एमबीए की डिग्री मानव संसाधन प्रबंधन या औद्योगिक संबंध एवं श्रम कानून में पोस्ट ग्रेजुएशन डिग्री/डिप्लोमा के समान नहीं: सुप्रीम कोर्ट

“ट्रिब्यूनल ने अपने इस फैसले में स्पष्ट रूप से त्रुटि की है कि उम्मीदवार सिर्फ इसलिए योग्य था, क्योंकि उसने अपने एमबीए डिग्री प्रोग्राम के तहत दो विषयों की पढ़ाई की थी।”

Update: 2020-08-08 09:23 GMT

Supreme Court of India

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मास्टर ऑफ बिज़नेस एडमिनिस्ट्रेशन (एमबीए) डिग्री सामाजिक कार्य, श्रम कल्याण, औद्योगिक संबंध या कार्मिक प्रबंधन में पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री या डिप्लोमा के समतुल्य नहीं है।

दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) की ओर से जारी विज्ञापन में श्रम कल्याण अधीक्षक के पद के लिए आवश्यक योग्यताओं में से एक थी- किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय/ संस्थान से सामाजिक कार्य अथवा श्रम कल्याण या औद्योगिक संबंध अथवा कार्मिक प्रबंधन या किसी संबंधित विषय में पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री / डिप्लोमा या इसके समतुल्य डिग्री।

एमबीए ग्रेजुएट कवीन्द्र को पार्ट-2 की परीक्षा के लिए अनंतिम तौर पर चयनित किया गया था, लेकिन बाद में उसे चयन के लिए पात्र घोषित नहीं किया गया। उसके चयन को नकारे जाने के बाद उसने केंद्रीय प्रशासकीय न्यायाधिकरण (कैट) में याचिका दायर की थी और दलील दी थी कि वह पात्रता जरूरतों को पूरा करता है। ट्रिब्यूनल ने अपने आदेश में कहा था कि याचिकाकर्ता ने एमबीए डिग्री प्रोग्राम पाठ्यक्रम में मानव संसाधन प्रबंधन और औद्योगिक संबंध की पढ़ाई की थी, इसलिए वह इस पद के लिए योग्य है। कैट ने संबंधित पद पर उसकी नियुक्ति के लिए नगर निगम को आदेश जारी किया था।

हाईकोर्ट ने ट्रिब्यूनल के आदेश को चुनौती देने वाली नगर निगम की अपील खारिज कर दी थी। उसके बाद निगम ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसने निगम की अपील स्वीकार करते हुए कहा कि ट्रिब्यूनल ने अपने इस फैसले में स्पष्ट रूप से यह त्रुटि की है कि उम्मीदवार सिर्फ इसलिए योग्य था, क्योंकि उसने अपने एमबीए डिग्री प्रोग्राम के तहत दो विषयों- मानव संसाधन प्रबंधन और औद्योगिक संबंध एवं श्रम कानून- की पढ़ाई की थी।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की खंडपीठ ने कहा :

" प्रथम प्रतिवादी ने महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक से एमबीए की डिग्री हासिल की थी। प्रथम प्रतिवादी ने जिस अंक पत्र पर भरोसा किया था उसके अनुसार, एमबीए की पढ़ाई के दौरान उसने दूसरे सत्र में मानव संसाधन प्रबंधन एक विषय के तौर पर पढ़ा था। चौथे सत्र में उसने औद्योगिक संबंध एवं श्रम कानून विषय की पढ़ाई की थी। इन दोनों विषयों के पढ़ने मात्र से इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता कि प्रथम प्रतिवादी के पास विज्ञापन में स्पष्ट रूप से उल्लेखित विषयों या उसके समकक्ष विषयों में पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री या डिप्लोमा मौजूद है। एमबीए डिग्री को सामाजिक कार्य, श्रम कल्याण, औद्योगिक संबंध या कार्मिक प्रबंधन में पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री या डिप्लोमा के समकक्ष नहीं माना जा सकता।" 

अपीलकर्ता की सेवा के लिए यह भर्ती की जा रही थी। विज्ञापन में इस बात का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया था कि विज्ञापन में वर्णित विषयों में पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री या डिप्लोमा तथा सम्बद्ध विषयों में पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री/ डिप्लोमा के बीच किस हद तक समानता स्थापित की जाएगी। एक नियोक्ता के तौर पर अपीलकर्ता ही इस बात का सही निर्धारण कर सकता था कि क्या प्रतिवादी संख्या- एक की डिग्री समकक्ष विषयों के तहत आती है या नहीं? जब तक यह मूल्यांकन निर्धारित जरूरतों के विपरीत नहीं था, तब तक न्यायाधिकरण के पास इसमें हस्तक्षेप का कोई कारण नहीं था।

केस का ब्योरा

केस नं. : सिविल अपील नं. 232/2020

केस नाम : उत्तरी दिल्ली नगर निगम बनाम कवीन्द्र एवं अन्य

कोरम : न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति के. एम. जोसेफ

वकील : एडवोकेट अजय बंसल और कन्हैया सिंघल 

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