सीआरपीसी की धारा 313 के तहत अभियुक्त से परिस्थितियों के बारे में न पूछने को उसी के खिलाफ इस्तेमाल नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 313 के तहत बयान के समय घटना की परिस्थितियों के बारे में न पूछे जाने को उसी के खिलाफ इस्तेमाल नहीं किया जा सकता और उन पर विचार नहीं किया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति रोहिंगटन फली नरीमन की अध्यक्षता वाली तीन-सदस्यीय खंडपीठ ने बलात्कार के आरोपी को बरी करते हुए आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 313 के तहत आरोपी के समक्ष सभी प्रासंगिक सवालों को रखे जाने की महत्ता पर फिर से जोर दिया।
ट्रायल कोर्ट ने रामेश्वर टिग्गा नामक अभियुक्त को शादी का झांसा देकर एक महिला के साथ बलात्कार का दोषी ठहराया था, जिसे उसने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने अपील खारिज करते हुए कहा था कि पीड़िता को आरोपी द्वारा लिखे गये पत्र, उनके एक साथ की तस्वीरें और सीआरपीसी की धारा 313 के तहत दर्ज बयान उसे दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त सबूत हैं।
अभियुक्त ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था तथा दलील दी थी कि सीआरपीसी की धारा 313 के तहत उसके समक्ष जो सवाल रखे गये थे वे बिल्कुल अनौपचारिक और लापरवाह थे, जिसके कारण उसे अपने बचाव का उचित अवसर नहीं मिला, जो निष्पक्ष ट्रायल के उसके अधिकार को इनकार करने के साथ- साथ उसके प्रति गम्भीर पूर्वग्रह का भी द्योतक है। खंडपीठ में न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी भी शामिल थे।
बेंच ने सीआरपीसी की धारा 313 के तहत प्रश्नावली का उल्लेख करते हुए कहा कि अभियुक्त के समक्ष किये गये सवाल वाकई अनौपचारिक और लापरवाह थे। बेंच ने 'नवल किशोर सिंह बनाम बिहार सरकार (2004) 7 एससीसी 502' के मामले का उल्लेख करते हुए कहा :
"यह पूरी तरह स्थापित तथ्य है कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 313 के तहत बयान के समय आरोपी से घटना की परिस्थितियों के बारे में न पूछे जाने को उसी के खिलाफ इस्तेमाल नहीं किया जा सकता और उन पर विचार नहीं किया जाना चाहिए। किसी आपराधिक मामले के ट्रायल में एक अभियुक्त के समक्ष रखे गये सवालों का महत्व प्राकृतिक न्याय के छह सिद्धांतों का मूल है, क्योंकि यह उस अभियुक्त को अपने बचाव का अवसर ही नहीं देता, बल्कि उसके खिलाफ आपत्तिजनक परिस्थितियों की व्याख्या करने का भी मौका देता है। एक अभियुक्त द्वारा किया गया संभावित बचाव उचित संदेह से परे सबूत के बिना आरोप के खंडन के लिए पर्याप्त है। इस कोर्ट ने समय समय पर सीआरपीसी की धारा 313 के तहत आरोपी से सभी प्रासंगिक प्रश्न पूछे जाने की महत्ता पर जोर दिया है।"
अभियुक्त को बरी करते हुए कोर्ट ने कहा कि शादी के वादे के कारण उत्पन्न गलतफहमी घटना के समय के इर्द-गिर्द होनी चाहिए, न कि विरोध न करने की सकारात्मक चेतना के साथ लंबा समय बीत जाने के बाद।
केस नं. : क्रिमिनल अपील नं. 635 / 2020
केस का नाम : महेश्वर टिग्गा बनाम झारखंड सरकार
कोरम : न्यायमूर्ति रोहिंगटन फली नरीमन, न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी
वकील : एडवोकेट वी मोहन, एडवोकेट प्रज्ञा बघेल