सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया, एनआई एक्ट की धारा 148 में पूर्वप्रभा‌वी, जबकि 143A भावी प्रभाव की है

Update: 2020-01-09 10:43 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 148 पूर्वप्रभावी है, जबकि धारा 143 ए नहीं है।

इस मामले में, अभियुक्त को एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराया गया था। अपीलीय कोर्ट ने उन्हें ट्रायल कोर्ट की ओर से लगाए गए मुआवजे/ जुर्माने की 25 फीसदी राशि जमा करने को कहा।

फिलहाल यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है, जिसमें सवाल उठा है कि धारा 148 पूर्वप्रभावी है या नहीं।

मई 2019 में, सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने कहा था कि निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 148 में संशोधन किया गया है, जो एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत सजा और दोष के आदेश के खिलाफ अपील के संबंध में लागू होगा।

यहां तक ​​कि ऐसे मामले में भी जहां एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत आपराधिक शिकायत 2018 यानी एक सितंबर 2018 को एक्ट में संशोधन से पहले दायर हो चुकी है, उन पर भी लागू होगी।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, सेशन जज ने, ये देखते हुए कि ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाए गए मुआवजे/जुर्माने की राशि का 25% जमा करने के आदेश की अनुपालना नहीं हुई है, आरोपी को चार दिनों के भीतर ट्रायल कोर्ट में सरेंडर करने का आदेश दिया।

आरोपी ने सेशन कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए धारा 482 सीआरपीसी के तहत याचिका दायर की, जिसके बाद वह आदेश खारिज हो गया। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मौजूदा अपील हाईकोर्ट के आदेश के आधार पर दायर की गई है।

जीजे राजा बनाम तेजराज सुराणा के आदेश पर भरोसा करते हुए, जिसने एनआई एक्ट की धारा 143 ए के प्रावधानों को भावी प्रभाव का रखा, जो कि धारा 143 ए की प्रविष्टि के बाद किए गए अपराध के ही लागू होता है। ये 01 सितंबर 2018 से प्रभावी था।

वर्तमान अपील में दलील दी गई कि धारा 143 और धारा 148 दोनों एनआई एक्ट में 2018 के संशोधन अधिनियम 20 द्वारा डाला गया था, इसलिए धारा 148 वर्तमान मामले में लागू नहीं होती है, जो केवल भावी प्रभाव की थी और जिसका उपयोग उन अपराधों में जो 01 सितंबर 2018 के बाद किए गए थे, में किया जा सकता था।

उक्त विवाद को खारिज करते हुए जस्टिस अशोक भूषण और ज‌स्ट‌िस एमआर शाह की खंडपीठ ने कहा:

बेंच ने जीजे राजा के मामले ने फैसला लेते हुए अपीलकर्ताओं सुरेंद्र सिंह देसवाल के मामले में ‌‌‌दिए इस अदालत के फैसले पर गौर किया है और उन्होंने कहा है कि सुरिंदर सिंह देसवाल के मामले में इस कोर्ट का फैसला एनआई एक्ट की धारा 148 पर था, जो अभियुक्तों को दोषी ठहराने के बाद एक चरण है और उस चरण से अलग है, जिसमें एनआई एक्ट की धारा 143 ए के तहत अंतरिम मुआवजा प्रदान किया गया था।

जब खंडपीठ ने जीजे राजा के मामले (सुप्रा) पर फैसला लेते हुए स्वयं उसे अपीलकर्ता सुरेंद्र देसवाल के मामले में दिए इस कोर्ट के फैसले से अलग रखा है, इसलिए जीजे राजा के मामले में दिए फैसले पर विद्वान वकील का अपीलकर्ता के लिए भरोसा करना ठीक नहीं है।

एक अन्य विवाद पर बेंच ने ने कहा कि जब ट्रायल कोर्ट द्वारा सजा को किस शर्त पर निलंबित कर दिया जाता है तो शर्त के गैर-अनुपालन से सजा के निलंबन की निरंतरता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

केस का नाम: सुरिंदर सिंह देसवाल@ COL. SS DESWAL बनाम वीरेंदर गांधी

केस: CRIMINAL APPEAL NOS.1936-1963 OF 2019

कोरम: जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एमआर शाह

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