Motor Accident Claims | सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट्स/ट्रिब्यूनल्स से मुआवज़ा सीधे दावेदारों के बैंक अकाउंट्स में ट्रांसफर करने को कहा

Update: 2025-03-19 04:19 GMT
Motor Accident Claims | सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट्स/ट्रिब्यूनल्स से मुआवज़ा सीधे दावेदारों के बैंक अकाउंट्स में ट्रांसफर करने को कहा

सुप्रीम कोर्ट ने मोटर दुर्घटना दावा मुआवज़ा सीधे दावेदारों के बैंक अकाउंट्स में ट्रांसफर करने की आवश्यकता पर बल दिया, जिससे देरी को कम किया जा सके और समय पर भुगतान सुनिश्चित किया जा सके।

न्यायालय ने कहा,

"जहां मुआवज़ा विवादित नहीं है, वहां बीमा कंपनियों द्वारा अपनाई जाने वाली सामान्य प्रथा उसे ट्रिब्यूनल्स के समक्ष जमा करना है। उस प्रक्रिया का पालन करने के बजाय ट्रिब्यूनल्स को सूचित करते हुए हमेशा दावेदारों के बैंक अकाउंट्स में राशि ट्रांसफर करने का निर्देश जारी किया जा सकता है।"

जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस राजेश बिंदल की खंडपीठ ने इस संबंध में दावेदार के बैंक अकाउंट में दावा राशि ट्रांसफर करने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया। इसने कहा कि दावेदारों को दावा प्रक्रिया के प्रारंभिक चरण में बैंक अकाउंट का विवरण प्रदान करना चाहिए, जिससे ट्रिब्यूनल अवार्ड पारित होने के बाद सीधे ट्रांसफर के लिए निर्देश जारी कर सकें। इसके अलावा, नाबालिगों या सावधि जमा की आवश्यकता वाले मामलों के लिए न्यायालय ने कहा कि बैंकों को अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिए और ट्रिब्यूनल को रिपोर्ट करना चाहिए।

अदालत ने कहा,

“उस उद्देश्य के लिए ट्रिब्यूनल दलीलों के आरंभिक चरण में या साक्ष्य प्रस्तुत करने के चरण में दावेदार(ओं) से अपेक्षित प्रमाण के साथ ट्रिब्यूनल को अपने बैंक अकाउंट्स का विवरण प्रस्तुत करने की मांग कर सकता है, जिससे अवार्ड पारित करने के चरण में ट्रिब्यूनल यह निर्देश दे सके कि मुआवजे की राशि दावेदार के अकाउंट्स में स्थानांतरित की जाए और यदि एक से अधिक हैं तो उनके संबंधित अकाउंट में। यदि कोई बैंक अकाउंट नहीं है तो उन्हें व्यक्तिगत रूप से या केवल परिवार के सदस्यों के साथ संयुक्त रूप से बैंक अकाउंट खोलने की आवश्यकता होनी चाहिए। यह भी अनिवार्य होना चाहिए कि यदि दावा याचिका के लंबित रहने के दौरान दावेदार(ओं) के बैंक अकाउंट के विवरण में कोई परिवर्तन होता है तो उन्हें ट्रिब्यूनल के समक्ष इसे अपडेट करना चाहिए। अंतिम अवार्ड पारित करने से पहले यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए। यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि बैंक अकाउंट दावेदार(ओं) के नाम पर होना चाहिए। यदि नाबालिग है तो अभिभावक(ओं) के माध्यम से और किसी भी मामले में यह किसी ऐसे व्यक्ति के साथ जॉइंट अकाउंट नहीं होना चाहिए, जो परिवार का सदस्य नहीं है। बैंक अकाउंट में राशि का हस्तांतरण, जिसका विवरण दावेदार(ओं) द्वारा प्रस्तुत किया गया, जैसा कि अवार्ड में उल्लेख किया गया, अवार्ड की संतुष्टि के रूप में माना जाएगा। अनुपालन की सूचना ट्रिब्यूनल को दी जानी चाहिए।”

अदालत ने सभी हाईकोर्ट्स और ट्रिब्यूनल से मुआवजे के समय पर और कुशल वितरण को सुनिश्चित करने के लिए इस अभ्यास को अपनाने का आग्रह किया।

इस संबंध में रजिस्ट्री को निर्देश दिया,

“इस आदेश की एक कॉपी (1) सभी हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरलों को भेजें, जिससे इसे संबंधित ट्रिब्यूनल/कोर्ट द्वारा आगे प्रसारित और अनुपालन के लिए हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के समक्ष रखा जा सके; और (2) राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी और राज्य न्यायिक अकादमियों के निदेशकों को भेजें।”

न्यायालय ने वर्ष 2006 में मोटर वाहन दुर्घटना के कारण दावेदार द्वारा झेली गई 100% विकलांगता के लिए मुआवजे की राशि बढ़ाने की मांग करने वाली अपील पर निर्णय लेते हुए ये प्रासंगिक टिप्पणियां कीं। उस समय दावेदार की आयु 21 वर्ष थी।

मुआवजा बढ़ाते हुए न्यायालय ने कहा कि उसे भुगतान के तरीके के बारे में कुछ टिप्पणियां करने की आवश्यकता है। बीमा कंपनियों द्वारा अपनाई जाने वाली सामान्य प्रथा ट्रिब्यूनल के समक्ष राशि जमा करना है। उसके बाद दावेदारों को राशि वापस लेने के लिए आवेदन दायर करना होता है। यह प्रक्रिया समय लेने वाली है। साथ ही ऐसी जमा राशि पर कोई ब्याज भी नहीं मिलता है। इसके अलावा, इस प्रक्रिया में चूक और त्रुटियों का जोखिम है, क्योंकि इसमें शामिल राशि बहुत बड़ी है और दावों की संख्या भी बहुत अधिक है।

केस टाइटल: परमिंदर सिंह बनाम हनी गोयल और अन्य

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