपीलकर्ता के नियुक्ति पत्र में यह कहीं नहीं कहा गया है कि उक्त नियुक्ति जारी किए गए किसी विज्ञापन के अनुसरण में थी या उम्मीदवारों ने इसके लिए कोई चयन प्रक्रिया अपनाई थी।"
न्यायालय ने पाया कि वास्तव में, प्रारंभिक शिक्षा निदेशक ने 18.10.2001 के एक आदेश के माध्यम से जिला प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी, दर्रांग, मंगलदोई की ओर से की गई अपीलकर्ता सहित कई नियुक्तियों को अवैध और शून्य घोषित कर दिया।
केस टाइटल: श्रीमती डुलु डेका बनाम असम राज्य
साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (एससी) 691