"देश में जो हो रहा है उसके लिए नूपुर शर्मा अकेली जिम्मेदार हैं": पैगंबर मोहम्मद पर उनकी टिप्पणियों पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा

Update: 2022-07-01 06:15 GMT

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने पैगंबर मोहम्मद पर कथित टिप्पणी के मामले में नूपुर शर्मा (Nupur Sharma) ने कई राज्यों में उनके खिलाफ दर्ज दर्जनों एफआईआर (FIR) की जांच के लिए दिल्ली ट्रांसफर करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए नूपुर शर्मा को फटकार लगाई।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की अवकाश पीठ ने राष्ट्रीय टेलीविजन पर एक विशेष धार्मिक समुदाय के संस्थापक के खिलाफ ''अपमान करने वाले'' बयान देने के लिए भाजपा के पूर्व प्रवक्ता की आलोचना की।

कोर्ट ने यह भी नोट किया कि उसने केवल "सशर्त माफी" मांगी, वह भी अपनी टिप्पणी के खिलाफ सार्वजनिक हंगामे के बाद।

कोर्ट ने कहा,

"उसने देश भर में भावनाओं को प्रज्वलित किया है। देश में जो हो रहा है उसके लिए यह महिला अकेले जिम्मेदार है।"

जैसे शर्मा की ओर से पेश एडवोकेट मनिंदर सिंह ने उनके द्वारा जारी लिखित माफी की ओर इशारा किया, अदालत ने कहा,

"उसे टीवी चैनल में जाकर देश से माफ़ी मांगनी चाहिए थी। उसने माफी मांगने में भी देरी की है और वह भी सशर्त रूप से कहती है कि अगर भावनाओं को ठेस पहुंची है।"

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केवल एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल की प्रवक्ता होने से किसी के खिलाफ अपमानजनक बातें करने का लाइसेंस नहीं मिलता है।

आगे कहा,

"ये बिल्कुल भी धार्मिक लोग नहीं हैं, ये भड़काऊ बयान देते हैं।"

सुप्रीम कोर्ट ने शर्मा पर निचली अदालतों को दरकिनार कर सीधे शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने पर भी आपत्ति जताई।

कोर्ट ने कहा,

"याचिका में उसके अहंकार की बू आती है कि देश के मजिस्ट्रेट उसके लिए बहुत छोटे हैं।"

27 मई को टाइम्स नाउ में ज्ञानवापी मस्जिद मुद्दे पर चैनल डिबेट के दौरान शर्मा ने पैगंबर मुहम्मद के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की थी।

आज, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चैनल के पास इस मामले पर चर्चा करने का कोई अधिकार नहीं है, जब मामला कोर्ट में विचाराधीन है।

आगे कहा कि अगर शर्मा बहस के कथित दुरुपयोग से व्यथित हैं, तो उन्हें एंकर के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करानी चाहिए थी।

सिंह ने तर्क दिया कि बयान उकसाने की स्थिति में दिए गए थे। उन्होंने आगे कहा कि इस मुद्दे पर एक ही समुदाय के भीतर गंभीर बहस चल रही है, और शर्मा की टिप्पणी इससे हटकर नहीं है।

उन्होंने अर्नब गोस्वामी के मामले पर यह तर्क देने के लिए भरोसा किया कि एफआईआर को क्लब करने की राहत दी जा सकती है।

जस्टिस कांत ने टिप्पणी की,

"किसी विशेष मुद्दे पर अधिकार व्यक्त करने पर एक पत्रकार का मामला एक प्रवक्ता से अलग आधार पर है जो परिणामों के बारे में सोचे बिना गैर-जिम्मेदाराना बयानों दे रही हैं।"

कोर्ट ने याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया और शर्मा को हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने को कहा।

कोर्ट ने कहा,

"अदालत की अंतरात्मा संतुष्ट नहीं है। आप अन्य उपायों का लाभ उठाएं।"

तद्नुसार, याचिका को वापस लेने की स्वतंत्रता प्रदान की गई।

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