सिर्फ नजरिये में अंतर आने से ही आयकर अधिनियम की धारा 147 के तहत दुबारा आकलन नहीं किया जा सकता : मद्रास हाईकोर्ट

Update: 2019-11-21 10:45 GMT

मद्रास हाईकोर्ट ने दुबारा असेसमेंट के खिलाफ एक अपील को स्वीकार करते हुए कहा कि सिर्फ नजरिये में अंतर दुबारा असेसमेंट का कोई आधार नहीं बनता.

सिटी यूनियन बैंक लिमिटेड बनाम असिस्टेंट कमिश्नर ऑफ़ इनकम टैक्स एवं अन्य मामले में मदुरै पीठ के न्यायमूर्ति जीआर स्वामीनाथन ने यह आदेश दिया.

असेसमेंट दुबारा करने का कारण यह बताया गया कि आयकर अधिनियम की धारा 14A के तहत अनुमति नहीं देने के दावे की गणना आयकर नियम 1961 के तहत नहीं की गई थी.

इस सन्दर्भ में अदालत ने आयकर अधिकारी वार्ड नंबर 16 बनाम टेकस्पान इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (2018) 6 SCC 685 मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया गया. इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी अधिकार को सिर्फ इस आधार पर द्बारा असेसमेंट का अधिकार नहीं है कि विचार में परिवर्तन हुआ है.

"धारा 147 में 'विश्वास करने के कारण' जैसे शब्दों के प्रयोग की व्याख्या स्कीम के अनुसार होना चाहिए क्योंकि इन शब्दों की अगर खुली व्याख्या की गई तो इससे असेसिंग अधिकारी को मनमाना अधिकार मिल जाएगा जो सिर्फ विचारों में बदलाव आने से ही उन्हीं तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर दुबारा आकलन की प्रक्रिया शुरू कर देगा जिन पर पहले ही गौर किया जा चुका है," इस आदेश में कहा गया.

वर्तमान मामले के तथ्यों का उल्लेख करते हुए न्यायमूर्ति स्वामीनाथन ने कहा -

" इस मामले में, असेसी ने कोई गलती नहीं की है. पर ऐसा लगता है कि असेसिंग अधिकारी ने आयकर की धारा 14A के तहत खर्च की राशि के निर्धारण में गलती की है. इस स्थिति में, राजस्व के लिए उपचार कहीं और है न कि अधिनियम की धारा 147 के तहत अधिकार हासिल करके".

असेसिंग अधिकारी की विफलता का उल्लेख करते हुए अदालत ने कहा,

" इस तरह के मामले में राजस्व का उपचार कहीं और है और न कि अधिनियम की धारा 147 के तहत अधिकार हासिल करके...अथॉरिटी अपनी ही गलती का लाभ नहीं उठा सकता. अगर वे अपने कानूनी कर्तव्य को पूरा करने में विफल रहे तो इसका खामियाजा असेसी नहीं भुगत सकता".

"असेसी कोई भी दावा कर सकता है, यहाँ तक कि डिसअलाउंस को लेकर गलत दावा भी कर सकता है...अगर आकलनकर्ता अधिकारी खर्च की राशि का निर्धारण करने में विफल रहा तो वह दुबारा आकलन करने का कारण नहीं बता सकता. इसलिए धारा 147 के तहत दुबारा आकलन के आदेश को निरस्त किया जाता है".

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