[वीसी के माध्यम से बाल गवाहों की गवाही की रिकॉर्डिंग] नालसा को रिमोट प्वाइंट को-ऑर्डिनेटर्स को मानदेय के रूप में प्रतिदिन 1500 रुपये का भुगतान करना होगा : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने गत 24 जनवरी को बाल पीड़ितों/मानव तस्करी के उन गवाहों की गवाही की वर्चुअल रिकॉर्डिंग से संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) से 'रिमोट प्वाइंट को-ऑर्डिनेटर्स (आरपीसी)' को दिए जाने वाले मानदेय को वहन करने के लिए पूछा था, जिन्हें ट्रायल कोर्ट में सबूत देने के लिए राज्यों या जिलों की यात्रा करने की आवश्यकता होती है।
मंगलवार (1 फरवरी) को, एमिकस क्यूरी गौरव अग्रवाल (जो नालसा के लिए भी पेश हुए थे) ने कोर्ट को अवगत कराया था कि वह आरपीसी को मानदेय के भुगतान का ध्यान रखने और आवश्यकता पड़ने पर बाल गवाहों को कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए तैयार है, जब वे बयान की रिकॉर्डिंग के लिए आते हैं।
"हमने एमिकस क्यूरी, जो नालसा की ओर से भी उपस्थित होते हैं, से अनुरोध किया था कि वे आरपीसी को किए जाने वाले भुगतान से संबंधित खर्च को वहन करने के लिए नालसा की इच्छा के संबंध में निर्देश प्राप्त करें।
एमिकस ने नालसा से प्राप्त निर्देशों पर निम्नलिखित का सुझाव दिया:
नालसा आरपीसी को 1500 रुपये प्रतिदिन का भुगतान करेगा, जब भी वीसी के माध्यम से बाल गवाहों की गवाही के लिए आरपीसी की आवश्यकता होती है;
नालसा बच्चों को गवाही के लिए आने वाले दिनों में कानूनी सहायता प्रदान करेगा, अगर बच्चे का प्रतिनिधित्व किसी अन्य वकील द्वारा नहीं किया जाता है।"
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी.आर. गवई की पीठ ने पायलट प्रोजेक्ट के दौरान आरपीसी को दिए जाने वाले मानदेय पर विचार करते हुए बाल गवाहों की गवाही दर्ज कराने में जुटे रिमोट प्वाइंट समन्वयकों को 1500 रुपये प्रतिदिन का मानदेय तय किया।
"एमिकस क्यूरी द्वारा आरपीसी को मानदेय के भुगतान के स्रोत के बारे में दिशा-निर्देश मांगा गया था। हमें सूचित किया गया था कि पायलट प्रोजेक्ट में आरपीसी को 1500 रुपये का दैनिक मानदेय का भुगतान किया गया था। हमारी राय है कि आरपीसी को 1500 रुपये मानदेय का भुगतान किया जाना चाहिए।"
खंडपीठ ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सुश्री अनीता शेनॉय द्वारा प्रस्तुत मानक संचालन प्रक्रिया ("एसओपी") के अंतिम मसौदे का उन सभी आपराधिक परीक्षणों में पालन किया जाना चाहिए, जिनमें अदालत के पास न रहने वाले बाल गवाहों की गवाही ली जानी है।
"हमने एसओपी के मसौदे की सावधानीपूर्वक जांच की है, जिसमें दूरस्थ बिंदुओं पर बाल गवाहों की गवाही दर्ज करने के लिए उठाए जाने वाले कदमों के बारे में सूक्ष्म विवरण शामिल हैं। हाईकोर्ट द्वारा प्रतिक्रियाएं दी गयी हैं। एसओपी पर तत्काल प्रभाव से अमल करने पर हाईकोर्ट द्वारा कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई गई है। एसओपी का उपयोग उन सभी आपराधिक ट्रायल में किया जाएगा जिनमें वैसे बाल गवाहों से पूछताछ की जाती है जो अदालत के पास नहीं रहते हैं .. हम आरपीसी को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देते हैं कि बच्चों के अनुकूल उपायों को अपनाया जाए ...।"
सुनवाई की आखिरी तारीख पर, सुश्री शेनॉय ने दलील दी थी कि सीआरपीसी की धारा 312 गवाहों को भुगतान करने का प्रावधान करती है और इसका उपयोग मानदेय के भुगतान के लिए किया जा सकता है।
बेंच ने माना कि -
"हम सुश्री शेनॉय से सहमत हैं कि सीआरपीसी की धारा 312 आपराधिक अदालत को सरकार को मुकदमे या अन्य कार्यवाही में भाग लेने वाले गवाहों के खर्च का भुगतान करने का निर्देश देने का अधिकार देती है।"
सुश्री शेनॉय के अनुरोध पर, बेंच ने स्पष्ट किया कि गोपनीयता के सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए न्यायिक अधिकारियों को रिमोट प्वाइंट और कोर्ट प्वाइंट दोनों पर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जहां कहीं भी जरूरी हो तो साक्ष्य की रिकॉर्डिंग बंद कमरे में हो।
"रिमोट प्वाइंट पर संबंधित न्यायिक अधिकारी और ट्रायल कोर्ट यह सुनिश्चित करेंगे कि साक्ष्य की रिकॉर्डिंग, जहां भी आवश्यक हो, बंद कमरे में होगी।"
पीठ ने उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम में जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) के कार्यालयों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधाओं को मजबूत करने के लिए नालसा द्वारा उठाए गए रुख की सराहना की। इसने नालसा को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि जब कोर्ट कॉम्प्लेक्स में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधा उपलब्ध न हो तो डीएलएसए में उपलब्ध वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधा का उपयोग बाल गवाहों के बयान दर्ज करने के लिए किया जाए।
रिट याचिका को अगली बार मई, 2022 के पहले सप्ताह में सूचीबद्ध किया जाना है।
[केस टाइटल: संतोष विश्वनाथ शिंदे बनाम भारत सरकार| रिट याचिका (क्रिमिनल) संख्या 274 /2020]