बांके बिहारी मंदिर के बेहतर प्रशासन के लिए अध्यादेश लाया गया; धार्मिक अधिकारों में हस्तक्षेप का कोई इरादा नहीं: उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया
उत्तर प्रदेश सरकार ने श्री बांके बिहारी जी मंदिर न्यास अध्यादेश, 2025 के खिलाफ दायर याचिकाओं के मामले में सोमावार को सुप्रीम कोर्ट में दलील पेश की।
सरकार ने कहा कि उसका इस अध्यादेश के माध्यम से किसी भी धार्मिक अधिकार में हस्तक्षेप करने का कोई इरादा नहीं है। सरकार ने दावा किया कि अध्यादेश को जल्द ही अनुमोदन के लिए विधानसभा में पेश किया जाएगा।
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज प्रस्तुत किया,
"पहले मैं अध्यादेश को स्पष्ट कर दूं...इसका पहले की रिट याचिका से कोई लेना-देना नहीं है...हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी, जहां कुछ निर्देश जारी किए गए थे...कोर्ट ने बेहतर योजना बनाने को कहा था...राज्य का कभी भी किसी भी पक्ष के धार्मिक अधिकारों में हस्तक्षेप करने का इरादा नहीं था और न ही है...यह केवल धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों के संबंध में है, यानी मंदिर के बेहतर प्रशासन के लिए अध्यादेश जारी किया गया है और जल्द ही इसे विधानसभा में अनुमोदित किया जाएगा...इस मंदिर का एक इतिहास है...प्रतिदिन लगभग 20,000-30,000 भक्त दर्शन करते हैं...सप्ताहांत में 2-3 लाख आगंतुक आते हैं...हमें बेहतर सुविधाओं की आवश्यकता है, साथ ही हमें धन के कुप्रबंधन को भी रोकना है...ये अलग-अलग विचार हैं, जो सरकार के दिमाग में थे।"
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश ये दलीलें सुप्रीम कोर्ट की ओर से की गई आलोचनात्मक टिप्पणियों की पृष्ठभूमि में की गई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में वृंदावन स्थित बांके बिहारी मंदिर का प्रबंधन अपने हाथ में लेने के लिए अध्यादेश जारी करने में उत्तर प्रदेश सरकार की "अत्यधिक जल्दबाजी" पर सवाल उठाया था। उस सुनवाई में, न्यायालय ने उस "गुप्त तरीके" पर असहमति जताई, जिसमें राज्य सरकार ने 15 मई के फैसले के ज़रिए मंदिर के धन के इस्तेमाल की अनुमति एक ऐसे दीवानी विवाद में आवेदन दायर करके हासिल की, जिसमें मंदिर प्रबंधन पक्षकार नहीं था।
राज्य सरकार की ओर से सोमवार को प्रस्तुत प्रस्ताव पर विचार करने के बाद जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने याचिकाकर्ताओं को भी अपने सुझाव देने का अवसर देने के लिए मामले की सुनवाई शुक्रवार तक के लिए स्थगित कर दी।
पीठ ने दोनों पक्षों से एक अंतरिम उपाय के रूप में मंदिर प्रबंधन की निगरानी के लिए एक समिति के प्रमुख के रूप में उच्च न्यायालय के एक पूर्व न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए अपनी सिफारिशें देने को भी कहा।
जहां तक उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा वैष्णव संप्रदाय (हिंदू धर्म) से जुड़े किसी पूर्व हाईकोर्ट जज की नियुक्ति का सुझाव दिया गया था, पीठ ने ऐसा न्यायाधीश ढूंढने में कठिनाई व्यक्त की। जस्टिस बागची ने कहा, "एक ही धर्म का होना ही पर्याप्त है।"
न्यायाधीश ने कोलकाता के काली माता मंदिर का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां का जिला न्यायाधीश हमेशा उसी धर्म का व्यक्ति होता है।
बैकग्राउंड
बांके बिहारी मंदिर से जुड़ा विवाद वृंदावन स्थित प्रतिष्ठित बांके बिहारी मंदिर के सेवायतों के दो संप्रदायों के बीच लंबे समय से चले आ रहे आंतरिक मतभेदों से जुड़ा है। लगभग 360 सेवायतों वाले इस मंदिर का प्रबंधन ऐतिहासिक रूप से स्वामी हरिदास जी के वंशजों और अनुयायियों द्वारा निजी तौर पर किया जाता रहा है।
15 मई को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2023 के आदेश में संशोधन करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को मंदिर के धन का उपयोग कॉरिडोर विकास के लिए मंदिर के आसपास की 5 एकड़ भूमि अधिग्रहित करने की अनुमति दी, इस शर्त पर कि अधिग्रहित भूमि देवता के नाम पर पंजीकृत होगी।
हाल ही में, राज्य ने 2025 का अध्यादेश जारी किया, जो मंदिर प्रशासन को एक वैधानिक न्यास प्रदान करता है। इसके अनुसार, मंदिर का प्रबंधन और श्रद्धालुओं की सुविधाओं की जिम्मेदारी 'श्री बांके बिहारी जी मंदिर न्यास' द्वारा संभाली जाएगी। 11 न्यासी मनोनीत किए जाएंगे, जबकि अधिकतम 7 सदस्य पदेन हो सकते हैं।