"मीडिया को हेट स्पीच, फेक न्यूज, निजता के उल्लंघन आदि पर जवाबदेह बनाया जाए", सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में मीडिया ट्रिब्यूनल की स्थापना की मांग

Update: 2020-12-26 10:33 GMT

फिल्म निर्माता नीलेश नवलखा ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर दर्शकों/नागरिकों द्वारा मीडिया व्यवसाय के खिलाफ दर्ज शिकायतों की सुनवाई और शीघ्र निस्तारण के लिए एक स्वतंत्र, नियामक 'मीडिया ट्रिब्यूनल' की स्थापना की मांग की है।

याचिकाकर्ता ने कहा है कि मीडिया व्यवसाय की भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार और अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत नागरिकों के सूचना के अधिकार, अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा और प्रतिष्ठ के अधिकार, साथ ही राष्ट्र में शांति और सद्भाव के हितों के संरक्षण के लिए, मीडिया व्यवसायों और नागरिकों अध‌िकारों के बीच संतुलन के लिए ऐसे ‌नियामक की आवश्यकता है।

एडवोकेट राजेश ईनामदार, शाश्‍वत आनंद और अमित पई के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है, "पिछले कुछ वर्षों में, मीडिया ट्रायल, हेट स्पीच, प्रोपगंडा न्यूज, पेड न्यूज रोजमर्रा की बात हो गए हैं, जिससे पीड़ितों के निष्पक्ष ट्रायल का अधिकार और निष्पक्ष और आनुपातिक रिपोर्टिंग का अधिकार बाधित हो रहा है।"

याचिकाकर्ता ने कहा है कि वर्तमान याचिका मीडिया-व्यवसाय के मौलिक अधिकारों पर अंकुश लगाने की मांग नहीं करती है, बल्कि गलत सूचना, भड़काऊ कवरेज, फर्जी समाचार, निजता के उल्लंघन आदि के मुद्दों, जिनमें मीडिया-व्यवसाय अपने धंधे को बढ़ाने के एकमात्र उद्देश्य से ‌लिप्त हैं, याचिका इस पर कुछ जवाबदेही तय करने की मांग करती है। याचिका में कहा गया है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा बिना किसी जवाबदेही के ताकत का प्रयोग कानून की नियत प्रक्रिया के लिए गंभीर रूप से हानिकारक है।

याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि मीडिया व्यवसायों की मौजूदा बड़े पैमाने पर रिपोर्टिंग नागरिकों के मौलिक अधिकारों की अवहेलना करती। मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार, आजीविका का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, जानने का अधिकार, निष्पक्ष सूचना का अधिकार और आनुपातिक मीडिया का अधिकार सहित अनुच्छेद (21) के तहत गारंटीकृत अधिकारों का उल्लंघन करती है। साथ ही अनुच्छेद 19 के तहत गारंटीकृत नागरिक अधिकारों के विरोध में खड़ी होती है।

याच‌िका में, इसलिए, अदालत को अनुच्छेद 32 और 142 के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग कर मीडिया के नियमन के लिए उचित दिशानिर्देश देने का आग्रह किया गया है।

इस उद्देश्य के लिए, याचिका में एक स्वतंत्र उच्चाधिकार समिति की स्थापना की मांग की गई है, जिसकी अध्यक्षता उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश या न्यायाधीश कर सकते हैं। साथ ही विभिन्न क्षेत्रों / व्यवसायों से संबंध‌ित प्रतिष्ठित नागरिकों

और केंद्र सरकार के संबंधित हितधारकों को शामिल किया जा सकता है। समिति मीडिया-व्यवसाय विनियमन से संबंधित संपूर्ण कानूनी ढांचे की छानबीन और समीक्षा करे। साथ ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित उचित दिशानिर्देशों की सिफारिश करे।

याचिकाकर्ता ने जोर देकर कहा कि मीडिया द्वारा स्व-नियमन मौजूदा समस्या का जवाब नहीं हो सकता है और भारतीय संवैधानिक ढांचे में केवल न्यायपालिका को स्व-विनियमन का विशेषाधिकार प्राप्त है।

याचिका में कहा गया है, "स्व-नियमन के विशेषाधिकार के मामले में न्यायपालिका के समक्ष मीडिया-व्यवसाय को खड़ा करना, न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सीधा प्रहार है और भारतीय संवैधानिक योजना और लोकतंत्र की नींव पर हमला है और भारत में प्रचलित कानून और न्याय की प्रत्येक धारणा और सिद्धांत के खिलाफ है।"

य‌ाचिका में कहा गया है कि यदि उपरोक्त राहत दी जाती है, तो इससे प्रेस की स्वतंत्रता प्रभावित नहीं होगी। क्योंकि प्रेस की स्वतंत्रता का आधार संविधान की धारा 19 (1) (a) है, जो अनुच्छेद 19(2) के प्रतिबंधों के अधीन है।

याचिका में कानून के निम्नलिखित प्रश्न उठाए गए हैं-

-क्या समाचार प्रसारकों / इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को अन‌ियंत्रित स्वतंत्रता प्राप्त है, जो कि देश के नागरिकों को प्रदत्त स्वतंत्रता की तुलना में बहुत ज्यादा है। और क्या ऐसी स्वतंत्रता स्व-नियमन के अधीन हो सकती है?

-क्या गलत सूचना / फर्जी समाचार, हेट स्पीच, प्रोपगंडा, पेड न्यूज, सांप्रदायिक, अशोभनीय, आक्रामक, अपमानजनक, सनसनीखेज, निंदनीय, अपमानजनक और उकसाने वाली रिपोर्टिंग को प्रेस की स्वतंत्रता के अधिकार के तहत शामिल किया गया है....?

-क्या न्यूज ब्रॉडकास्टर / इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का विनियमन, जो अनुच्छेद 19 (2) में निर्दिष्ट मापदंडों के अनुसार होगा, प्रेस या मीडिया की स्वतंत्रता में काट-छांट करने के बराबर होगा?

-क्या संविधान का अनुच्छेद 21 नागरिकों को स्वतंत्र, निष्पक्ष और आनुपातिक मीडिया रिपोर्टिंग के अधिकार की परिकल्पना करता है?

-क्या मीडिया घरानों के संबंध में दिशा-निर्देश देने और न्यायिक नियामक तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता है?

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