मेडिकल लापरवाही के मामलों में मंशा के तौर पर आपराधिक मनोस्थिति की आवश्यकता नहीं: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2021-08-09 04:05 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मेडिकल लापरवाही के मामलों में मंशा के तौर पर आपराधिक मनोस्थिति (मेन्स रिया) की आवश्यकता नहीं होती है।

न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने कहा कि एक आपराधिक चिकित्सा लापरवाही की शिकायत में आरोपी को तलब करने से पहले, शिकायतकर्ता को शिकायत में रखे गये अपने बिंदुओं के समर्थन में चिकित्सकीय साक्ष्य पेश करना होगा या एक पेशेवर डॉक्टर से पूछताछ करनी होगी।

इस मामले में शिकायतकर्ता ने भारतीय दंड संहिता की धारा 304, 316/34 के तहत चिकित्सकीय लापरवाही की शिकायत दर्ज कराई थी। मजिस्ट्रेट ने आरोपी को समन जारी किया था। समन आदेश को चुनौती देते हुए, आरोपी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसने इस आधार पर इसे रद्द कर दिया कि दुर्भावनापूर्ण या बुरे इरादे दिखाने के लिए आपराधिक मनोस्थिति का कोई सबूत नहीं था।

अपील में, न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट का यह दृष्टिकोण गलत है।

कोर्ट ने कहा,

"क्योंकि, जब यह चिकित्सा लापरवाही का मामला है, तो इसमें मंशा के रूप में आपराधिक मनोस्थिति की वजह की आवश्यकता नहीं होती। उपरोक्त अर्थों में भी आपराधिक मनोस्थिति के बिना भी यह चिकित्सा लापरवाही का अपराध होगा।"

पीठ ने महसूस किया कि ट्रायल कोर्ट ने शिकायतकर्ता द्वारा अपने मामले के समर्थन में चिकित्सा साक्ष्य पेश करने या पेशेवर डॉक्टर से जांच कराने के लिए जोर दिए बिना सुनवाई की, जो 'जैकब मैथ्यू बनाम पंजाब सरकार (2005) 6 एससीसी 1' मामले में इस न्यायालय की व्याख्या के संदर्भ में आवश्यक है।

इसलिए, पीठ ने (उच्च न्यायालय और निचली अदालत के) दोनों आदेशों को रद्द कर दिया और मामले पर नए सिरे से विचार करने के लिए पक्षकारों को ट्रायल कोर्ट के समक्ष भेज दिया।

"हम यह स्पष्ट करते हैं कि ट्रायल कोर्ट को शिकायतकर्ता को पहले पेशेवर डॉक्टर को शिकायत में उठाये गये बिंदुओं के समर्थन में गवाह के रूप में जांच करने के लिए बुलाना पड़ सकता है और फिर मामले को गुण-दोषों और कानून के अनुसार नए सिरे से विचार करने के लिए आगे बढ़ना पड़ सकता है।"

कानून को जानें

'जैकब मैथ्यू (सुप्रा)' मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने उन अपराधों के लिए डॉक्टरों के खिलाफ मुकदमा चलाने के संबंध में निम्नलिखित दिशानिर्देश निर्धारित किए थे, जिनमें आपराधिक दुस्साहस या आपराधिक लापरवाही एक घटक है।

एक निजी शिकायत पर तब तक विचार नहीं किया जा सकता जब तक कि शिकायतकर्ता ने आरोपी डॉक्टर की ओर से लापरवाही या लापरवाही के आरोप का समर्थन करने के लिए किसी अन्य सक्षम चिकित्सक द्वारा दी गई विश्वसनीय राय के रूप में न्यायालय के समक्ष प्रथम दृष्टया साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है।

जांच अधिकारी को, अविवके या लापरवाहीपूर्ण कार्य अथवा चूक करने वाले आरोपी डॉक्टर के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले, एक स्वतंत्र और सक्षम चिकित्सा राय प्राप्त करनी चाहिए, अधिमानतः सरकारी सेवा में एक डॉक्टर से, जो चिकित्सा पद्धति की उस शाखा में योग्य हो, जिससे जांच में एकत्र किए गए तथ्यों के लिए बोलम के परीक्षण को लागू करते हुए आम तौर पर तटस्थ और निष्पक्ष राय देने की उम्मीद की जा सकती है।

अविवेक या लापरवाही के आरोपी डॉक्टर को नियमित तरीके से गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है (सिर्फ इसलिए कि उसके खिलाफ आरोप लगाया गया है)। जब तक जांच को आगे बढ़ाने के लिए या सबूत इकट्ठा करने के लिए उसकी गिरफ्तारी आवश्यक नहीं है या जब तक जांच अधिकारी इस बात से संतुष्ट नहीं हो जाता कि जब तक डॉक्टर को गिरफ्तार नहीं किया जाता तब तक वह अभियोग का सामना करने के लिए खुद को उपलब्ध नहीं करायेगा, तब तक गिरफ्तारी रोकी जा सकती है।

आपराधिक मनोस्थिति के संबंध में, कोर्ट ने 'जैकब मैथ्यू (सुप्रा)' मामले में इस प्रकार टिप्पणी की :

लापरवाही की न्यायिक अवधारणा सिविल और आपराधिक कानून में अलग-अलग है। सिविल कानून में जो चीज लापरवाही की श्रेणी में हो सकती है, जरूरी नहीं कि आपराधिक कानून में भी वह लापरवाही हो। लापरवाही के अपराध बनने के लिए आपराधिक मनोस्थिति का तत्व उसमें मौजूद होना चाहिए। किसी कार्य को आपराधिक लापरवाही की श्रेणी में लाने के लिए, लापरवाही का स्तर बहुत अधिक होना चाहिए, यानी स्थूल या बहुत उच्च। लापरवाही जो न तो स्थूल है और न ही उच्च स्तर की, दीवानी कानून में कार्रवाई के लिए आधार प्रदान कर सकती है, लेकिन अभियोजन का आधार नहीं बन सकती है।

केस: प्रभात कुमार सिंह बनाम बिहार सरकार; एसएलपी (क्रिमिनल) 2395-2396 / 2021

कोरम: न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना

वकील: वरिष्ठ अधिवक्ता अंजना प्रकाश, वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा, अधिवक्ता साकेत सिंह

साइटेशन: एलएल 2021 एससी 358

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