मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम 2019 हुआ लागू, पढ़िए खास बातें

Update: 2019-09-01 10:00 GMT

मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम, 2019 (1 सितंबर 2019 से) लागू हो चुका है। यह संशोधन अधिनियम, मोटर वाहन अधिनियम, 1988 में संशोधन के बाद लाया गया है।

केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा जारी एक अधिसूचना में यह कहा गया है कि 1 सितंबर, 2019 को उस तारीख के रूप में तय किया गया है, जिस दिन संशोधन अधिनियम की धारा 1 लागू होगी।

मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक, 2019 को संसद द्वारा 5 अगस्त को पारित किया गया था और इसे 9 अगस्त को राष्ट्रपति द्वारा एक अधिनियम का रूप लेने हेतु हस्ताक्षर प्राप्त हुआ। यह संशोधन अधिनियम, सड़क सुरक्षा को बढ़ाने, लाइसेंस और परमिट जारी करने की प्रक्रिया में सुधार करने, आरटीओ कार्यालयों में भ्रष्टाचार को हटाने और सड़क यातायात को विनियमित करने के लिए प्रौद्योगिकी के उपयोग के उद्देश्य के साथ है। संशोधन अधिनियम की कुछ मुख्य विशेषताएं हैं:

ड्राइवर रिफ्रेशर ट्रेनिंग कोर्स:

इसने धारा 19 के तहत निलंबन/निरस्तीकरण के बाद लाइसेंस को पुनर्जीवित करने के लिए 'ड्राइविंग रिफ्रेशर ट्रेनिंग कोर्स' से गुजरने की शर्त रखी है।

जुवेनाइल द्वारा दुर्घटनाओं के मामले में अभिभावकों की देयता:

संशोधन अधिनियम की धारा 199A अभिभावक या वाहन के मालिक को, किशोर के कारण हुई दुर्घटना के लिए, जिम्मेदार बनाती है।

सजा के रूप में सामुदायिक सेवा:

संशोधन अधिनियम की धारा 200 यातायात उल्लंघन के लिए 'सामुदायिक सेवा' को सजा के रूप में निर्धारित करती है।

सड़क दुर्घटना पीड़ितों के लिए मुआवजा:

केंद्र सरकार को 'गोल्डन घंटे', यानी, एक गंभीर चोट लगने के बाद एक घंटे तक की समय अवधि के दौरान सड़क दुर्घटना के शिकार लोगों के कैशलेस उपचार के लिए एक योजना विकसित करने की जिम्मेदारी दी गई है, यह अवधि वो होती है जिसके दौरान शीघ्र चिकित्सा के माध्यम से मृत्यु को रोकने की संभावना सबसे अधिक होती है।

मोटर वाहन दुर्घटना निधि:

मोटर दुर्घटना के पीड़ितों को तत्काल राहत देने के लिए मोटर वाहन दुर्घटना निधि को संशोधन अधिनियम की धारा 164 बी के तहत पेश किया गया है, और इसके अंतर्गत हिट और रन के मामलों को भी शामिल किया गया है। निधि से भुगतान किया गया मुआवजा, उस मुआवजे से घटाया जाएगा जो पीड़ित को भविष्य में ट्रिब्यूनल से मिल सकता है।

अच्छे 'समारिटन्स' की सुरक्षा:

संशोधन अधिनियम "अच्छे समारिटन्स" को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है, जो सद्भाव में, स्वेच्छा से और किसी भी इनाम या मुआवजे की उम्मीद के बिना आपातकालीन चिकित्सा या गैर-चिकित्सा देखभाल या पीड़ित को एक दुर्घटना की दशा में सहायता प्रदान करता है या ऐसे पीड़ित को अस्पताल पहुंचाता है। संशोधन अधिनियम की धारा 134 ए, उन्हें सिविल या आपराधिक कार्यवाही से अनावश्यक परेशानी या उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करती है और केंद्र सरकार को उनके संरक्षण के लिए नियम बनाने का अधिकार देती है।

हिट एंड रन स्कीम:

धारा 161 के तहत स्कीम फंड से 'हिट एंड रन' मामलों के पीड़ितों को देय मुआवजा भी, रु. 25,000/ - से बढ़ाकर रु. 2 लाख, मृत्यु के मामले में एवं रु. 12,500/ - से बढाकर रु. 50,000, शारीरिक चोट के मामले में, कर दिया गया है।

दावा दाखिल करने के लिए 6 महीने की समय-सीमा: संशोधन अधिनियम के माध्यम से जोड़ी गयी धारा 166 (3) में यह कहा गया है कि दुर्घटना की तारीख के 6 महीने के भीतर दावा याचिका दायर करनी होगी। वर्ष 1988 में पारित मूल अधिनियम में भी इसी तरह का प्रावधान था। लेकिन वर्ष 1994 के संशोधन से, समय सीमा तय करने वाले प्रावधान को हटा दिया गया था। इसलिए, बिना किसी सीमा के, किसी भी समय दावा दायर किया जा सकता था। अब, उस प्रावधान को वापस लाया गया है

उपरोक्त के अलावा, सड़क सुरक्षा से संबंधित मामलों पर सलाह देने के लिए संशोधन अधिनियम की धारा 215D के तहत एक सड़क सुरक्षा बोर्ड बनाया जाएगा। इसके अलावा, सड़क यातायात उल्लंघन के लिए कड़े दंड का प्रावधान किया गया है। 



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