गुटका पान मसाला सिर्फ़ रखना ही आईपीसी की धारा 188 के तहत 'ख़तरनाक' नहीं : बॉम्बे हाईकोर्ट

Update: 2019-09-19 02:50 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि सिर्फ़ गुटका/पान मसाला रखना आईपीसी की धारा 188 के तहत 'ख़तरनाक' नहीं है।

न्यायमूर्ति रंजीत मोरे और भारती डांगरे की पीठ ने आनंद और विजय चौरसिया की आपराधिक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही। इन लोगों पर आईपीसी की धारा 179, 188, 273 और 328 और खाद्य सुरक्षा और संरक्षा अधिनियम, 2006 की धारा 27(3)(d) और 27(3)(e) के तहत मुक़दमा चल रहा है।

इन लोगों के ख़िलाफ़ एफआईआर सुरेश तोराब के कहने पर दर्ज किया गया जिसने आरोप लगाया था कि जब इन लोगों के गोदाम पर छापे डाले गए तो वहाँ गुटका और पान मसाला पाया गया। याचिकाकर्ताओं को क़ानून को तोड़ने के आरोप में 2 मार्च को गिरफ़्तार किया गया और अगले ही दिन इन्हें ज़मानत पर छोड़ दिया गया।

दलील

याचिकाकर्ता के वक़ील अबाड पोंडा ने जोसफ़ कुरीयन फ़िलिप जोस बनाम केरल राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर भरोसा जताया और कहा कि अगर यह मान भी लिया जाए कि याचिकाकर्ता ने प्रतिबंधित वस्तुओं का भंडारण किया था पर इसका मतलब यह नहीं कि इससे लोगों को इसके प्रत्यक्ष उपभोग के लिए ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता और उस पर धारा 328 के तहत मुक़दमा नहीं चलाया जा सकता।

लोक अभियोजक दीपक ठाकरे ने धारा 328 के साथ-साथ आईपीसी की अन्य धाराओं के तहत मुक़दमा चलाने के निर्णय का बचाव किया।

फ़ैसला

अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद कहा,

"याचिकाकर्ता के ख़िलाफ़ जो एफआईआर दर्ज किया गया है उसमें भंडारण का आरोप लगाया गया है। निश्चित रूप से यह उस आदेश का उल्लंघन है जिसमें तम्बाकू, पान मसाला और गुटका के भंडारण पर प्रतिबंध लगाया गया है। पर एफआईआर में इसके उत्पादन, वितरण या बिक्री का उल्लेख नहीं है। जारी आदेश का उल्लंघन आईपीसी की धारा 188 के तहत दंडनीय है अगर इससे मानव जीवन को ख़तरा होता है या ख़तरे की आशंका होती है। हालाँकि, सिर्फ़ इसको अपने पास रखना या इसका भंडारण 'ख़तरनाक' की श्रेणी में नहीं आता जैसा कि उक्त धारा में कहा गया है"।

इस आधार पर अदालत ने याचिकाकर्ता के ख़िलाफ़ एफआईआर को निरस्त कर दिया और कहा कि धारा 328 और 188 इस पर लागू नहीं होगा।


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