केवल चरमपंथी साहित्य रखना यूएपीए के तहत 'आतंकवादी गतिविधि' नहीं, वर्नोन और अरुण के खिलाफ कोई 'विश्वसनीय सबूत' नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने भीमा-कोरेगांव हिंसा में आरोपित सामाजिक कार्यकर्ता वर्नोन गोंसाल्वेस और अरुण फरेरा को शुक्रवार को जमानत दे दी।
जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने फैसले में कहा,
"केवल साहित्य रखना, भले ही वह खुद हिंसा को प्रेरित या प्रचारित करता हो, न तो गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 2002 की धारा 15 के आशय में 'आतंकवादी कृत्य' की श्रेणी में आएगा, न ही अध्याय IV और VI के तहत कोई अन्य अपराध होगा।"
न्यायालय ने यह भी माना कि यूएपीए के तहत परिभाषित किसी भी आतंकवादी कृत्य को अंजाम देने के संबंध में उनके खिलाफ "कोई विश्वसनीय सबूत नहीं" था।
कोर्ट ने कहा,
"अपीलकर्ताओं के खिलाफ किसी भी आतंकवादी कृत्य को अंजाम देने या 1967 अधिनियम की धारा 43 डी (5) के प्रावधानों को लागू करने के लिए ऐसा करने की साजिश में शामिल होने का कोई विश्वसनीय सबूत नहीं है.... न ही 1967 अधिनियम के अध्याय IV और VI के तहत गिनाए गए अपराध की साजिश का कोई विश्वसनीय मामला है।"
न्यायालय ने कहा कि एनआईए द्वारा एकत्र की गई सामग्री "सुनवाई साक्ष्य" की प्रकृति की है और तीसरे पक्ष से जब्त की गई सामग्री है।
गोंसाल्वेस और फरेरा को 2018 में पुणे के भीमा कोरेगांव में हुई जाति-आधारित हिंसा और प्रतिबंधित वामपंथी संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के साथ कथित संबंध रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
दोनों भारतीय दंड संहिता, 1860 की विभिन्न धाराओं के साथ-साथ गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत कथित अपराधों के लिए अगस्त 2018 से जेल में हैं। उनकी जमानत याचिका पहले बॉम्बे हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी।
गोंसाल्वेस और फरेरा के खिलाफ यूएपीए के निम्नलिखित प्रावधानों को लागू किया गया था-
-धारा 13 (गैरकानूनी गतिविधियों के लिए सजा)
-धारा 16 (आतंकवादी कृत्य के लिए सजा),
-धारा 17 (आतंकवादी कृत्यों के लिए धन जुटाने के लिए सजा),
-धारा 18 (षड्यंत्र आदि के लिए सजा),
-धारा 18बी (आतंकवादी कृत्य के लिए किसी व्यक्ति या व्यक्तियों को भर्ती करने के लिए सजा),
-धारा 20 (किसी आतंकवादी गिरोह या संगठन का सदस्य होने के लिए सजा),
-धारा 38 (आतंकवादी संगठन की सदस्यता से संबंधित अपराध),
-धारा 39 (आतंकवादी संगठन को दिए गए समर्थन से संबंधित अपराध),
-धारा 40 (आतंकवादी संगठन के लिए धन जुटाने का अपराध)
'Mere possession of literature, even if the content thereof inspires or propagates violence, by itself cannot constitute any of the offences within Chapters IV & VI of the UAPA'#SupremeCourt in judgment granting bail to Vernon Gonsalves & Arun Ferreira in Bhima Koregaon case. pic.twitter.com/RlLVK0c2mG
— Live Law (@LiveLawIndia) July 28, 2023
आतंकवादी कृत्य का कोई सबूत नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी द्वारा रिकॉर्ड पर रखी गई सामग्री की जांच से पहले कहा, हालांकि सामान्य परिस्थितियों में जमानत की सुनवाई में साक्ष्य का विश्लेषण आवश्यक नहीं है, मगर 1967 अधिनियम की धारा 43 डी के प्रतिबंधात्मक प्रावधानों के मद्देनजर, साक्ष्य विश्लेषण के कुछ तत्व अपरिहार्य हो जाते हैं।
अन्य बातों के अलावा, अभियोजन ने किताबों, पैम्फलेटों पर भरोसा किया, जिनमें से कुछ कथित तौर पर गोंसाल्वेस और फरेरा के आवास से बरामद किए गए थे। पीठ के अनुसार, इन किताबों और बुकलेट में मुख्य रूप से चरम वामपंथी विचारधारा और भारत में इसके अनुप्रयोग पर लेख शामिल थे।
गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम की धारा 15 के अर्थ के भीतर 'आतंकवादी कृत्य' करने के कथित अपराध के संबंध में, अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि धारा 15(1) के उप-खंड (ए) में निर्दिष्ट कृत्यों के लिए अपीलकर्ताओं को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
कोर्ट ने कहा, धारा 15(1) के उप-खंड (बी) के तहत अपराध प्रथम दृष्टया साक्ष्य के आधार पर नहीं बनता है; और अपीलकर्ताओं के खिलाफ ऐसा कोई आरोप नहीं है जो धारा 15(1) के उप-खंड (सी) को आकर्षित करता हो।
केवल सेमिनार में भाग लेना यूएपीए के तहत अपराध नहीं
अदालत ने यह भी माना कि केवल सेमिनारों में भाग लेना ही 1967 अधिनियम की जमानत-प्रतिबंधित धाराओं के तहत अपराध नहीं माना जा सकता है, जिसके लिए गोंसाल्वेस और फरेरा पर आरोप लगाए गए हैं।
एक संरक्षित गवाह के बयान के अनुसार, फरेरा ने वर्ष 2012 में हैदराबाद में रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट द्वारा आयोजित एक सेमिनार में भाग लिया था, जबकि गोंसाल्वेस ने सितंबर 2017 में 'विरासम' नामक संगठन द्वारा आयोजित सेमिनार में भाग लिया था।
केस डिटेलः
वर्नोन बनाम महाराष्ट्र राज्य | आपराधिक अपील संख्या 639/2023
अरुण बनाम महाराष्ट्र राज्य | आपराधिक अपील संख्या 640/2023
साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (एससी) 575