विवाहिता ने 24 सप्ताह की गर्भावस्था को टर्मिनेट करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, मेडिकल जांच के निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को 24 सप्ताह से अधिक गर्भवती एक विवाहित महिला की गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने के लिए याचिका पर विचार किया। सुनवाई के दरमियान शीर्ष अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि यदि ऐसी याचिका की अनुमति दी जाती है तो यह ऐसे माता-पिता के लिए सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे खोल देगा जो अंतिम समय में घबरा जाते हैं।
याचिकाकर्ता दो बच्चों की मां है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वह लैक्टेशनल एमेनोरिया और पोस्ट पॉर्टम डिप्रेशन से पीड़ित है और इसलिए दंपति तीसरे बच्चे को पालने की स्थिति में नहीं हैं।
जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने याचिका पर नोटिस जारी करते हुए याचिकाकर्ता की चिकित्सा स्थिति का आकलन करने के लिए एम्स को एक मेडिकल बोर्ड गठित करने का निर्देश दिया। याचिकाकर्ता को गुरुवार को मेडिकल बोर्ड के सामने उपस्थित होने के लिए कहा गया है और मामले को आगे के विचार के लिए सोमवार नौ अक्टूबर को पोस्ट किया गया है।
बेंच ने शुरू में यह कहते हुए याचिका पर विचार करने में अनिच्छा व्यक्त की कि गर्भाधान स्वैच्छिक था। कोर्ट ने कहा कि जबरन गर्भधारण, जो कि हमले का परिणाम होता है और स्वैच्छिक गर्भधारण के बीच स्पष्ट अंतर है।
जस्टिस नागरत्ना ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा, “यहां बच्चा विवाह के भीतर पैदा हुआ है, उन्होंने स्वेच्छा से बच्चे की कल्पना की है और अचानक माता-पिता घबरा जाते हैं। आप ऐसी परिस्थितियों में क्या करते हैं?”
यह बताते हुए कि याचिकाकर्ता को शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए क्यों बाध्य होना पड़ा, उसके वकील ने कहा कि उसे अपनी गर्भावस्था के बारे में देर से पता चला। कोर्ट ने याचिकाकर्ता से सवाल किया कि पीरियड्स मिस होने के 5 महीने बाद भी उसे इस बात का एहसास क्यों नहीं हुआ कि वह गर्भवती हो सकती है।
कोर्ट ने कहा,
“एक विवाहित महिला, जिसके दो बच्चे हैं, उसकी माहवारी नहीं आती है और उसे ध्यान ही नहीं आता कि कुछ गड़बड़ है? 5 महीने तक महिला को पता ही नहीं चला कि उसका पीरियड मिस हो गया? ....हमारा कानून, राज्य और उस जीवन के प्रति कर्तव्य है। सिर्फ उन्हें ही नहीं बल्कि उनके पति को भी सतर्क रहना चाहिए था। हम यहां अनमोल जीवन के बारे में बात कर रहे हैं।''
याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को सूचित किया कि चूंकि उसका मानसिक इलाज चल रहा है और वह दवा ले रही है, इसलिए उसे आशंका है कि जन्म लेने वाला बच्चा 'सामान्य' नहीं हो सकता है। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि उसके सामने पेश किए गए मेडिकल रिकॉर्ड को देखने से कोई विसंगति नहीं दिखी।
अदालत ने याचिकाकर्ता से यह भी सवाल किया कि उसने अनुच्छेछ 226 के तहत दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा क्यों नहीं खटखटाया।
जस्टिस हिमा कोहली ने कहा, 'आप इस तथ्य का फायदा उठा रहे हैं कि आप दिल्ली में हैं।'