मोटर दुर्घटना दावा: सुप्रीम कोर्ट ने दुर्घटना के बाद काम करना जारी रखने वाले सरकारी कर्मचारी को दिया जाने वाला मुआवजा कम किया
सुप्रीम कोर्ट ने मोटर वाहन दुर्घटना के एक मामले में सरकारी कर्मचारी को हाईकोर्ट द्वारा दिए गए मुआवजे को कम कर दिया। कोर्ट ने यह माना कि दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति स्थायी रूप से विकलांग नहीं है, और उसने दुर्घटना के बाद भी काम करना जारी रखा है।
मामले में मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण ने 6,21,000 रुपये मुआवजा दिया था। राजस्थान हाईकोर्ट जिसे बढ़ाकरन 56,44,378 रुपये कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि प्रतिवादी 10,00,000 रुपये मुआवजा पाने का हकदार है।
जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की खंडपीठ ने यह ध्यान में रखते हुए कि प्रतिवादी ने दुर्घटना के बाद भी काम करना जारी रखा, कहा कि हाईकोर्ट द्वारा उसे देय वेतन के गुणक को इस्तेमाल कर 56,44,378 रुपये का मुआवजा देना गलत था।
बेंच ने कहा कि कर्मचारी का मासिक वेतन पूर्ववत रहा, जिसमें वेतन वृद्धि भी शामिल रही। पोस्टिंग की प्रकृति के कारण कुछ भत्तों में ही बदलाव आया। बेंच ने कहा, दुर्घटना के समय कर्मचारी 56 वर्ष के थे और सेवानिवृत्ति तक उनकी सेवा लगभग चार वर्ष की थी।
खंडपीठ के अनुसार, हाईकोर्ट यह नोटिस करने में विफल रहा कि उन्हें लगी चोट का प्रमाण पत्र में पूरे शरीर में स्थायी विकलांगता का जिक्र नहीं था, और निचले अंगों में 75% विकलांगता को प्रमाणित किया गया था। बेंच ने कहा कि पीड़ित मदद और सहायता के बिना दैनिक कार्य भी कर सकता है। मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण ने सभी प्रासंगिक तथ्यों पर ध्यान दिया और 6,21,000 का मुआवजा दिया था।
इस बात को ध्यान में रखते हुए कि प्रतिवादी का ऑपरेशन हुआ था और उसकी कशेरुकाओं में एक इम्प्लांट किया गया था, जिससे उसे शारीरिक दर्द और बेचैनी हुई। साथ ही जीवनकाल में संभावित कमी आई थी और यह कि हालांकि वह पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभों के हकदार हैं, उन्होंने सेवानिवृत्ति के बाद रोजगार पाने का अवसर खो दिया है, खंडपीठ ने 6,21,000 रुपये के मुआवजे में 3,79,000 रुपये की वृद्धि की।
वर्तमान मामले में, सरकारी कर्मचारी दुर्घटना के बाद भी सरकारी सेवा में बना रहा था, और सेवानिवृत्ति पर सेवानिवृत्त हो गया था।
खंडपीठ ने प्रतिवादी सरकारी कर्मचारी की ओर से निम्नलिखित प्रस्तुतियां दर्ज कीं-
-उसने अर्जित और मेडिकल लीव से मिले पैसे गंवा दिए।
-उसे कुछ भत्तों से वंचित कर दिया गया।
-उसका ऑपरेशन हुआ और रीढ़ में इम्प्लांट किया गया, जिसने उसे शारीरिक रूप से प्रभावित किया।
-ऑपरेशन और संबंधित चिकित्सा मुद्दों के कारण, वह सेवानिवृत्ति के बाद की कमाई से वंचित हो गए थे।
-विकलांगता प्रमाण पत्र के अनुसार, उन्हें निचले अंगों में 75% विकलांगता का सामना करना पड़ा है।
केस शीर्षक: द न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम सतीश चंद्र शर्मा और अन्य; (सीए 1579/2022)