कमज़ोर वादियों की सुनवाई न होने पर सीजेआई सूर्यकांत ने जताया दुख, कहा- ज़्यादा ज़रूरी माने जाने वाले मामलों पर हो रहा पूरा वक्त ख़र्च
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) सूर्यकांत ने कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के समय का "बराबर बंटवारा" सुनिश्चित करना चाहते हैं, इस बात पर ज़ोर देते हुए कि "बहुत ज़रूरी माने जाने वाले" मामलों में पूरा दिन नहीं लगना चाहिए और लिस्ट में मौजूद दूसरे मामलों के लिए बहुत कम या बिल्कुल भी समय नहीं बचना चाहिए।
इलेक्टोरल रोल्स के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) से जुड़े मामलों की सुनवाई से पहले, जिनकी सुनवाई कोर्ट पिछले कई दिनों से कर रहा था, सीजेआई ने कहा कि जब बड़े मामलों में पूरा दिन लग जाता है तो मोटर दुर्घटना मुआवज़े या ज़मानत या रोक के लिए गुहार लगाने वाले छोटे वादियों को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।
सीजेआई ने कहा,
"हो यह रहा है कि कुछ मामलों को बहुत ज़रूरी माना जाता है, पूरा कोर्ट का समय उन्हीं में लग जाता है; एक गरीब आदमी जो MACT क्लेम, ज़मानत, या किसी छोटे रोक के मुद्दे के लिए लड़ रहा है, वह आखिरी पंक्ति में बैठा रहता है और आखिर में 4 बजे, निराश होकर कोर्ट से चला जाता है, यह जाने बिना कि अगली बार मामला कब लिस्ट होगा।"
सीजेआई सूर्यकांत ने यह बयान तब दिया, जब SIR सुनवाई के कारण जिन दूसरे मामलों पर सुनवाई नहीं हुई थी, उनके वकील तारीखें मांग रहे थे।
चीफ जस्टिस ने यह भी कहा कि यह ज़रूरी है कि बड़े मामलों में वकील एक लिखित वादा करें कि वे तय समय में ही अपनी बात खत्म करेंगे।
उन्होंने कहा,
"मैं इस कोर्ट में सभी मामलों के लिए समय का बराबर बंटवारा चाहता हूं। यह तभी होगा, जब आप मुझे ही नहीं, बल्कि हर बेंच को लिखित में यह वादा करेंगे कि आप बहस के लिए इतना समय लेंगे। ताकि बेंच अपनी योग्यता के आधार पर फैसला कर सके और फिर उसी हिसाब से मामले को आवंटित कर सके।"
इस मौके पर सीनियर एडवोकेट वी. गिरि ने जस्टिस बी. वी. नागरत्ना के एक हालिया सुझाव का ज़िक्र किया, जो उन्होंने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में दिया था, जिसमें उन्होंने प्रस्ताव दिया था कि संवैधानिक मामलों के लिए वकीलों को पहले से ही विस्तृत लिखित दलीलें दाखिल करनी चाहिए और यह वादा करना चाहिए कि मौखिक दलीलों के लिए केवल एक निश्चित समय, जैसे तीस मिनट या एक घंटा ही लगेगा।
सीजेआई ने आगे कहा कि कोर्ट यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने पर विचार कर रहा है कि उन मामलों में स्थगन न मांगा जाए, जो अंतिम निपटारे के चरण तक पहुंच गए या नियमित सुनवाई के लिए लिस्ट किए गए। उन्होंने एक ऐसे मामले का ज़िक्र किया, जिसमें एक आदमी की रेलवे ट्रैक पर मौत हो गई थी और उसके परिवार को मुआवज़ा पाने के लिए तेईस साल तक संघर्ष करना पड़ा। जब तक सुप्रीम कोर्ट ने राहत दी, बच्चों का पता नहीं था।
सीजेआई ने कहा,
"पूरी प्रक्रिया को देखिए। सिस्टम पर भरोसा खोने के बाद वे गायब हो गए।"
साथ ही बताया कि बच्चों को आखिरकार एक युवा वकील एडवोकेट फौजिया शकील की कोशिशों से ही ढूंढा जा सका, जो बिना फीस लिए काम कर रही थीं।
इन बातों के बाद बेंच ने पहले छोटे मामलों पर सुनवाई करने और फिर SIR याचिकाओं पर सुनवाई आगे बढ़ाने का फैसला किया।