म्यूटेशन प्रविष्टियां खुद को टाइटल प्रदान नहीं करती : सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि म्यूटेशन प्रविष्टियां खुद को टाइटल प्रदान नहीं करती हैं।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ बृहत बंगलौर महानगर पालिके द्वारा दायर अपील का निस्तारण करते हुए ये कहा है जिसमें कुछ पक्षों के नाम पर एक संपत्ति को म्यूटेट करने का निर्देश दिया गया था। विवाद यह था कि, विषय संपत्ति के संबंध में एक टाइटल वाद लंबित है और इसलिए उच्च न्यायालय को म्यूटेशन के लिए एक निर्देश जारी नहीं करना चाहिए।
न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय के फैसले में एक स्पष्टीकरण है कि म्यूटेशन के लिए दिशा निर्देश कर्नाटक नगर निगम अधिनियम 1956 के तहत उपलब्ध किसी भी अन्य उपाय की खोज के अधीन होगा और यह कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करके अपने टाइटल को स्थापित करने के लिए बृहत बंगलौर महानगर पालिके के लिए खुला है।
यह अच्छी तरह से तय किया गया है कि म्यूटेशन प्रविष्टियां स्वयं को टाइटल प्रदान नहीं करती हैं जो कि एक घोषणात्मक सूट में स्वतंत्र रूप से स्थापित होना है, पीठ, जिसमें जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस संजीव खन्ना भी शामिल हैं, ने कहा।
अदालत ने निगम को यह कहते हुए अंतरिम राहत देने से भी इनकार कर दिया कि सक्षम सिविल कोर्ट के समक्ष ये संबोधित करना चाहिए जहां कार्यवाही लंबित है।
सुप्रीम कोर्ट के कई फैसले हैं, जो मानते हैं कि राजस्व रिकॉर्ड में किसी भूमि का म्यूटेशन ऐसी भूमि पर टाइटल नहीं बनाता है और न ही इसे समाप्त करता है और न ही टाइटल पर इसका कोई अनुमान है। यह केवल उस व्यक्ति को सक्षम बनाता है, जिसके पक्ष में म्यूटेशन के कारण भूमि राजस्व का भुगतान करने का आदेश दिया जाता है। (सावरनी (श्रीमती) बनाम इंदर कौर, (1996) 6 SCC 223, बलवंत सिंह और अन्य बनाम दौलत सिंह (मृत) और अन्य, (1997) 7 SCC 137 और नरसम्मा और अन्य बनाम कर्नाटक राज्य और अन्य, (2009 ) 5 SCC 591 देखें)
केस: कमिश्नर, बृहत बंगलौर महानगर पालिके बनाम फराउल्ला खान [एसएलपी ( सिविल) संख्या 5743 / 2020]
पीठ : जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस संजीव खन्ना
वकील : सीनियर एडवोकेट यतींद्र सिंह, AOR शैलेश मडिय़ाल
उद्घरण: LL 2021 SC 41
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