आपराधिक मामले में रिहा हो जाने भर से कर्मचारी को सेवा में बहाली का हक नहीं : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2023-03-01 11:32 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा कि केवल र‌िहाई (acquittal) किसी कर्मचारी को सेवा में बहाली का अधिकार नहीं देती है।

जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति को रिहा या बरी किया जाता है तो स्पष्ट रूप से यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता है कि उसे गलत तरीके से शामिल किया गया था या उसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था।

मामले में याचिकाकर्ता को जम्मू-कश्मीर एग्जक्यूटिव पुलिस में सिपाही के पद पर नियुक्त किया गया था। हालांकि बाद में नियुक्ति आदेश को इस आधार पर रद्द कर दिया गया कि याचिकाकर्ता एक आपराधिक मामले में शामिल था और चार दिनों तक गिरफ्तार रहा था। उसने जानबूझकर उक्त जानकारी को छुपाया था।

नियुक्ति रद्द करने के खिलाफ दायर रिट याचिका को खारिज करते हुए, जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिस विभाग के पदानुक्रम में सर्वोच्च अधिकारी पुलिस महानिदेशक की ओर से अपीलकर्ता को पुलिस बल में शामिल करने की उपयुक्तता पर दिए गए निर्णय पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ जारी आपराधिक मुकदमे में, अभियोजन पक्ष जांच अधिकारी की जांच करने में विफल रहा था। उसके खिलाफ लगाए गए आरोपों को साबित भी नहीं किया जा सका था, इसलिए उक्त मामले में उसे बरी करना आवश्यक था। इसे सम्मानजनक रिहाई के रूप में माना जाना चाहिए।

बेंच ने इस संबंध में मिसालों का जिक्र करते हुए एसएलपी को खारिज कर दी और कहा,

"हाईकोर्ट ने आक्षेपित निर्णय में शामिल मुद्दों के प्रत्येक पहलू पर विस्तार से विचार किया है। एकल पीठ के आदेश को बरकरार रखा है कि पुलिस महानिदेशक पुलिस पदानुक्रम में सर्वोच्च अधिकारी होने के कारण पुलिस बल में शामिल होने के लिए याचिकाकर्ता की उपयुक्तता पर विचार करने के लिए सबसे अच्छा जज है।"


केस टाइटलः इम्तियाज अहमद मल्ला बनाम जम्मू और कश्मीर राज्य | 2023 लाइवलॉ (SC) 150 | एसएलपी(सी) 678/2021 | 28 फरवरी 2023 | जस्टिस अजय रस्तोगी और ज‌स्टिस बेला एम त्रिवेदी

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